कृष्‍ण स्‍मृति | Krishna Smriti PDF In Hindi

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कृष्‍ण स्‍मृति – Krishna Smriti by Osho PDF Free Dwonload

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1-हंसते व जीवंत धर्म के प्रतीक कृष्ण

“कृष्ण के व्यक्तित्व में आज के युग के लिए क्या-क्या विशेषताएं हैं और उनके व्यक्तित्व का क्या महत्व हो सकता है? इस पर कुछ प्रकाश डाले ?

कृष्ण का व्यक्तित्व वास्तव में अत्यंत अनूठा है। उनका प्रासंगिक होने का एक कारण यह है कि वे अतीत में जन्मे होते हैं, लेकिन भविष्य में भी होते हैं। मानव समाज अभी तक उन्हें समय के साथ समझ नहीं पाया है। वे अपनी ऊँचाइयों और गहराइयों में धर्म के प्रति गंभीरता के साथ होने के बावजूद भी हमेशा मजेदार और प्रफुल्लित रहते हैं।

उन्हें उदास और हारा हुआ नहीं देखा जाता, बल्कि वे हमेशा आनंदमय और उत्साहित रहते हैं। यही कारण है कि लोग उन्हें साधारणतः उदास और हारा हुआ व्यक्ति की तरह नहीं देखते हैं।

कृष्ण वास्तव में एक नाचने वाले व्यक्ति हैं जो हंसते और गाते हुए धर्म का पालन करते हैं। वे अतीत के धर्म को दु:खद एवं दु:खद नहीं मानते। कृष्ण को छोड़कर अतीत का सारा धर्म उदास और दुखमय नहीं था। उनका धर्म हास्यास्पद था और मर चुका है, लेकिन पुराना भगवान, जैसा कि हमने पहले सोचा था, मरा नहीं है।

ईसा मसीह के बारे में कहा जाता है कि वह कभी हंसते नहीं थे। शायद यह यीशु का दुखद और शोकाकुल व्यक्तित्व और उनके क्रूस पर चढ़ने की दृश्यता है जो हमें आकर्षित करती है। महावीर और बुद्ध की भी जीवन के प्रति गहरी गति है। वे सांसारिक जीवन को अस्वीकार करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मोक्ष मिलता है। सभी धर्मों ने जीवन के दो पक्षों को स्वीकार और अस्वीकार किया है।

कृष्ण जीवन की संपूर्ण अस्थायीता को अपने व्यक्तित्व में स्वीकार करते हैं। उनकी यही विशेषता उन्हें ‘पूर्ण अवतार’ बनाती है, जिसे इस देश ने आशिक अवतार कहा है। राम भी ईश्वर के अंश हैं, लेकिन कृष्ण पूर्णावतार हैं, संपूर्ण अवतार हैं। उनकी पूर्णता इसलिए है क्योंकि उन्होंने हर चीज़ को आत्मसात कर लिया है।

अल्बर्ट क्वेल्जर ने भारतीय धर्म की आलोचना करते हुए कहा है कि भारतीय धर्म प्रतिबंधात्मक एवं नकारात्मक है। यह दृष्टिकोण कृष्ण को भूला देता है। अगर हम कृष्ण को ध्यान में रखें तो यह बात बिल्कुल गलत हो जाती है। स्वामी विवेकानन्द ने कृष्ण को समझा है और उन्होंने कहा है कि कृष्ण एक महान आदर्श हैं।

लेकिन अभी हमें इसकी विशिष्टता का ठीक से अनुभव नहीं हुआ है. हम उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं. वे अपने आप में एक घटना हैं और हमने अभी तक उन्हें पूरी तरह से अनुभव नहीं किया है। उन्होंने हमारे जीवन को अपनी दिशा में प्रभावित नहीं किया है। हम आदेश के अनुसार अपना जीवन चला रहे हैं।’ इसलिए हम उन्हें आत्मसात नहीं कर पाते ।

मानव मन हमेशा सोचता रहता है, लेकिन इसे बंद करना होगा और आत्मा को स्वीकार करना होगा। शरीर को नकारना उचित नहीं है, बल्कि उसे स्वीकार करना उचित है। आत्मा और शरीर दोनों देवियाँ हैं। जीवन के सभी रसायन और संवेदनाएं शरीर से ही आती हैं।

जो शरीर के धर्मों को अस्वीकार करता है वह दुखी होता है। लेकिन कृष्ण शरीर को उसकी संपूर्णता में, उसकी ‘संपूर्णता’ में स्वीकार करते हैं। ये वाकई एक ऊंची सोच है. अगर मैं कृष्ण को छोड़कर पैदा हुआ होता तो यह सनसनीखेज होता।’ कृष्ण ने हमें हंसाया है और पूर्णता को स्वीकार करना सिखाया है।

इसलिए कृष्ण का बहुत भविष्य है. एक नई क्रांति हो रही है और यह एक नई चेतना का आगमन है। हमें यह समझना होगा।

Language Hindi
No. of Pages504
PDF Size 21.4 MB
CategoryReligious
Source/Creditsdrive.google.com

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