चंद्रगुप्त मौर्य – Chandragupta Maurya Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
शामीण काय भूपत्तिगण का साञ्चज्य यल काम बहीं रह गया था। चन्द और सूर्यावण की राजधानियाँ अयोध्या और इस्तिनापुर विकृत स मैं भारत के बचस्थक पर मापने साधारण अस्तित्व का परिचय दे रही थीं।
अन्य यच बर्बर जातियों की लगातार चढ़ाव्यों से पवित्र सासिंधु प्रदेश में आच्यो के सामगान का पवित्र स्वर मद हो गया था। पालाशों की लीला-भूमि तथा पजाब मिश्रित जातियों से भर गया था।
जाति, समाज और धर्म सच में एक विचित्र मिश्रण और परिवर्तन-सा हो रहा था। फहीं चामीर और कहीं प्राद्मरण राजा बन बैठे घे ” यह सच भारत-भूमि की भावी दुर्दशा की सूचना क्यों थी । इसका उत्तर केवल यही आपको मिलेगा, कि-पम्मे-सम्बन्धी महा परिवर्तन होनेवाला था ।
वह युद्ध से प्रचारित होनेवाले बौद्ध पम्में फी ओर भारतीय कार्य लोगों का झुकाव था, जिसके लिये वे लोग प्र त हो रहे थे ।इस धम्मपीण को ग्रहण करने के लिये फपिल, कणाद आदि ने श्राध्यों का हृदयपेत्र पहले ही से उर्वर कर दिया था
किन्तु तह मत सर्व साधारण में भी नहीं फैला घा । वैदिक फर्मकाण्ट की जरिनता से पनि पद तथा साएव्य शआदि शाख्त्र ध्प्पय लोगों को सरल और सुगय प्रतीत होने लगे थे ऐसे ही समय पार्श्वनाथ ने क जीव-दयामय धर्म प्रचारित किया और वह घुम्मन बिना
किसी शाख विशेष के, वेद तथा प्रमाण की अपेक्षा करते हुए फैल कर शीघ्रसा के साथ सर्वसाधारण से सम्याग पाने लगा। गायों की मजम्प और कार आदि प्रति सदानेधाली जिपायें गुम्य म्यान में प्यान भीर चिन रिषरया हो गयी : पहिसा का प्रशारण ।
इसमें भारत की उत्तर सीमा में दिया पासियों को भारत प उपनियेण यापित करने का यरखा हु। दार्शनिक यस के प्रयम प्रचार से भारत में धर्म, समाज और साम्राज्य, सबसे विचित्र शी पानिवार्य परिवर्तन हो रहा था
लेखक | जयशंकर प्रसाद-Jai Shankar Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 282 |
Pdf साइज़ | 6.4 MB |
Category | नाटक(Drama) |
चंद्रगुप्त मौर्य – Chandragupta Maurya Book/Pustak Pdf Free Download
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