जैन व्रत कथा संग्रह | All Jain Vrat Katha Collection PDF In Hindi

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जैन व्रत कथायें – Jain Vrat Katha PDF Free Download

व्रत कथा की यादी(List Of Vrat In Book) & व्रतों की जापों सहित

  1. अनन्त चौदस व्रत,
  2. रविव्रत,
  3. दशलक्षण व्रत,
  4. आकाश पंचमी व्रत,
  5. पुष्पांजलि व्रत,
  6. रत्नत्रय व्रत,
  7. मुक्तावली व्रत,
  8. नंदीश्वर व्रत,
  9. रोहिणी व्रत,
  10. सुगंध दशमी व्रत,
  11. अखै दशमी व्रत,
  12. ऋषि पंचमी व्रत,
  13. निर्जर पंचमी व्रत,
  14. कोकला पंचमी,
  15. पंचमी व्रत,
  16. शील व्रत,
  17. त्रैलोक्य तिलक (रोट तीज) व्रत,
  18. निर्दोष सप्तमी व्रत,
  19. रक्षाबंधन कथा,
  20. दान कथा व सप्त व्यसन

आकाश पंचमी व्रत कथा

तिलकपुर नगर में भद्रशाह नामक एक व्या पारी रहता था। उसकी पत्नी का नाम था नन्दा | जिससे उसे विशाला नाम की पुत्री उत्पन्न हुई । मुख पर सफेद कुष्ट हो जाने के कारण विशाला की सुन्दरता नष्ट हो गई थी ।

एक दिन एक वैद्य घूमता घामता तिलकपुर नगर में आया। जब विशाला को उसे इलाज हेतु दिखाया गया तो उसने सिद्ध चक्र की आराधना करके औषधि दी जिससे विशाला का कुष्ट दूर हो गया ।

भद्रशाह और उसकी पत्नी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। उन्होंने फौरन शुभलग्न में विशाला का विवाह वैद्य के साथ कर दिया। वैद्य विशाला सहित देशाटन करता हुआ चित्तौड़गढ़ की तरफ आया जहाँ भीलों के एक दल ने उसको मारकर उसकी सारी सम्पत्ति छीन ली ।

विशाला किसी तरह अपने आपको उनकी क्रूर नजरों से बचाफर नगर के जिनालय में आगई। वहाँ एक मुनिराज विराजमान थे । विशाला ने बड़ी विनय के साथ उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुख गाथा सुनाई।

‘बेटी ! सुनो’-मुनिराज ने कहना शुरु किया ‘यह जीवं अपने पूर्व जन्मके शुभ कमों से सुख और अशुभ कर्मों से दुःख भोगता है।

तू भी पूर्व जन्म में इसी नगर में वैश्या थी । एक समय सोमदत्त नामक मुनि इस नगर में पधारे। कुछ मिथ्यात्वी विधर्मियों ने मुनि से वाद विवाद किया और अन्त में हार कर मुनि को भ्रष्ट करने हेतु तेरा सहारा लिया ।

तूने अनेकों हाव भावों से सुनी रिझाने का प्रयत्न किया। परन्तु जैसे सूर्य पर थूकने से थूक सूर्य का कुछ न बिगाड़ कर उल्टा मुँह पर गिरता है उसी प्रकार मुनिराज तो अचल मेरुवत् स्थिर रहे परन्तुं तू हारकर लौट आई ।

बाद में तुझे कोढ़ हो गया और तू मर कर चौथे नर्क में गई। वहाँ से आकर तू भद्रशाह के यहाँ पुत्री हुई। इस जन्म में भी तुके को हुआ।

पिंगल वैद्य ने तुझे अच्छा किया और उसी के साथ तेरा विवाह भी हुआ पूर्व पाप के उदय से चोरों ने उसे मार डाला और तू जान बचाकर यहाँ तक आ गई। छाव यदि तू धर्माचरण करेगी तो इस यांप से शीघ्र मुक्त हो सकेगी।

२५ मूल दोपों का त्याग कर तब निर्मल सम्यक् दर्शन हो सकेगा ।

अहिंसा आदि १२ व्रतों के पालन के साथ २ आकाश पंचमी व्रत का पालन कर व्रत विधि पूछने पर मुनिराज ने बताया- ‘यह व्रत भादों सुदी पंचमी को किया जाता है।

इस दिन चारों प्रकार का आहार त्याग कर उपवास धारण करें और जिनालय में अष्टद्रव से भगवान की अभिषेक पूर्वक पूजन करें। रात्री में खुले स्थान में बैठ कर जागरण भजन करें और वहां पर सिंहा सन रखकर श्री चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमा स्थापन करें ।

यदि उस समय वर्षा आदि के कारण कितने ही उपसर्ग आवें तो सहन करे, विचलित न हों।

तीनों समय महामंत्र नवकार के १०८ जाप करें। इस प्रकार ५ वर्ष तक करके अन्त में उद्यापन करें। इतना कहकर मुनिराज चुप हो गये ।

विशाला ने श्रद्धापूर्वक बारह व्रत स्वीकार किये और आकाश पंचमी व्रत का भी विधि सहित पालन किया जिसके प्रभाव से वह चौथे स्वर्ग में मणिभद्र देव हुई ।

वहाँ की सात सागर की आयु पूर्णकर उज्जैन नगर में प्रियंगु सुन्दर नामक राजा के यहां तारामती रानी से सदानन्द नामक पुत्र हुआ। अनेकों वर्षों तक राज्योचित सुख भोगने के बाद एक दिन एक मुनिराज का उपदेश सुनकर उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया।

उसने जिन दीक्षा ले ली और केवल ज्ञान प्राप्तीत कर मोक्ष गया ।

जिस प्रकार व्रत के प्रभाव से एक वशिक कन्या विशाला ने स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त कर लिया उसी प्रकार जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को पालेगा, निश्चय ही मोक्षपद के उत्तम सुखों को प्राप्त करेगा ।

लेखक सुभाष जैन-Subhash Jain
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 64
PDF साइज़1.5 MB
CategoryVrat Katha
Source/Creditsarchive.org

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