शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा | Health And Physical Education Class 9 PDF In Hindi

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स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा – Health And Physical Education Class 9 Book PDF Free Download

स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

अध्याय- 1

शारीरिक शिक्षा अर्थ, महत्व व उद्देश्य (Meaning, Importance & Objectives of Physical Education)

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है।

व्यक्तित्व के दो प्रथम स्वस्थ एवं सुगठित शरीर द्वितीय स्वस्थ चिन्तन व व्यवहार स्वस्थ शरीर से तात्पर्य है शारीरिक अंग-प्रत्यंगों की सुव्यवस्थित वृद्धि, उनका समुचित विकास एवं सभी अंगों की निर्धारित कार्यदक्षमता।

स्वस्थ चिन्तन शरीर की ऐसी मानसिक दक्षता है जो बालकों में उचित एवं योग्य निर्णय लेने ब उसे कार्य में क्रियान्वित करने की क्षमता प्रदान करता है।

शारीरिक शिक्षाको विद्यालय शिक्षण प्रक्रिया में इसी लक्ष्य की प्राप्ति को दृष्टिगत रखकर सम्मिलित किया गया है।

शारीरिक शिक्षा का शिक्षण सहज एवं नैसर्गिक रूप में बालक के शरीर को सुगठित, स्वस्थ एवं क्रियाशील रहने की प्रेरणा देकर व्यक्तित्व निर्माण के साथ-साथ समाज निर्माण एवं उत्थान का एक घटक बनाने में सहायक होता है।

हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों तथा वेद-पुराणों ने शारीरिक शिक्षा पर बहुत बल दिया था, उस समय भी यौगिक क्रियायें की जाती थी जैसे-जैसे सभ्यताओं का विकास हुआ शारीरिक शिक्षा व शिक्षा का भी विकास होता गया।

आधुनिक युग को यन्त्र युग कहा जाता है। आज प्रत्येक कार्य को मशीन द्वारा किया जाता है। व्यक्ति को बहुत ही कम शारीरिक श्रम की आवश्यकता पड़ती है। यान्त्रिक / मशीनी युग ने मनुष्य को निढाल बना दिया है। ऐसे समय में शारीरिक शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है।

आज घर के काम में हाथ बटाने व पैदल चलने की आदत ही नहीं रही. ऐसी स्थिति में आज के युवाओं को शारीरिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। सुडील एवं स्वस्थ युवक राष्ट सुडील एवं स्वस्थ युवक राष्ट्र की सम्पत्ति ही।

नहीं वरन् उसकी आवश्कयता भी है। हमारे देश के नवयुवक हर क्षेत्र में आगे बढ़े, इसके लिये शारीरिक।

शिक्षा को माध्यम के रूप में अपनाना उचित होगा।

शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य व उद्देश्य : शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बड़ा व्यापक है इसमें विविध प्रकार के कार्यक्रमों का समावेश है जिनमें भाग लेने पर बालक का शारीरिक ही नहीं अपितु उसका मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास इस प्रकार से होता है कि वह अपने भावी जीवन में अच्छे नागरिक की भाँति समाज में जीवनयापन कर सके।

इस विषय के शिक्षण में अनेकों प्रकार के बृहत्त तथा लघु खेलों, दौड़-परिपथ और क्षेत्रीय खेलो नृत्य तथा मनोरंजन के कार्यों, पर्यटन, शिविर व प्रकृति विहार आदि कार्यक्रमों का समावेश हो इसके साथ-साथ इसमें स्वास्थ्य एवं योग शिक्षण, शरीर रचना, शरीर क्रिया विज्ञान आदि शिक्षण के तत्व भी मौजूद है।

शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में आने वाले ये समस्त क्रिया-कलाप बालक के शिक्षण के लिये ऐसे हर है जिनमें भाग लेकर बालक को एक व्यक्तित्व पूर्ण नागरिक बनाने का साध्य अर्जित किया जाता है।

जिस प्रकार शिक्षा बालक को सुसंस्कृत व्यवहार में डालती है उसी प्रकार शारीरिक शिक्षा भी अपने तीव्र गतियुक्त वृहद मांसपेशीय क्रिया-कलापों से बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास में अपना योगदान देती है। इस दृष्टि से यह एक ऐसा विषय है जो बालक व युवा में निम्नांकित उद्देश्यों की पूर्ति है।

सेन्ट्रल एडवायजरी बोर्ड ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन एण्ड रिक्क्रेयशन 1956 के प्रतिवेदन के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों का उल्लेख इस प्रकार है-

  1. शारीरिक अंगों की पुष्टता का विकास 2. स्नायु मांसपेशीय कुशलता का विकास।
  2. चरित्र एवं व्यक्तित्व का विकास

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि शारीरिक शिक्षण केवल बल या शरीर संवर्धन ही नहीं वरन यह व्यक्तित्व संवर्धन भी है।

जे. एफ. विलियम्स के अनुसार शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति तथा व्यक्ति दलों के लिये तन परिस्थितियों में कुशल नेतृत्व प्रचुर सुविधाएं तथा समय का प्रावधान करना है जो भौतिक दृष्टि से स्वस्थ, मानसिक रूप से सजग तथा सामजिक दृष्टि से सशक्त हो। इस परिभाषा पर ध्यानपूर्वक विचार करने पर चार संकल्प सामने आते है।

  1. कुशल नेतृत्व
  2. अधिक सुविधा
  3. प्रत्येक व्यक्ति तथा समूह के लिए खेल में भाग लेने की संभावना
  4. शारीरिक रूप से पूर्ण, मानसिक रूप से साहसिक तथा सामाजिक रूप से सशक्त
  5. परिस्थिति या व्यक्ति तथा व्यक्ति दलों का विकास शारीरिक शिक्षा का अंतिम ध्येय है कुशल नायक, प्रचुर सुविधाएं तथा समय, ध्येय तक पहुँचने क है कुशल नायक, प्रचुर सुविधाएं तथा समय, ध्येय तक पहुँचने के साधन है तथा खेल परिस्थिति एवं व्यायाम प्रक्रियाएं शारीरिक शिक्षा की कर्मभूमि है।

शारीरिक शिक्षा की राष्ट्रीय योजना 1956 के अनुसार शरीर के विभिन्न अंगों को स्वस्थ बनाऐ रखना, चेतना पेशियों का तालमेल, कौशल तथा आचरण और व्यक्तित्व का विकास ही शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य है।

विभिन्न विचारको तथा शारीरिक शिक्षा शास्त्रियों के दृष्टिकोण से शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को कुछ वर्गों में बाटा जा सकता है।

  1. शारीरिक विकारा: शारीरिक विकास के उद्देश्य का सम्बंध व्यवस्थित शारीरिक व्यायाम के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंग-प्रत्यंगो का विकास करना है इससे शरीर शक्ति में बल का विकास होता है ।
लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 130
PDF साइज़7 MB
CategoryEducation
Source/Creditsrajeduboard.rajasthan.gov.in

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