श्री कृष्णा यामलं महातन्त्रम | Krishna Yamala Tantra PDF In Hindi

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श्री कृष्णा यामलं महातन्त्रम – Shri Krishna Yamala Mahatantra Book PDF Free Download

श्री कृष्णा यामलं महातन्त्रम | Shri Krishna Yamala Mahatantra Book/Pustak PDF Free Download

श्री कृष्णा यामलं

‘श्रीकृष्णयामलमहातन्त्र’ का यह संस्करण श्रद्धेयचरण पूज्य गुरुदेव प्रो० प्रजवल्लभ द्विवेदी के कुशल निर्देशन में तैयार किये गये मेरे शोध-प्रबन्ध का ही परिष्कृत एवं परिवधित स्वरूप है।

शोध काल में मुझे इस ग्रन्थ की पाँच मातृकाए’ ही उपलब्ध हो पायी थीं। सौभाग्य से इस ग्रन्थ के प्रकाशन के समय अन्य चार मातृकाए’ और प्राप्त हो गयीं।

कुल आठ मातृकाओं की सहायता से इसका संस्करण आप सबके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। नवीं मातृका का भिन्न पाठ होने के कारण उसे परिशिष्ट-१ में रखा गया है।

इसके अतिरिक्त न्यू कैटलागस कैटलागरम् (भाग ४, पृ० ३४७-४८) के अनुसार कुछ अन्य मातृकाओं की भी सूचना मिलती है, किन्तु कुछ कठिनाइयों के कारण इच्छा रहते हुए भी संस्करण में उनका उपयोग नहीं कर सका।

आशा है कि अगले संस्करणों में इस कमी को पूरा किया जा सकेगा।

पूर्वपीठिका

ऐसा प्रतीत होता है कि जिन प्राचीन संहिताओं के नाम रसिक सम्प्रदायों में दिखायी पड़ते हैं, उनका प्रभाव किसी-न-किसी अंश में चैतन्य सम्प्रदाय पर पड़ा है।

साथ ही कतिपय शाक्तादि तन्त्रों का भी प्रभाव इन पर दृष्टिगोचर होता है। जिस प्रकार गौतमीयतन्त्र, सनकुमारसंहिता, आलबन्दारसंहिता, सुन्दरीतन्त्र इत्यादि आगम ग्रन्थों ने लीला विषयक साहित्यों को प्रभावित किया है,

उसी प्रकार ‘श्रीकृष्णयामलमहातन्त्र’ ने भी राधा-कृष्ण की लीला को अवश्य ही प्रभावित किया है। इस ग्रन्थ में त्रिपुरसुन्दरी की उपासना के साथ श्रीकृष्ण लीला का घनिष्ठतम सम्बन्ध दर्शाया गया है।

चैतन्य सम्प्रदाय में गुप्त रूप से श्रीयन्त्र की उपासना प्रचलित है।

भक्ति सम्प्रदाय

‘भारतवर्ष में भक्ति-साधना के विभिन्न सम्प्रदाय प्रचलित रहे हैं और ये प्राय: वैष्णवों के ही रहे हैं। श्रीरामानुज श्री सम्प्रदाय के, श्रीनिम्बार्क सनकादि या हंस-सम्प्रदाय के

, श्रीमध्व ब्रह्म-सम्प्रदाय के तथा श्रीविष्णुस्वामी जर तदनन्तर श्रीवल्लभ रुद्र-सम्प्रदाय के प्रवर्तक रहे हैं। ये सभी वैष्णव थे । इनके दार्शनिक मत भी भिन्न थे,

यथा-श्री सम्प्रदाय में विशिष्टाद्वत, हंस सम्प्रदाय में द्वताद्वीत, ब्रह्म-सम्प्रदाय में द्वीत तथा रुद्र-सम्प्रदाय में शुद्धाद्व मान्य है।

बंगदेश में चैतन्य महाप्रभु का गौड़ीय सम्प्रदाय तथा उड़ीसा में उत्कलीय वैष्णव सम्प्रदाय भी रहा है। इसके अतिरिक्त उनकी छोटी बड़ी अनेक शाखाएं भी हैं,

जिनमें राधावल्लभी, हरिदासी, प्रणामी, श्रीनारायणी इत्यादि विशेषरूप से उल्लेखनीय है। श्री सम्प्रदाय से पूर्व द्रविड़ देश में आलवारगण भक्तिमार्ग की रागमार्ग शाखा के साधक थे ।

लेखक शीतला प्रसाद उपाध्याय-Shitala Prasad Upadhyay
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 436
Pdf साइज़75 MB
CategoryReligious

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