हिंदी कहानी संग्रह | Hindi Kahani Sangrah PDF

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हिंदी कहानी संग्रह – Hindi Kahaniyan Sangrah PDF Free Download

संग्रहित सभी कहानी की यादी

  1. लालपान की बेगम – फणीश्वरनाथ रेणु
  2. मलबे का मालिक – मोहन राकेश
  3. दो आस्थाएँ – अमृतलाल नागर
  4. भोलाराम का जीव – हरिशंकर परसाई
  5. भोर से पहले – अमृत राय
  6. दोपहर का भोजन – अमरकान्त
  7. खोयी हुई दिशाएँ – कमलेश्वर
  8. जहाँ लक्ष्मी क़ैद हे – राजेन्द्र यादव
  9. चेरी के पेड़ – रामकुमार
  10. हंसा जाई अकेला – मार्कण्डेय
  11. कोसी का घटवार – शेखर जोशी
  12. मेरा दुश्मन – कृष्ण बलदेव वंद
  13. प्रेत मुक्ति – शैलेश मटियानी
  14. नन्हों – शिवप्रसाद सिंह
  15. बादलों के घेरे – कृष्णा सोबती
  16. परिन्दे – निर्मल वर्मा
  17. त्रिशंकु – मन्नू भण्डारी
  18. वापसी – उषा प्रियंवदा
  19. पेपरवेट – गिरिराज किशोर
  20. तोते – हृदयेश
  21. दोजखी – शानी
  22. सड़क – रामदरश मिश्र
  23. घंटा – ज्ञानरंजन
  24. मुठभेड़ – मुद्राराक्षस
  25. व्यतिक्रम – रमाकांत
  26. फाँस – गोविन्द मिश्र
  27. अपना रास्ता लो बाबा – काशीनाथ सिंह
  28. केक – असग़र वजाहत
  29. हत्यारो की वापसी – मिथिलेश्वर

लेखक की कहानी और हिंदी कहानी की विकास यात्रा

साहित्य अकादेमी का अनुरोध मैंने बड़े उत्साह से स्वीकार किया था, कहानी-विधा में अपनी दिलचम्पी के कारण मुझे लगता था।

जैसे अपनी पीढ़ी और बाद की पीढ़ी के लेखकों और उनकी रचनाओं से मेरा रोज-मर्ग का सम्बन्ध रहा है-इस विचार से भी कि कहानी के क्षेत्र में जो तरह-तरह के ‘आंदोलन’ उठते रहे हैं उनके बीच से भी मुझे गुजर पाने का मौका मिला है।

इसलिए यह काम मेरे लिए रुचि कर भी होगा और आसान भी। कुल दो दर्जन कहानियाँ हो तो जुटाना है। तास पैतीस वर्ष के अपने पठन-पाठन के आधार पर बया मै पचीस कहानियाँ भी नही जुटा पाऊँगा ?

पर काम इतना आमान साबित नही हुआ जितना मैं समझ बैठी था। ज्यों ही काम हाथ में लिया, पेचीदगियाँ बढ़ने लगी । सवाल उठा : सबसे पहले लेखकों की तालिका बनाऊँ या उत्कृष्ट कहानियों की ?

जब मैं लेखकों की तालिका बनाने लगा तो तालिका लम्बी खिचती चली गयी। पचीस कहाँ, वहाँ तो पचाम नाम शामिल हो गये इस आधार पर नहीं कि अमुक मेरा मित्र है,

उसकी कहानी तो होनी ही चाहिए, या अमुक से मेरे विचार मेल खाते हैं, या अमुक मेरा विरोधी है. कहानी नहीं रखी तो मुझ पर तरह-तरह के आरोप लगायेगा, या अमुक, पाठकों की नजर में भले ही स्थापित नही हो पाया हो.

अपनी नज़र में तो कब का स्थापित हो चुका है आदि आदि। इस प्रकार के कारणों से नहीं, बल्कि सूची इसलिए लम्बी हो गयी कि पिछले पंतोस वर्षों में निश्चय ही कहानी लेखन के क्षेत्र में बड़ा महत्त्वपूर्ण काम हुआ है और हो रहा है।

पहले की तुलना में कही ज्यादा लेखक इस विधा के साथ गम्भीरता से जुड़े हुए हैं, और हमारे कहानी-साहित्य को समृद्ध बना रहे हैं।

इस तरह कहानी के क्षेत्र में मध्यवर्ग के जीवन को व्यक्त करनेवाली कहानियाँ ज़्यादा लिखी जाने लगी। क़स्बई जीवन से कहानी का नाता कमजोर पड़ता गया।

इस दृष्टि से कि गाँवों में देश की अधिकांश जनता बसती है, और उन्ही के जीवन की छाप कहानियों में कम देखने को मिले, इससे कहानी का क्षेत्र सिकुड़ा ही है। पर अधिकांश स्थितियों में स्वयं शहर का होने के कारण, लेखक की पकड़ में शहर का मध्यवर्गीय जीवन अधिक सुगमता से आने लगा।

शहर के जीवन में भी तरह तरह के नये दबाव और पेचीदगियाँ पैदा हो रही थी । संयुक्त परिवार की परंपरा गत संस्था टूट रही थी, दो कमरों के फ्लैट में सारा कुनबा नही समा सकता था ।

आर्थिक दबावो के कारण स्त्रियाँ काम की खोज मे घरों के बाहर निकलने लगी थी, इसका तरह-तरह से पारिवारिक जीवन पर असर पड़ने लगा थां । स्त्री के व्यक्तित्व के नये आयाम उभरने लगे थे ।

नयी-नयी स्थितियाँ, नयी-नयी समस्याएँ लेकर सामने आने लगी थीं। शहरी जीवन की घुटन, बदलते रिश्तों के सन्दर्भ मे बदलते मूल्य, बढ़ती व्यावसायिकता तथा व्यक्तिवादी दृष्टि ।

कहानी:1 लालपान की बेगम

लेखक: फणीश्वरनाथ रेणु

‘क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नही देखने जाएगी क्या ?”

बिरजू की माँ शकरकंद उबालकर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आंगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खाकर आँगन में लोट लोटकर सारी देह में मिट्टी मल रहा था।

चम्पिया के सिर भी चुड़ैल मँडरा रही है …आध-आंगन धूप रहते जो गयी है सहुआइन की दूकान छोवा- गुड़ लाने, सो अभी तक नही लौटी, दीया-बाती की बेला हो गयी।

आए आज लौट के जरा ! बागड़ बकरे की देह में कुकुरमाछी लगी थी, इसलिए वेचारा बागड़ रह-रहकर कूद-फाँद कर रहा था। बिरजू की माँ बागड पर मन का गुस्सा उतारने का बहाना ढूंढकर निकाल चुकी थी।

पिछवाड़े की मिर्च की फूली गाछ ! बागड़ के सिवा और किसने कलेवा किया होगा ! बागड को मारने के लिए वह मिट्टी का एक छोटा ढेला उठा चुको थी कि पड़ोसिन मखनी फुआ की पुकार सुनायी पड़ी, ‘क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या ?’

लेखक भीष्म साहनी-Bhishm Sahni
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 399
PDF साइज़25.9 MB
CategoryStory

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