इसरो की कहानी – Isro Ki Kahani Book/Pustak PDF Free Download

आपकी- मेरी बात
बात कई साल पहले की है। आपकी, मेरी, हम सबकी। भारत में आरंभ हुए नए उत्सव की जयक परिश्रम की, दुर्दम्य इच्छा शक्ति की और यह हम भी कर सकते हैं
ऐसा आत्मविश्वास जगाने वाली मानसिक प्रक्रिश की यह भारत के प्रक्षेपास्त्र के विकास की कया है। सन् 1963 में भारत ने ‘बा से पहला प्रोपित किया। तब में इंग्लैंड में था।
विश्वविद्यालय से अध्ययन पूरा कर वैज्ञानिक के रूप में मैंने पहले ही कार्य करना शुरू कर दिया था। लंदन टाइम्स’ के एक कोने में के प्रक्षेपास्त्र प्रक्षेपण का समाचार था, वह समाचार मेरी नजर से छूटा नहीं था।
‘प्रक्षेपास्त्र’ के प्रति आकर्षण बचपन से ही दीपावली के आकाशवाण के कारण बहुतों को होता है, मुझे भी था। यह ‘प्रक्षेपास्व’ अमेरिकी बनावट का होते हुए भी भारत ने छोड़ा यही वहा महत्वपूर्ण थी।
‘थुंबा’ को स्थानीय लोगों द्वारा ‘तुंबा’ कहा जाता है। यह बात मुझे के पहुंचने पर पता चली। 21 नवंबर, 1963 को इस त्वा से ‘नाईकेअच्ची’ नामक अमेरिकी प्रक्षेपारख प्रक्षेपित किया गया।
अमेरिकी, फ्रांसीसी और भारतीय वैज्ञानिकों का यह एक संयुक्त प्रयास था। तुंबा-एक छोटा-सा कस्था। वैसे तो प्रगति की इस हवा को वहां पहुंचने में कई बरस लगे होते,
लेकिन आधुनिक युग का सूत्रपात करने वाला यह शिवधनुष तुंबा ने ही उठाया। नारियल के असंख्य पेड़, उफनता हुआ सागर और विज्ञप का एक छोटा-सा खाली मकान यही था
तुंबा का स्वरूप इस छोटे-से मकान का रूपांतरण ‘प्रक्षेपास्त्र’ प्रक्षेपण के नियंत्रण केंद्र के रूप में किया गया था। प्रायोगिक स्तर पर साधन जुटाए गए
और ‘प्रक्षेपस्त्र’ को नरियत के पेड़ों के नीचे आपस में जोड़ा गया एकदम साधारण ढंग से लेकिन इस साधारण से प्रयत्न की परिणति असाधारण थी 21 नवंबर, 1963 का यह प्रयोग पूरी तरह सफल हुआ था।
‘प्रक्षेपास्त्र’ के सिरे पर सोडियम के सघन धुएं के बादलों ने तुंबा के पहले प्रक्षेपण की सफलता की गर्जना की और अनेक रंग और लंबाई के वैज्ञानिकों, तकनीशियनों ने एक दूसरे के गले मिल आनंद व्यक्त किया।
सन् 1963 में इंग्लैंड में पड़े हुए उस छोटे से समाचार के पीछे इतना बड़ा इतिहास था। इससे भी कहीं अधिक कुछ था भारत के सीधे-सादे प्रयत्न में डॉ. होमी भाभा, डॉ. विक्रम साराभाई जैसे कर्तव्य-परायण और स्वप्नद्रष्टा वैज्ञानिक भारत के भविष्य का स्वप्न देख रहे थे।
आपाधापी के इस युग में अपने देश की अस्मिता की दुनियाद मजबूत कर मातृभूमि को निष्कंप रखने का उनका प्रयत्न या विपरीत परिस्थितियों में भी देश के स्वाभिमान को बचाए रखने की मानसिकता उनमें प्रज्वलित थी।
भाषा और साराभाई के मन में “तुंबा’ का अग्निवाण प्रक्षेपण एक घटना मात्र नहीं थी, बल्कि यह एक प्रक्रिया की शुरुआत थी।
इस प्रक्रिया के अंतिम छोर की टोह लेना वैसा ही दुष्कर था, जैसे नदी का उद्गम खोजना। इस प्रक्रिया के मार्ग में बहुत बड़ी वीर कथा भी छुपी थी काल्पनिक लगे,
इतनी रोमांचकारी, लेकिन काल्पनिक नहीं, बल्कि वास्तविक रससिक्त साराभाई और उन जैसे बनने का सपना देखने वाले हम-आप जैसे अनेक साराभाई की साकार की हुई वा की यह कहानी हमारी आपकी कहानी है।
इसमें हम समाहित है इसीलिए वस्तुनिष्ठ रूप में इस कहानी कह पाना कठिन है पर जैसा संभव होगा ऐसा बताने का प्रयत्न करता हूँ।
लेखक | वसंत गोवारिकर-Vasant Gowarikar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 86 |
PDF साइज़ | 7.3 MB |
Category | Story |
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