बौद्ध धर्म के सिद्धांत | Core Principles Of Buddhism Religion PDF

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बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांत – Principles of Buddhism PDF Free Download

बौद्ध धर्म के सिद्धांतों

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुद्ध द्वारा की गयी थी। उनका जन्म 563 ई.पू. नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक ग्राम में हुआ था। ये शाक्य क्षत्रिय कुल के थे।

वे कुलीन परिवार में जन्म लिए थे। सिद्धार्थ इनका बचपन का नाम था। इनकी पत्नी का नाम यशोधरा तथा पुत्र का नाम राहुल था भोग विलास तथा मोहमाया के जाल को त्यागकर सिद्धार्थ ने बौद्ध धर्म की नींव रखी। जिस स्थान पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई भी उसे बोध गया कहा जाता है।

बौद्ध धर्म के सिद्धांत – भगवान बुद्ध के धार्मिक उपदेशों में चार आर्य सत्य सिद्धांत प्रसिद्ध है। ये चार आर्य सत्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं

  1. दुख – ( Home of suffering)
    संसार में सर्वत्र दुख है। जन्म, मरण, बुढ़ापा और रोग दुख हैं। प्रिय का वियोग और अप्रिय का संयोग दुख है। इच्छित वस्तु की प्राप्ति न होना भी दुख है। संसार का प्रत्येक प्राणी इस दुख से पीड़ित है।
  2. दुख समुदाय (दुख का कारण) (Desires Generate Suffering)

बौद्ध धर्म के अनुसार तृष्णा, अतृप्त इच्छा आदि दुख के कारण हैं। इसी तृष्णा से मोह केकारण जीव संसार में आवागमन के चक्कर में फंसा रहता है। इसी तृष्णा से अहंकार,ममता, राग, द्वेष, कलह आदि दुख उत्पन्न होते हैं।

  1. दुख निरोध (Suffering can be removed)

    बुद्ध ने रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान के निरोध को ही दुख का निरोध माना। उसके अनुसार तृष्णा के विनाश से ही दुख का निवारण संभव है। सभी मनुष्य जीवन-मरण से छुटकारा पा सकता है पुनर्जन्म तथा अन्य दुखों से मुक्ति की अवस्था निर्वाण कहलाती है।
  2. दुख निरोधगामिमिनी प्रतिपदा (Adherence to Noble Path)

    बुद्ध ने बतलाया कि यज्ञ, बलि, देवताओं की पूजा, प्रार्थना,प्रार्थना, मंत्रोच्चारण तथा तपस्या से निर्वाण की प्राप्ति संभव नहीं है। कठोर तपस्या द्वारा शरीर को कष्ट देने से भी निर्वाण की प्राप्ति संभव नहीं है।

    शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु उन्होंने मध्यम मार्ग को उचित बतलाया। मध्यम मार्ग से उनका मतलब था मनुष्य को न तो अधिक वासना में लिप्त होना चाहिए और न शरीर को अधिक कष्ट देना चाहिए। तृष्णा तथा अन्य दूषित संस्कारों के निवारण हेतु बुद्ध ने आत मार्गों (अष्टांगिक मार्ग) का प्रतिपादन किया है। उनके द्वारा प्रतिपादित अष्टांगिम मार्ग.

(i) सम्यक दृष्टि (Right View ) चार आर्य सत्यों को पहचानना ही सम्यक दृष्टि है। मनुष्य में सत्य-असत्य को पहचानने की शक्ति और पाप-पुण्य एवं सदाचार दुराचार में विभेद करने का सामर्थ्य होना चाहिए।

(ii) सम्यक संकल्प (Right Aspiration ) – सम्यक संकल्प का तात्पर्य उनसे है जो लिप्सा और आसक्ति से छुटकारा दिलाए तथा सबके हृदय में सबके लिए प्रेम का भाव जगाये।

(iii) सम्यक वाक् (Right Speech) – सम्यक वाकू का तात्पर्य सत्य, विनम्रता तथा मृदुता से ओत प्रोत वाणी से है।

(iv) सम्यक कर्मात (Right Action)-सत्य कर्म ही सम्यक कर्मात है। प्रत्येक व्यक्ति को अहिंसा तथा सदाचार के नियमों का पालन करना चाहिए। ऐसा काम करना चाहिए जिससे दूसरों को लाभ हो

(v) सम्यक आजीवन (Right Living) – जीवन के लिए अपवित्र तथा भ्रष्ट | साधनों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

(vi) सायक व्यायाम (Right Effort ) – प्रत्येक व्यक्ति को बुरे विचारों से छुटकारा पाने के लिए मानसिक अभ्यास करना चाहिए तथा नैतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान हेतु प्रयत्न करना चाहिए।

(vii) सम्यक स्मृति (Right Mindfulness) -मनुष्य को सदैव याद रखना चाहिए कि उनके सभी कार्य विवेक और सावधानी से हो बौद्ध धर्म में यह स्मृति चार रूपों में उल्लेखित है

(क) कायानुपश्यना शरीर के प्रत्येक संस्कार तथा चेतना के प्रति जागरूक रहना

(ख) वेदानुपश्यना- सुख-दुख की अनुभूतियों के प्रति सजग रहना

(ग) चितानुपश्यना-चित के राग द्वेष को पहचानना

(घ) धर्मानुपश्यना-शरीर, मन और वचन को चेष्टा को समझना।

(viii) सम्यक समाधि (Rigth Contemplation) – जो शारीरिक बंधनों और

मानसिक लगायों से उत्पन्न बुराइयों को दूर करें।

बुद्ध के अनुसार जो भी व्यक्ति उक्त अष्टांगी मार्गों के अनुसार आचरण एवं आवरण करेगा, उसे निर्वाण की प्राप्ति होगी। इसके लिए यज्ञ, बलि तथा पुरोहितों की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं होगी।

अपने अनुयायियों के लिए बुद्ध ने एक आचार विधान भी तैयार किया था। इस

आचार विधान में दस नैतिक उपदेशों का वर्णन है—

  1. अस्तेय,
  2. अहिंसा का पालन,
  3. मद्यपान निषेध,
  4. अपरिग्रह व्रत का पालन,
  5. ब्रह्मचर्य का पालन,
  6. नृत्य-गान का त्याग,
  7. पुष्प तथा सुगंधित वस्तुओं का त्याग,
  8. असमय भोजन का त्याग,
  9. कोमल शैया का त्याग तथा
  10. कामिनी कंचन का त्याग।

बुद्ध ने आत्मा तथा ईश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करते हुए पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत को स्वीकार किया। बुद्ध का मत था कि पुनर्जन्म आत्मा का नहीं वरन् अनित्य अहंकार का होता है।

जब मनुष्य की तृष्णा और वासना नष्ट हो जाती है तब उसे निर्वाण प्राप्त होता है। बौद्ध धर्म में वेद की प्रामाणिकता को अस्वीकार किया गया है।

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भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 6
PDF साइज़2 MB
CategoryEducation
Source/Creditsdrive.google.com

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