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स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा – Health And Physical Education Class 10 Book PDF Free Download
स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा
शारीरिक शिक्षा अर्थ एवं इतिहास (Meaning and History of Physical Education)
संसार के लोगो के लिए शारीरिक शिक्षा की धारणा नई नही है।
वास्तव में शारीरिक शिक्षा प्राचीन काल में भी मौजूद थी।
शारीरिक शिक्षा शब्द का प्रयोग शारीरिक क्रियाओं के लिये किया जाता रहा है क्योकि शारीरिक शिक्षा परमात्मा की सर्वोतम रचना मनुष्यों के लिये अत्यावश्यक है।
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है स्वस्थ शरीर कैसे रहे इस हेतु शारीरिक शिक्षा के ज्ञान की जानकारी प्रत्येक इंसान के लिये जरुरी है।
जन्मोपरान्त शिशु इस धरती पर सबसे असहाय परन्तु साथ ही सबसे अधिक संस्कार और शिक्षा ग्रहण करने वाला प्राणी होता है।
पैदा होते ही उसको किसी भी अवस्था में व्यवहार करना नहीं आता, परन्तु मनुष्य जीवन में प्रत्येक इंसान के लिये शरीर की शिक्षा के रूप में शारीरिक शिक्षा का ज्ञान प्रथम पाठशाला यानि परिवार से होता है तत्पश्चात विद्यार्थी जीवन में विद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर वह अपने आपको स्वस्थ एवं बलिष्ठ रखता है।
शारीरिक शिक्षा का अर्थ
शारीरिक शिक्षा का अर्थ शरीर के सर्वागीण विकास की शिक्षा से है जो शारीरिक विकास से प्रारम्भ होकर सम्पूर्ण शरीर को उत्तम रखने हेतु प्रदान की जाती है।
जिसकी बदौलत उत्तम स्वास्थ्य रखने की शारीरिक रूप से बलिष्ठ बनाने की व मानसिक रूप से शारीरिक शिक्षा सक्षमता प्राप्त कराने की शिक्षा है।
शारीरिक शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक मानसिक और भावात्मक रूप से तन्दुरुस्ती प्रदान करने वाली शिक्षा है।
शारीरिक शिक्षा की परिभाषाएँ
सुभाष चन्द्र के अनुसार “शारीरिक शिक्षा वह शिक्षा है जिससे व्यक्ति मन वचन कर्म से अपनी आयु के अनुसार बिना थके अपने कार्य को लम्बे समय तक सुचारु रूप से कर सके।
अर्जुन सिंह सोंलकी के अनुसार, शारीरिक शिक्षा बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रकाशित करने की रोशनी है ।
हेमलता रावल के अनुसार “शरीर से संबंधित विभिन्न गतिविधियों व उसे करने की सही तकनीकों के विषय में ज्ञान व जागरुकता उत्पन्न करना शारीरिक शिक्षा है।
मोहन राजपुरोहित के अनुसार “मानव शारीर के सर्वागिण विकास एवं उत्तम स्वास्थ्य प्राप्ति का आधार शारीरिक शिक्षा है।
भारतीय शारीरिक शिक्षा एवं मनोरंजन के केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड के अनुसार, शारीरिक शिक्षा शिक्षा ही है।
यह वह शिक्षा है जो बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व तथा उसकी शारीरिक प्रक्रियाओं द्वारा उसके
शरीर मन एवं आत्मा की पूर्णरूपण विकास हेतु दी जाती है।
उपर्युक्त परभिाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक अभिन्न अंग है।
उत्तम स्वास्थ्य के लिये मनुष्य के लिये अत्यावश्यक है।
शारीरिक शिक्षा केवल शरीर की शिक्षा ही नही अपितु सम्पूर्ण शरीर का ज्ञान है। वास्तव में शारीरिक शिक्षा बालक की वृद्धि एवं विकास में सहायक है।
जिसके पालन से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है तथा स्वस्थ्य एवं खुशहाल जीवन व्यतीत हो सकता है।
निष्कर्ष रूप में अन्त में हम यह कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा मात्र शारीरिक विकास में ही उपयोगी न होकर मानसिक सामाजिक और संवेगात्मक विकास में सहायक है एवं उत्तम स्वास्थ्य प्राप्ति का आधार है।
शारीरिक हिला का इतिहास
शारीरिक शिक्षा का इतिहास प्राचीन काल से ही विद्यमान है भारत वर्ष में शारीरिक शिक्षा का प्राचीन काल से महत्वपूर्ण स्थान है।
विश्व की सबसे पुरानी व्यायाम प्रणाली भारत की है।
जिस समय यूनान, स्पार्टा और रोम मे शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में झिलमिलाते हुये तारे का अभ्युदय हो रहा था उससे पूर्व भारत में वैज्ञानिक आधार पर शारीरिक शिक्षा का प्रचलन था।
आश्रमों तथा गुरुकुलों में अखाड़ो एवं व्यायामशालाओं में विद्यार्थी गृहस्थी व सन्यासी व्यायाम का अभ्यास करते थे।
इन व्यायामों में दष्ट बैठक, मुगदर, गदा, नाल, धनुर्विद्या मुष्टी वजनुष्टी, आसन, प्राणायाम सूर्य नमस्कार, नवली नैती पोती बस्ती सहित अनेक क्रियाए होती थी। भारत में शारीरिक शिक्षा का इतिहास
पुण्य भूमि भारत वर्ष में शारीरिक शिक्षा का इतिहास अति प्राचीन है क्योंकि सभी विद्याओं में भारत विश्व गुरु रहा है।
निरोगी काया का पहला सुख माना गया।
भारत के अनेक ऋषियों ने आदिकाल मे कहा शरीरमा खलु धर्म साधनम अर्थात यह शरीर ही धर्म का श्रेष्ठ साधन है और उत्तम शरीर शारीरिक शिक्षा से ही प्राप्त होता है।
भारत वर्ष में शारीरिक शिक्षा की जानकारी वेद संहिताओं उपनिषदों, रामायण महाभारत आदि ग्रन्थों में भी प्राप्त होती है कुछ श्लोको में देवताओ के शरीर रूपी आकार का वर्णन आता है।
जिससे यह बात पुष्ट होती है कि लोगो को अपने शरीर के बारे में ज्ञान था शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट होने के ज्ञान की सम्पूर्ण जानकारी सतयुग काल, त्रेता युग, द्वापर युग में मिलती है महर्षि पंतजलि के योग, प्राणायाम् आसन से विस्तृत शारीरिक शिक्षा की जानकारी मिलती है।
जिससे व्यक्ति शारीरिक बलिष्ठता ही नही बल्कि आत्मिक उन्नति प्राप्त कर अपनी आत्मा को परमात्मा से जोडने का सामर्थ्य प्राप्त कर लेता था।
दिव्य दृष्टि की शिक्षा प्राप्त कर लेता था महर्षि वाल्मिकि ने शारीरिक शिक्षा के माध्यम से दिव्या दृष्टि को प्राप्त कर लिया था।
महाभारत युद्ध का आखो देखा हाल नेत्रहीन राजा धत्रराष्ट्र को संजय ने दिव्य दृष्टि के माध्यम सुना दिया था यह शारीरिक शिक्षा का कमाल प्राचीन काल से था अतः इसमें कोई अतिश्योक्ति नही कि शारीरिक शिक्षा का संबंध सृष्टि पर मानव सृजन से हुआ है।
जन्म के बाद शिशु को पहली गुरु माता ने शरीर से संबंधित ज्ञान दिया और मानव वंश विस्तार बढ़ा।
यदि शारीरिक शिक्षा न होती तो धरती पर मानव वंश नही बढता हमे देवताओं और राक्षसों के युद्ध का भी वर्णन मिलता है।
उस काल में प्राणायाम और योग बल का उल्लेख मिलता है जिसकी बदौलत लम्बी आयु प्राप्त की जाती थी। शारीरिक शिक्षा के इतिहास के अध्ययन को निम्न भागो में बांट सकते है
वैदिक काल
महाकाव्य काल
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 135 |
PDF साइज़ | MB |
Category | Book |
Source/Credits | rajeduboard.rajasthan.gov.in |
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