हठयोग प्रदीपिका | Hatha Yoga Pradipika PDF In Hindi

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हठयोग प्रदीपिका – Hatha Yoga Pradipika Pdf Free Download

हठयोग प्रदीपिका | Hatha Yoga Pradipika Book/Pustak Pdf Free Download In Hindi

हठयोग प्रदीपिका के संस्कृत सिद्धान्त

भाषार्थ-कदाचित् वहो कि, मंत्रयोग सगुणध्यान-निर्गुणध्यान- मुद्रा श्रादिसेही राज चोग सिद्ध होजायगा हठयोगविचावे उपदेशका या फल ह सो ठीक महीं, ययो कि जिनका चित्त व्युत्थान ( ) है उनको ंद योग आदि राजयोग की सिद्धि नहीं

होसवती इससे हटयोगके द्वाराही राज्योगकी रिद्धिको वहते हुये इंकार गरंथके श्वारंभकी] प्रतिश करते है कि, त्रयोग दि अनेक मतोका जो गाढ झंकार उसके विषे भ्रम से राज येगको जो जानते है उनको भी रायोगका ज्ञान जिससे हो

ऐसी हटयोगप्रदीरपि” काको कृपाके वर्ता ( दयाल ) रवास्माराम योगी ऋर्थात अपने आत्मामें रम णकत्ता स्वात्माराम करते है अर्थात् हटयोगके प्रथाश क श्रथ को रचते हैं। अथवा राजयोगके प्रकाशक जो हठ (सूर्य चन्द्र) उनके प्रकाशक ग्रंथ को रचते हैं

-रवामाराम इस पदसे यह सचित विया है कि, ज्ञानकी सातवी भूमिकाको प्राप्त दह्मदे ताओं में श्रेष्ठ है सोई इस श्रुतिमें लिखा है कि, आस्मा में हे क्रीडा और रमण जिसका ऐसा जो कियाबान है वह ब्रह्मज्ञानिओ में श्रेष्ट है

और सात भूमि योगवासिदहट में कही है कि, शुभेच्छा १, दिचारणा, २, तनुमानसा, ३, सत्त्वापत्ति ४, अससक्ति ५, परार्थाभादिनी ५, तुर्थगा ७ ये सात झनभूमि योर ही है इन सातोमें शुभेच्छा है नाम जिसका और विवेक और वैराष्यसे युक्त और शमदम श्रादि हैं

पूर्व जिसके और तीव्र ( प्रवल ) हें कोकषकी ईन्छा जिस्में ऐसी ज्ञान की भूमि प्रथम योगीजनो ने वही है १-और श्रवण मनन आदिरूप विचारणा ज्ञानकी वह सत्त्वापत्ति नाम की चौथी भूमि व हाती है ४ इन चारोंसे अगली जो तीन भूमि हैं

ये इसंप्रज्ञात योगभूमि कहाती हैं – सर्वापत्ति के अनेतर इसी सत्त्वापत्ति भूम में उपस्थ्ति ( प्राप्त ) हुई जो रिद्धि हैं उनमें असंसक्त योगीको असंस क्ति नार की पांचवीं ज्ञा-भूमि हे ती है । हठयोग प्रदीपिका संस्कृत और हिंदी में भावार्थ सहित |

भाषार्थ-महान् पुरुषों के मानतेसे हठवियाकी प्रशंसा करते हुये ग्रंथकार अपनेकोभी महत्पुरुषोंसेही हठविद्याका लाभ हुआ है इससे अपनाभी गौरव (बडाई) द्योतन करते कि,

मत्स्येंद्र और गोरक्ष आदि हठविद्याको निश्चय से विशेषकर जानते हैं यहां आद्य शब्दके पढनेसे जालंधरनाथ, भर्तृहरि, गोपीचंद आदि भी जानते हैं यह सूचित किया अर्थात् साधन, लक्षणभेद,

फल इनको भी जानते हैं अथवा स्वात्माराम योगी भी गोरक्ष आदि प्रसादसे हठविद्याको जानता है और सबके परम महान् ब्रह्मानेमी इस विद्याका सेवन किया है

इसनें यह योगीयाज्ञवल्क्यकी स्मृति प्रमाण है कि, सबसे पुराने योगके वक्ता हिरण्यगर्भ हैं अन्य नहीं हैं-और कहना तभी होता है जब मानसव्यापार ( मनसे विचार ) पहिले होचुका हो वह मानसव्यापार आगम ( वेद ) लेना सोई इस श्रुतिमें लिखा है कि,

जिसका मनसे ध्यान करता है उसकोही वाणी से कहता है भगवान्ने भी यह विद्या उद्धवऋदिभागवतोंके प्रति कही है और शिवजी तो योगी सिद्ही हैं-इससे ब्रह्मा विष्णु शित्र इन्होंनेभी इस हउयोग विद्या का सेवन किया है.

अज्ञानतां पुंसां राजयोगज्ञानमिति शेषः । करोतीति कर कृ पायाः करः कृपा- करः कृपया आकर इति वा तादृशः। अनेक इठपदीपिका करणे अज्ञानुके व हेतुरित्युक्तम् स्वात्पग्यारमते इति सात्मारामः इठस्य हठ- योगस्य प्रवि प्रकाशकत्वात् इठमदीपिका ताम् । अथवा हठ एव मदीपिका राजयोग प्रकाशकत्वात् तां पते विधत्ते करोतीति यावत् ।

स्वात्माराम इत्यनेन ज्ञानस्य सप्तमभूमिकां प्राप्तो ब्रह्मविद्वरिष्ठ इत्युक्तम् ।

तथाच श्रुतिः – आत्मक्रीड आत्मरतिः किवावानेव ब्रह्मविदां वरिष्ठः’ इति । सप्तभूपश्च योगवासिष्ठे ‘ज्ञानभूमिः शुभेच्छारूपा भयमा समुदा हता विचारणा द्वितीया स्यात्तृतीया तनुमानसा ॥ सश्वापविश्चतुर्थी स्यासतो संक्तिनामिका ।

परार्या पाविनी षष्ठी सप्तमी तुषंगा स्मृता ॥ इति अस्पार्थः ।

शुभेच्छा इत्यारू॥ यस्याः सा शुभेच्छारूपा। विवेकवे- राग्यता शमादिर्विका तत्रिमुमुक्षा प्रथमा ज्ञानस्य भूमिः भूमिका उदा- हता कविता योगिभिरिति शेषः १ विचारणा श्राणात्मिका द्वितीया ज्ञानभूमिः स्यात् ।

अनेकार्य ग्राहकं मनो यदाऽनेकार्थान्परित्यज्य सदे- कार्यवृत्चिपवादवद्भवति तदा तनुपानसे यस्यां सा तनुपानमा निदिध्या- सनरूपा तृतीया ज्ञानभूमिः स्यादिति शेषः ३ इमास्तिस्रः साधन- मिकाः ।

आसु भूमिषु साधक इत्युच्यते तिसृभिभूमिकाभिः शुद्ध- तःकरणेsi ब्रह्मास्मीत्या कारिकाऽपरोशनारूपा सस्वापत्तिनामिका चतुर्थी ज्ञानभूमिः स्यात् । चतुर्थी फभूमिः । अस्यां योगी ब्रह्मविदि- स्युच्यते । इयं संप्रज्ञातयोग भूमिका ४। वक्ष्यमाणास्तिस्रोऽपंपज्ञातयोग भूमयः ।

सत्थापत्तेरनंवरा सत्वापत्तिज्ञिकायां भूमावुपस्थितासु सिद्धिषु असं पक्तस्यासं सक्तिनामिका पंचमी ज्ञानभूमिः स्यात् अस्यां योगी स्वयमेव व्युत्तिष्ठते । एतां भूमिं प्राप्तो ब्रह्मविद्वर इत्युच्यते ५।

परब्रह्मा- तिरिक्त पर्थं न भावयति यस्यां सा परार्थाविनी षष्ठी ज्ञानभूमिः स्यात् । योगी पर प्रबोधिन एव व्युत्थितो भवति । एतां प्राप्तो ब्रह्मविद रीयानित्युच्यते तुषंगा नाम सप्तमी भूमिः स्मृता ।

Hatha Yoga In English

लेखक खेमराज श्रीकृष्णदास-Khemraj Shrikrishnadas
स्वात्माराम- Svatmaram
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 233
Pdf साइज़49.7 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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