गुरु ग्रन्थ साहिब वाणी एवं सिद्धांत | Guru Granth Sahib Vani Evm Siddhant Book/Pustak PDF Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
गुरु ग्रंथ साहिब और भारतीय दर्शन
वैदिक संस्कृति और श्रमण सँस्कृति ऐसी दो विचारधाराएं हैं जो भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलित हैं। वैदिक संस्कृति तो आर्यों के भारत प्रवेश और पक्के तौर पर बस
जाने के साथ-साथ फली फूली परन्तु मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाईयों से प्राप्त मुद्राएँ और सीलों आदि से स्पष्ट है कि आर्यों के आने से पहले ही भारत में कठोर साधना करने वाले ऋषि मुनि मौजूद थे।
ऋगवेद (१०.१३६ ) के केशी सूक्त में मन्त्रदृष्टा ऋषि एक लम्बे बालों वाले नागा संन्यासी को देखकर हैरानी प्रकट करता है। ऋगवेद (८.१७.१४) में इन्द्र को मुनियों का मित्र कहा गया है-
“इन्द्रो मुनिनाम सखा”। इन्द्र जो कि वैदिक ब्राह्मण वर्ग का प्रतिनिधि माना गया है और यज्ञ यागों की बलियों को प्राप्त करने और देने वाला माना गया है,
त्यागी मुनियों का मित्र तो नहीं माना जा सकता परन्तु इस वाक्य से यह स्पष्ट है कि वैदिक युग में तपस्वी मुनि अवश्य विद्यमान थे जो वास्तव में श्रमण संस्कृति के साथ सम्बन्धित भारत के आदि निवासी थे
जिन्हें आर्यों ने पंजाब (पंचनद, जिसे वैदिक साहित्य में सप्त सिन्धु प्रदेश भी कहा गया है) के मार्ग से भारत में प्रवेश करके पराजित किया और इस श्रमण सँस्कृति को कुछ शताब्दियों के लिये दब जाने के लिये विवश कर दिया।
बाद में यही थारा उपनिषदों के समय में पुनः महात्मा बुद्ध और महावीर के श्रमण आन्दोलन के रूप में प्रकट हुई और इसने भारत के अनेक राजाओं महाराजाओं को प्रभावित किया।
वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन से स्पष्ट है कि ये ग्रन्थ मुख्य तौर पर उत्तर भारत और विशेष तौर पर पंजाब और उसके आसपास के क्षेत्र में सम्बन्धित वर्णन ही सामने लाते हैं।
लेखक | जोध सिंह-Jodh Singh |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 285 |
Pdf साइज़ | 8.7 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
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