हिंदी साहित्य का इतिहास डॉ नगेन्द्र | Hindi Sahitya Ka Itihas PDF

हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास – Hindi Sahitya Ka Bruhat Itihas Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

प्रबुक्त विमेषसो में ‘उष्च, पीन’ पादि उनके घाकार तथा ‘कठौर, कोरे आदि उनके गुणो के प्रकाशक है । किंतु ‘ठाडे’, ‘डॅँचीहैं, ‘उठें, ‘उचके उनके क्रियात्मक पक्ष के घोतक है ।

अपनी क्रियात्मकता के कारण इनमें चिलोत्लेखन तथा भावोद्दीपन की क्षमता अपेक्षाकृत अधिक परिलक्षित होती है। ‘ठाडे’ रौर बरें सामान्यत पर्यायवाची होते हुए भी सूक्ष्म अर्थभेद रखते है।

बरे’ मे जो मासलता भौर विषयोत्तेजकता (सेसुघमिटी) निहित है बह ‘ठाढे’ मे कहाँ । रीतिबद्ध कवियों के विशेषणो का वैशिष्टय तवतक पूर्णत प्रकट नहीं किया जा सकता

जबतक रीतिमुक्त कवियों के विशेषणो से इनकी तुलनान कर ली जाय । अनघानद के विशेषण ‘तृषित चवनि’ (ब० क०, न० ) प्रिया निपेटनि’ (प. क०,००२६), ‘प्रीति पगो पंखियानि (च० क०, छ० ३४)आदि- एक अन्य प्रकार के दृष्टिकोण के चोतक है ।

स्पष्ट है कि इन विशेषणो पर विषयिनिष्ठता का गहरा रग है चनमानद के विशेषण मुख्यत मात्रयगत है तो रीतिबद्ध कवियो के आलवनगत । इसलिये स्वाभाविक है कि मराधयवत विशेषण जहाँ व्यया और दैन्य के चित्र उपस्थित करते है

वहाँ पालंदनयत विशेषण ऐड्रियविलास के गदविद्वन चित्र ।1 ऐक में विर्ह धर जलन की गभीरता है तो दूसरे में समोग और भोग की चटकीली रगीनी। अप्रधान यौन अवयबो (सेकडरी सेक्जुप्रल कैरेक्टसं) के अतिरिक्त नारी के वस्त्रो के लिये-

विशेषत चूनरी, साडी तथा चोली के लिये-रागोहीपक विशेषणो के प्रयोग हुए है। सामान्यत साडी और चोली दोनो के लिये लाल विशेषण का प्रयोग अधिक हुमा है। लाल रग अन्य रगो की अपेक्षा अधिक चक्षुग्राह्य और उत्तेजनात्मक होता है।

देव ने इस रग को और भी उत्तेजनामूलक और प्रभावापत्र बनाने के लिये चूनि चूनरि लाल लिखकर उसक ‘ठाडे’ रौर बरें सामान्यत पर्यायवाची होते हुए भी सूक्ष्म अर्थभेद रखते है। बरे’ मे जो मासलता भौर विषयोत्तेजकता (सेसुघमिटी) निहित है बह ‘ठाढे’ मे कहाँ ।

लेखक डॉ. नागेंद्र-Dr. Nagendra
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 448
Pdf साइज़48.6 MB
Categoryइतिहास(History)

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