गणेश पुराण एक अध्ययन | Ganesh Puran PDF In Hindi

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गणेश पुराण – Ganesh Puran Ek Adhyayan PDF Free Download

गणेश पुराण एक अध्ययन

दूसरा तथ्य यह सामने आता है कि सामाजिक परिवर्तन, अस्थिरता तथा संक्रमण के दौर से उत्पन्न अव्यवस्था में प्राचीन परम्परागत धार्मिक आदर्शों और विश्वासों को

इस प्रकार जीवित रखना कि वे नवीन परिस्थितियों और प्रवृत्तियों के साथ समायोजन और सहअस्तित्व स्थापित करके अपना वर्चस्व कायम रख सकें, साथ ही समाज में संस्थागत धार्मिक प्रवचनों के द्वारा

एक ऐसी व्यवस्था बनाना जिनमें पुरातन एवं अर्वाचीन तत्व परस्पर संश्लिष्ट रूप में सामने आयें-यह एक नितान्त जटिल प्रक्रिया थी। इसे पुराणकारों ने निरन्तर परिवर्तन,

परिवर्द्धन और संशोधन के द्वारा सम्पन्न किया इस दृष्टि से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि जिस प्रकार की परिस्थितियों ने पुराणों की रचना को उत्प्रेरित किया था, लगभग वैसी ही प्रवृत्तियाँ उपपुराणों की रचना के लिये भी उत्तरदायी रही होंगी।

हाजरा आदि विद्वानों ने पुराणों में प्राप्त कलियुग के वर्णन को अव्यवस्था और सामाजिक संक्रमण का प्रतिबिम्ब बताया है। इस प्रक्रिया में एक समय ऐसा भी आया जब परम्परागत

अट्ठारह पुराण तत्कालीन सामाजिक और धार्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पूरी तरह समर्थ सिद्ध नहीं हो पा रहे थे

ऐसे में एक दूसरे प्रकार के साहित्य की आवश्यकता अनुभव की गयी, इन्हें ही उप पुराण’ संज्ञा प्रदान की गयी। हाजरा के अनुसार इस वर्ग का साहित्य लगभग 650 ई. से 800 ई. के बीच अस्तित्व में आ चुका था।

यह कालखण्ड उपपुराण जैसे विस्तृत साहित्य की रचना के लिये बहुत अल्प है। क्योंकि इनकी रचना एक लम्बे कालखण्ड में विविध क्षेत्रों में समय-समय पर होती रही।

कूर्म पुराण के अनुसार, उप पुराणों की रचना ऋषियों ने व्यास से अट्ठारह पुराण सुनने की बात की। निष्कर्ष यह है कि उप पुराण अट्ठारह पुराणों के बाद लिखे गये और पुराणों की तुलना इनका धार्मिक महत्व कम है।

मत्स्य पुराण के अनुसार, उप पुराण स्वतंत्र संवर्ग के ग्रन्थ नहीं थे अपितु वे मुख्य पुराणों के उपभेद मात्र थे। इसके विपरीत स्वयं उप पुराणों में इस प्रकार के वर्गीकरण की सूचना नहीं मिलती।

विश्व साहित्य के अक्षय भण्डार में पुराण एक अद्भुत एवं सर्वश्रेष्ठ रत्न हैं वेदों . के पश्चात गुणों का प्रामाण्य है इनका अपना इतिहास है यह अतीत को जोड़ने वाली श्रृंखला के समान है इनमें मानव प्रजा और कल्पना का अद्भुत समन्वय है।

पुराण से नीति एवं धर्म का ज्ञान पद-पद पर प्राप्त होता है। पुराण विद्या शिल्प कला आदि अनेक विषयों की विवेचना होने से शास्त्र भी है पुराण आर्य सर्वस्व हैं।

अखिल भारतीय जनता के हृदय में भक्ति ज्ञान वैराग्य सदाचार तथा धर्मपरायणता को दृष्टिपूर्वक प्रतिष्ठित करने का श्रेय पुराणों को ही प्राप्त है। वेद शास्त्र ईश्वर, वर्णाश्रम-धर्म, पुनर्जन्म, आत्मा की अमरता एवं परलोक की सत्ता पर जो हमारा अदूट .

विश्वास है यह समग्र आस्तिकता पुराणों की ही देन है। क्‍ उपर्युक्त कथित तथ्यों के विचारोपरान्त इन सब पक्षों की पूर्ति को दृष्टिपात रखते हुये “गणेश पुराण-एक अध्ययन” को अनुसन्धान का विषय बनाने का एक मुख्य उद्देश्य यह है कि पुराणों के विषय में प्रचलित मान्यताओं का निराकरण करना, एवं पुराणों के शुद्ध और उपयोगी स्वरूप को समझना। प्रस्तुत शोध विषय में इसी प्रकार की शोध की अनन्त सम्भावनायें अन्तर्भूत तथा विचारणीय एवं गवेषणीय है ।

प्रस्तुत शोध “श्री गणेश जी” को केन्द्र में रखकर किया गया है। श्री गणेश जी सर्व स्वरूप परात्पर, पूर्ण ब्रह्म, साक्षात्‌ परमात्मा तथा विघ्नेश्वर हैं|

उनकी कृपा दृष्टि होने से विघ्नों का पर्वत अपने आप धराशायी होकर क्षण भर में विनष्ट हो जाता है अतएव किसी भी धार्मिक कार्यक्रम के आरम्भ में श्री गणेश की पूजा किये बिना सिद्धि होना सम्भव नहीं हु शा

प्रस्तुत शोध विषय “गणेश पुराण-एक अध्ययन’ का चयन दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुये किया गया है।

प्रथमतः “गणेश पुराण” को उसके सम्पूर्ण वर्ण्य विषय _ के साथ सम्यक्‌ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में प्रस्तुत करना द्वितीयत: गाणपत्य सम्प्रदाय के स्व॒तन्त्र अस्तित्व के आधारभूत मौलिक ग्रन्थ के रूप में इसके महत्व की विवेचना करना;

दोनों बिन्दुओं पर प्रकाश डालने वाला एक मात्र महत्वपूर्ण ग्रन्थ गणेश पुराण’ है।

लेखक कु. विनीता पटेल – Kmr. Vinita Patel
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 343
Pdf साइज़ 57.1 MB
Category धार्मिक (Religious)

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