उपासना के दो चरण जप और ध्यान | Jap Aur Dhyan PDF In Hindi

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उपासना के दो चरण जप और ध्यान – Upaasana Ke Do Charan Jap Aur Dhyaan PDF Free Download

जप योग

प्रतीक उपासना की पार्थिव पूजा के कितने ही कर्मकाण्डों का प्रचलन है। तीर्थयात्रा, देवदर्शन, स्तवन, पाठ, षोडशोपचार; परिक्रमा, अभिषेक, शोभायात्रा, श्रद्धाञ्जलि, रात्रि जागरण, कीर्तन आदि

अनेकों विधियाँ विभिन्न क्षेत्रों और वर्गों में अपने-अपने ढंग से विनिर्मित और प्रचलित हैं। इससे आगे का अगला स्तर वह है, जिसमें उपकरणों का प्रयोग न्यूनतम होता है और अधिकांश कृत्य मानसिक एवं भावनात्मक रूप से ही सम्पन्न करना पड़ता है।

यों शारीरिक हलचलों, श्रम और प्रक्रियाओं का समन्वय उनमें भी रहता ही है । उच्चस्तरीय साधना क्रम में मध्यवर्ती विधान के अन्तर्गत प्रधानतया दो कृत्य आते हैं। ( १ ) जप ( २ ) ध्यान ।

न केवल भारतीय परम्परा में वरन् समस्त विश्व के विभिन्न साधना प्रचलनों में भी किसी न किसी रूप में इन्हीं दो का सहारा लिया गया है प्रकार कई हो। सकते हैं, पर उन्हें इन दो वर्गों के ही अंग-प्रत्यंग के रूप में देखा जा सकता है ।

साधना की अन्तिम स्थिति में शारीरिक या मानसिक कोई कृत्य करना शेष नहीं रहता। मात्र अनुभूति, संवेदना, भावना तथा संकल्प शक्ति के सहारे विचार रहित शून्यावस्था प्राप्त की जाती है।

इसी को समाधि अथवा तुरीयावस्था कहते हैं । ब्रह्मानन्द का परमानन्द का अनुभव इसी स्थिति में होता है। इसे ईश्वर और जीव के मिलन की चरम अनुभूति कह सकते हैं। इस स्थान पर पहुँचने से ईश्वर प्राप्ति का जीवन लक्ष्य पूरा हो जाता है।

यह स्तर समयानुसार | आत्म-विकास का क्रम पूरा करते चलने से ही उपलब्ध होता है । उतावली में काम बनता नहीं बिगड़ता है । तुर्त फुर्त ईश्वर दर्शन, समाधि स्थिति, कुण्डलिनी जागरण, शक्तिपात जैसी आतुरता से बाहोता ।

शरीर को सत्कर्मों में और मन को सद्विचारों में ही अपनाये रहने से जीव सत्ता का उतना परिष्कार हो सकता है, जिससे वह स्थूल और सूक्ष्म शरीरों को समुन्नत बनाते हुए कारण शरीर के उत्कर्ष से संबद्ध दिव्य अनुभूतियाँ और दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त कर सके ।

लेखक श्री राम शर्मा-Shri Ram Sharma
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 41
Pdf साइज़2.5 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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