कुण्डलिनी जागरण – Gayatri Sadhana Se Kundalini Jagran Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
शरीर में दो गुजाएँ, दो पैर, दो आँखें, दो फॅफड़े, दो गुर्दे आदि है। अहा शरीर भी दो शक्ति धाराओं के सहारे यह सृष्टि प्रपंच संजोये हुए है, इन्हें उसकी दो पलियाँ, दो धाराएँ आदि किसी भी शब्द प्रयोग के सहारे ठीक तरह वस्तुस्थिति को समझने का प्रयोजन पूरा किया जा सकता है ।
पत्नी शब्द अलंकार मात्र है। चेतन सत्ता का कुटुम्ब परिवार मनुष्यों जैसा कहाँ है ? अग्नि तत्व की दो विशेषताएँ हैं-नरमी और रोशनी ।
कोई चाहे तो इन्हें अग्नि की दो पत्नियों कह सकते हैं । यह शब्द अरुचिकर लगे तो पुत्रियाँ कह सकते है । सरस्वती को कहीं ब्रह्मा की पुत्री कहीं पत्नी कहा गया है ।
इसे स्थूल मनुष्य व्यवहार जैसा नहीं समझना चाहिए । यह अलंकारिक वर्णन मात्र उपमा भर के लिए है। आत्मशक्ति को गायत्री और वस्तु-शक्ति को सावित्री कहते हैं । सावित्री साधना को कुण्डलिनी जागरण कहते हैं । उसमें शरीरगत प्राण ऊर्जा की प्रसुप्ति, विकृति के निवारण का प्रयास होता है ।
बिजली की ऋण और घन दो धाराएं होती है । दोनों के मिलने से शक्ति प्रवाह व्हता है ।
गायत्री और सवित्री के समन्वय से साधना की सम् आवश्यकता पूरी होती है । गायत्री साधना का सन्तुलित लाभ उठाने के लिए सावित्री शक्ति को भी साथ लेकर चलना पड़ता है ।
समन्वयात्मक साधना का जितना महत्व है उतना एकांगी का, असंबद्ध का नहीं । प्रायः साधना क्षेत्र में इन दिनों यही भूल होती रही है ।
ज्ञान-मार्गी, राजयोगी, भक्तिपरक साधना तक सीमित रह जाते है और हठयोगी, कर्मकाण्डी, तप साधनाओं में निमग्न रहते हैं ।
उपयोगिता दोनों की है । महत्ता किसी की भी कम नहीं, ( पर उनका एकागीपन उचित नहीं ) दोनों को जोड़ा और मिलाया जाना चाहिए ।
लेखक | श्रीराम शर्मा-Shriram Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 49 |
Pdf साइज़ | 2.1 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण – Gayatri Sadhana Se Kundalini Jagran Book Pdf Free Download