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कपास की खेती – Cotton Cultivation Hindi Book Pdf Free Download
कपास की खेती हेतु खेत की तैयारी कैसे करनी चाहिए?
कपास उत्पादन के लिए समुचित जल निकास वाली काली मिट्टी वाला खेत सर्वोत्तम होता है।
चूँकि कपास एक दीर्घावधि की नकदी फसल है, अतः इसमें संतुलित पोषण की आवश्यकता होती है।
अतः खेती से पूर्व मिट्टी की जाँच आवश्यक है जिससे कि पता चल सके कि मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व कितनी मात्रा में उपलब्ध हैं व कौन-2 से पोषक तत्वों की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी।
कपास की फसल सामान्यतः 150 से 180 दिन की दीर्घावधि वाली फसल है अतः कपास की खेती के लिए अप्रैल-मई में दो वर्षों में एक बार गहरी जुताई।
मिट्टी पलट हल से करना चाहिए व उसके बाद 1-2 जुताई साधारण हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए। उसके बाद रोटावेटर, बखर व पाटा चलाकर जमीन को भुरभुरी व समतल बनाना चाहिए।
गर्मी में जुताई के तुरंत बाद खाली खेत में नीम की खली 1 क्विंटल या नीम बीज पीसकर 5 किलो प्रति एकड़ गोबर खाद के साथ, या नीम तेल 1 लीटर प्रति एकड़ छिड़काव करने से जमीन में पड़े हुये कीटों के अण्डे, षंखियां और बीमारियो के जनक नष्ट हो जाते हैं।
कपास की बुआई के पूर्व खाद एवं उर्वरक कैसे दें और लाईन से लाईन एवं पौधे से पौधे की दूरी कितनी हो?
कपास की खेती हेतु जमीन की तैयारी के समय से ही कपास को पोषण की जरूरत होती है अतः खेत की तैयारी के पश्चात् असिंचित खेती हेतु 3.5×1.5 फीट व सिंचित खेती हेतु 3.5×3.5 या 4×4 फीट पर कतारें बनाना चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी असिंचित में 1.5-2 तथा सिंचित में 3.5 से 4 फीट की दूरी पर निशान बनाकर 5 से 6 इंच गहरा गड्ढा कर उचित रूप से पकी हुई गोबर की खाद व जिप्सम 2 बैग प्रति बीघा का प्रयोग करना चाहिए जिससे कि खाद में व्याप्त सूक्ष्म पोषक तत्वों को नुकसान नहीं पहुंचे व खाद का समुचित प्रयोग फसल हेतु हो सके।
इस विधि से 10 से 15 क्विंटल गोबर खाद से एक एकड़ में पोषण हो जाता है व शेष बची गोबर खाद को खेत में या मेड़ पर वृक्ष की छाँव में थोडा सा पानी छिड़ककर मिट्टी से ढककर छोड़ देना चाहिए जिससे खड़ी फसल में प्रयोग किया जा सके।
कपास उत्पादन हेतु क्षेत्र अनुसार अनुशंसित उत्तम किस्मों का चुनाव आवश्यक है क्योंकि बीज ही खेती का मुख्य आधार है। निमाड़ क्षेत्र में बी.टी. के उपयोग होने वाले कुछ मुख्य ब्राण्ड अजित 155, अजित 111, राशि 659, राशि 2, डेनिम आदि हैं।
जहाँ सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध हो वहाँ मई मध्य जून प्रथम सप्ताह तक टपक विधि से बुवाई करना उचित है। वर्षा आधारित खेती हेतु मानसून सक्रीय होने के पश्चात् जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह में चुपाई विधि से उचित दूरी पर पालियों (Ridge) पर बुवाई करना चाहिए।
कपास उत्पादन हेतु 400 ग्राम बीज प्रति बीघा की दर से बुवाई करें एवं एक स्थान पर एक ही बीज की बुवाई करना चाहिए। साथ ही पौधों की क्षति को रोकने के लिए बुवाई के समय ही प्रति एकड़ 100 से 150 पौधे प्लास्टीक थैली या उपलब्ध बर्तन में रोपणी के रूप में तैयार कर लेने चाहिए जिससे कि खाली स्थानों में रोपाई की जा सके।
कपास की खेती हेतु पोषण प्रबंधन कैसे करें ?
कपास की खेती काफी खर्चीली खेती मानी जाती है। फसल में खर्च कम करने के लिए किसानों को रासायनिक उर्वरक व दवाओं के संतुलित उपयोग के साथ इनके जैविक विकल्पों जैसे केंचुआ खाद, नीम की खली, गोबर की खाद, हरी खाद, बायोपेस्टीसाइड, नीम तेल आदि का उपयोग भी करना होगा।
जैसे कि पहले बताया जा चुका है कपास दीर्घावधी की फसल है व इसमें 5 मुख्य क्रांतिक अवस्थाए हैं जिनमें बुवाई से लेकर तीन प्राथमिक क्रांतिक अवस्थाओं पर विशेष पोषण की आवश्यकता होती है।
अतः इन क्रांतिक अवस्थाओं पर ही उचित विधि से उचित मात्रा में खाद व उर्वरकों का प्रयोग करना चहिए।
लेखक | Devlopment Support Center |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 8 |
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Category | विषय(Subject) |
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कपास की खेती और उसके संलग्न रोग PDF
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