जंतु विज्ञान – Jantu Vigyan (Zoology) Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
प्रकार की आहट होने पर ये तुरन्त ताकत के पानी मे कूदकर शत्रु की पकड़ के बाहर हो जाते है। ये छोटे-मोटे कीडे-मकोडे, पोषे, केचुए इत्वादि खाते है।
तालाब के पास-पड़ोस में इस प्रकार के भोजन की कमी नही होती। मैथुन तथा जडरोपण (or iposition) के लिए तो इनका वासस्थान बहुत उपयुक्त है।
भोजन (Food) पने समा स्वाप लेने की शक्ति मेडया में अल्प विकसित या अविकसित होती है जिससे यह राडे-गले कीडे-मकोटी को निग- लने में भी नही हिपकता।
बामतीर पर यह पलते-फिरते या उटते हुए बन्तुओं का ही शिकार करता है। शिकार करने में इसकी अनोखी जीभ सहायता देती है।
इसका अगला सिरा निचले जबड़े के अगले मिरे से जुड़ा रहता है लेकिन पिछला भाग मात्र तथा द्विगाव (bifurcated) होता है। यह लसलसी होती है।
मेढक शिकार की टोह में चुपचाप बैठा रहता है और शिकार देखते ही यह जीभ को तेजी से बाहर चित्र ६-जीम द्वारा निकालता है और शिकार को लपेट में लिये भोजन की पकड हुए तुरन्त खीच लेता है।
छोटे-मोटे कीडे लसलसी जीभ में चिपकते ही बेबस हो जाते हैं। मुंह बंद होने पर वह किसी पकार बाहर नहीं निकल पाते।
जब कभी मेडक किसी बड़े जन्तु जैसे टेडपोल, वोचमा इत्यादि को पकड़ता है तो अपनी-अगली टाँगो की सहायता से उसे मुँह में ठेसना परता है।
चिडियो तथा स्तनधारी जन्तुजी की तरह मेटक मुंह से पानी नही पीता, आवश्यकतानुसार यह पानी अपनी स्वचा द्वारा सोस लेता है।
त्वचा और नं शियो के बीच सबस्यूटे नियस सादस्यूसेज (subcutancous sunusces) होते हैं जिनमें एक प्रकार का द्रव या लिम्फ भरा रहता है। इसी में सोखा हुआ पानी मिल जाता है। मेह के (Bnemies) |
लेखक | राम प्रसाद एंड संस |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 478 |
Pdf साइज़ | 17.7 MB |
Category | विषय(Subject) |
जंतु विज्ञान | Jantu Vigyan (Biology) Book/Pustak Pdf Free Download