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चंद्रकांता संतति – Chandrakanta Santati PDF Free Download
चंद्रकांता संतति
मैंसा बांधने की कोई जरूरत नहीं, शेर का शिकार पैदल ही किया जाएगा। दूसरे दिन सपेरे रखो ने हाजिर होकर अर्ज किया कि इम जगल में शेर तो है
मगर रात हो जाने के सबब हम लोग उन्हें अपनी आँखो से न देख सके, अगर आज का दिन शिकार न खेला जाय तो हम लोग देख कर उनका पता दे सकेंगे।
आज के दिन भी शिकार खेलना बन्द किया गया। पहर भर दिन बाकी रहे इन्द्रजीत सिंह और आनंद सिंह घोड़े पर सवार हो सपने दोनों खास शेर के शिकार में भैसा बांधा जाता है।
मै साबोधने के दो कारण हैं। एक तो शिकार को लटकाने के लिए ऋत् बय वनरखे आकर खबर दें कि फलाने जंगल में शेर है,
उस बक्त या कई दिनों तक रगर शिकार खेलने वाले की किस कारण शिकार खेलने को फुरसत न इुई श्र शेर को अटकाना चाइना तो भैसा बांधने का हुक्म दिया जाता |
रखे भैया ले जाते हैं और जिस जगह शेर का पता लगता है उसके पास ही किसी भयानक और सायेदार जगल या नाले में मजनूत खू य गाद कार में से को बाँध देते हैं ।
जब शेर में से की सू पासा है तो बहाँ ाता है और भैंसे को खा कर उसी जगल में कई दिनों तक मस्त और येफिक पढा रहता है ।
इस तरह से दो चार में से देकर मह नो २र को बरका लिया जाता है शेर को जब तक खाने के लिए मिलता है बह दूसरे जगल में नहीं जाता ।
शंकर फा पेट थ्री एक्स दफ् खूय भर आय तो उसे सात आठ दिनों तक खाने को परवाने नही रहता । शेर जदी नी नार सफता । दूसरे जब मचान बांध कर शेर का शिकार किया चाहते है।
नावाजी उसी समय उठ खड़े हुए, अपनी गठडी मुठडी वाघ एक शेर पर लाद दिया तथा दूसरे पर आप सवार हो गए। इसके बाद एक शेर की तरफ देख कर कहा, “वधा गङ्गाराम, यहाँ तो आश्रो ।”
वह शेर गुरत उनके पास आया वा राजी न इन्द्रजीतसिंह से कहा, “तुम इस पर सवार हो लो |” इन्द्रजीतसिंह भी कूद कर सवार हो गए और वाजी के साथ साथ दक्षिण का रास्ता लिया बाबाजी के साथी शेर भी कोई आगे कोई पीछे कोई बायें कोई दाहिने हो बाबाजी के साथ साथ जाने लगे ।
शेर ती पीछे रह गए मगर दो शेर जिन पर बाबाजी और इन्द्र जीनसिंह सवार थे श्रागे निकल गए दो पहर तक ये दोनों च गए 1 जर दिन हमने लगा बाबाजी ने इन्द्रजतसिंह से कहा, “यहाँ ठहर कर कुछ या पी लेना चाहिए ।”
इसके जवाब में कुमार बोले, “वाया, खारे पोन की कोई जरूरत नहीं थाप महात्मा हा ठहरे, मुझे भूख ही नई लगी, फिर टन की क्या जरूरत है १ जिस काम के पीछे पड़े उसमें तुला करना ठीक नहीं बाबाजी न कहा, “शाया, तुम बड़े बहादुर ही, अगर तुम्हारा दिल इतना मजनून न होता ती तिलिस्म तु हारे हाथ से हटेगा ऐसा लगाते पर चलो ”
कुछ दिन में दानी एक पहार्थ क नाचे पहुंचाया नयादी र म चारों तरफ स की पहाटे में लिए जाते दिखाई पड़े और ऐसे ही वीस पचास श्रादाय की साथ लिए पूत से श्राता हुआ राजा शिव नजर पराजि देपदी नऊचा आवाज मा “इनकी पहचान महाराज सनरी तार मेरे कमरे में लटका हुई भारत.
लेखक | देवकी नन्दन खत्री – Devaki Nandan Khatri |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 266 |
PDF साइज़ | 7.7 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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