हिंदी ज्ञानेश्वरी – Hindi Gyaneshwari Geeta Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
योगी लोग इन मानस नोश दाणा करते हैं, परम्तु उनके मनमें ह बावका स्पर्श भी नहीं होता, इसलिए वे कर्म उनके लिए बन्धक नहीं होते। जिस समय कोई मनुष्य पिशाचके चित्तके समान भ्रमिष्ट होता है,
उस समय उसकी इन्द्रियोंकी क्रियायें पागलपनकी-सी जान पड़ती है। उसे आस-पासकी सब वस्तुओं और मनुष्योंके रूप और बाकार तो दिखाई देते है, यदि उसे पुकारा जाय तो वह सुनता भी है
वह स्वयं अपने मुख से बोल भी सकता है, परन्तु देखने से यह नहीं जान पड़ता कि वह कुछ सम- झता भी है। परन्तु अब व्यर्थकी और बातोंकी आवश्यकता नहीं ।
जो कर्म सब प्रकारके कारणोंके बभावमें और आपसे आप होते हैं, उन्हे प्रन्दिरय-क्मे कहते हैं । और जो काम समझ-बूझकर किये जाते हैं, वे वास्तवमें बुद्धिके कर्म हैं।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से ये सब बातें कह कर आगे यह भी कहा कि-“वे लोग बुद्धिपूर्वक मन लगाकर सब कर्मों का आचरण तो करते परन्तु अपनी निष्कर्म वृत्तिके कारण वे मुक्त ही रहते हैं।
क्योंकि बुद्धिसे लेकर शरीर तकके सम्बन्धमें उनमें अह-भावका कोई विचार या स्मृति ही नहीं होती और इसी लिए वे सब प्रकारके कर्म करते रहने पर भी गुद्ध हो रहते हैं।
हे अ्जुन, कतृंत्की अहं-भावनाके बिना ही सब प्रकारके कर्म करना “निष्कर्म काम” कहलाता है र सद्गुरु से प्राप्त होनेवाला यह रहस्य-जान उसे प्राप्त रहता है ।
जब ऐसी स्थिति प्राप्त हो जाती है, तब शान्तिकी नदी में ऐसी बाढ़ आती है कि वह अपने पात्रमें पूरी तरहसे भर जानेके कारण ऊपर चारों ओर फैलने लगती है, हे अर्जुन,
मैंने अभी तुम्हें वह तत्त्व वतलाया है, वाचाकी सहायता से जिसका वर्णन जल्दी हो ही नहीं सकता ।” हे श्रोतागण, जिनको इन्द्रियोंके उपद्रव पूर्णरूप से नष्ट हो जा
लेखक | रामचंद्र वर्मा-Ramchandra Varma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 564 |
Pdf साइज़ | 112.6 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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