चंपारण सत्याग्रह आन्दोलन | Champaran Satyagraha Movement PDF In Hindi

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चंपारण सत्याग्रह 1917 – Champaran Satyagraha 1917 PDF Free Download

चंपारण सत्याग्रह

गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917 में एक सत्याग्रह हुआ। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। गांधी दिसंबर 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लिया.

इसी आयोजन में उनकी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई जिसने उनकी राजनीति की दिशा बदलकर रख दी. इस सीधे-सादे लेकिन जिद्दी शख्स ने उन्हें अपने इलाके के किसानों की पीड़ा और अंग्रेजों द्वारा उनके शोषण की दास्तान बताई और उनसे इसे दूर करने का आग्रह किया.

गांधी पहली मुलाकात में इस शख्स से प्रभावित नहीं हुए थे और यही वजह थी कि उन्होंने उसे टाल दिया लेकिन इस कम पढ़े लिखे और जिद्दी किसान ने उनसे बार-बार मिलकर उन्हें अपना आग्रह मानने को बाध्य कर दिया.

परिणाम यह हुआ कि चार महीने बाद ही चंपारण के किसानों को जबरदस्ती नील की खेती करने से हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई. गांधी को इतनी जल्दी सफलता का भरोसा न था. इस तरह गांधी का बिहार और चंपारण से नाता हमेशा-हमेशा के लिए जुड़ गया.

उन्हें चंपारण लाने वाले इस शख्स का नाम था राजकुमार शुक्ल चंपारण का किसान आंदोलन अप्रैल 1917 में हुआ था.

गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने आजमाए हुए अस्त्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती पर ही किया.

यहीं उन्होंने यह भी तय किया कि वे आगे से केवल एक कपड़े पर ही गुजर-बसर करेंगे इसी आंदोलन के बाद उन्हें महात्मा की उपाधि से विभूषित किया गया, देश को राजेंद्र प्रसाद आचार्य कृपलानी, मजहरूल हक, ब्रजकिशोर प्रसाद जैसी महान विभूतिया भी इसी आंदोलन से मिली.

इनतथ्यों से समझा जा सकता है कि चंपारण आंदोलन देश के राजनीतिक इतिहास में कितना महत्वपूर्ण है. इस आंदोलन से ही देश को नया नेता और नई तरह की राजनीति मिलने का भरोसा पैदा हुआ.

लेकिन राजकुमार शुक्ल और उनकी जिद न होती तो चंपारण आंदोलन से गांधी का जुड़ाव शायद ही संभव हो पाता अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग के पांचवें भाग के बारहवें अध्याय नील का दाग में गांधी लिखते है, ‘लखनऊ कांग्रेस में जाने से पहले तक में चंपारण का नाम तक न जानता था.

नील की खेती होती है, इसका तो ख्यात भी न के बराबर था इसके कारण हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है, इसकी भी मुझे कोई जानकारी न थी उन्होंने आगे लिखा है, राजकुमार शुक्त नाम के चंपारण के एक किसान ने वहां मेरा पीछा पकड़ा.

वकील बाबू (ब्रजकिशोर प्रसाद, बिहार के उस समय के नामी वकील और जयप्रकाश नारायण के ससुर) आपको सब हात बताएंगे कहकर वे मेरा पीछा करते जाते और मुझे अपने यहा आने का निमंत्रण देते जाते.

लेकिन महात्मा गांधी ने राजकुमार शुक्त से कहा कि फिलहाल वे उनका पीछा करना छोड़ दें इस अधिवेशन में बजकिशोर प्रसाद ने चंगरण की दुर्दशा पर अपनी बात रखी जिसके बाद कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित कर दिया.

इसके बाद भी राजकुमार शुक्ल संतुष्ट न हुए वे गांधी जी को चंपारण तिवा जाने की जिद ठाने रहे इस पर गांधी ने अनमने भाव से कह दिपा, अपने भ्रमण में चंपारण को भी शामिल कर लूंगा और एक-दो दिन वहां ठहर कर अपनी नजरों से वहां का खत देख भी लूंगा बिना देखे इस विषय पर में कोई राय नहीं दे सकता.

इसके बाद भी इस जिद्दी किसान ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. वे अहमदाबाद में उनके आश्रम तक पहुंच गए और जाने की तारीख तय करने की जिद की. ऐसे में गांधी से रहा न गया. उन्होंने कहा कि वे सात अप्रैल को कलकत्ता जा रहे है.

उन्होंने राजकुमार शुक्ल से कहा कि वहां आकर उन्हें लिया जाए, राजकुमार शुक्ल ने सात अप्रैल, 1917 को गांधी जी के कलकता पहुंचने से पहले ही वहां डेरा डाल दिया था. इस पर गांधी जी ने लिखा, इस अपढ़, अनगढ़ लेकिन निक्षणी किसान ने मुझे जीत लिया

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