डार्क हॉर्स एक अनकही दास्ताँ – Dark Horse Book/Pustak PDF Free Download

उपन्यास का कुछ अंश
अभी सुबह के पाँच ही बजे थे। चिडियाँ यूँ कर रही थीं। हल्का-हल्का धुँधलापन छितरा हुआ था। विनायक बाबू जल्दी-जल्दी बदन पर सरसों का तेल घसे, बाल्टी और लोटा लिए घर के ठीक सामने आँगनवाड़ी केंद्र के होते वाले चापानल पर पहुँच गए।
वहाँ पहले से पड़ोस का मंगनू दतुबन कर रहा था। विनायक बाबू ने बाल्टी रखते ही कहा, “तनी नलवा चलाऽव तऽ मंगनू, झट से नहा लें। निकलना है।”
तभी अचानक खेत की तरफ सैर पर निकले ठाकुर जी, जो विनायक सिन्हा के ही स्कूल में साथी टीचर थे, की नजर विनायक जी पर पड़ी। “एतना बिहाने बिहाने असनान-ध्यान हो रहा है, कहाँ का जतरा है मास्टर साब?” खैनी रगड़ते हुए ठाकुर जी ने पूछा।
विनायक बाबू तब तक चार लोटा पानी डाल चुके थे। गमछा से पीठ पोंछते हुए बोले, “हॉ. आज तनी संतोष दिल्ली जा रहा है, वही स्टेशन छोड़ने जाना है, साढ़े दस का ही ट्रेन है।
विक्रमशिला।” “अभी ई भोरे भोरे दिल्ली?” ठाकुर जी ने बड़े कौतूहल से पूछा। विनायक बाबू ने गीली लुंगी बदलते हुए कहा, “हाँ बी.ए. कर लिया। यहीं भागलपुर टीएनबी कॉलेज से कराए।
अब बोला एम.ए. पीएच.डी. का डिग्री जमा करके का होगा ई जुग में! सो दिल्ली जाते हैं, आईएएस का तैयारी करेंगे। जेतना दिन में लोग एम.ए. करेगा मन लगाई हौंक के पढ़ दिया तो ओतना दिन में आईएसे बन जाएगा।”
ठाकुर जी ने सहमति में सर हिलाते हुए कहा, “ऊ बात तो ठीके बोला। हाँ, यहाँ कुछ भविस नै है। खाली एम.ए. बी.ए. के पूछता है आजकल! हमारे साहू साहब भी यहीं किए, इहें बोकारो स्टील प्लांट में हैं। लड़का को बोकारो में पढाए, अभी दिल्लिये भेजे है।
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लेखक | नीलोत्पल मृणाल-Nilotpal Mrinal |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 100 |
PDF साइज़ | 1.3 MB |
Category | Novel |
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