गौतम बुद्ध की सूक्तियों का संग्रह | Buddh Vani PDF

भगवान बुद्ध की चुनी हुई सूक्तियों का संग्रह – Buddh Vani Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

चलते समय वह यह स्मरण रखता है कि ‘मै चल रहा हूँ “खब होता है तो मै खड़ा होता हूँ’ यह स्मरण रखता है, जब बैठा होता है तब यह स्मरण रखता है कि ‘मै बैठा हूं; लेटा होता है

तो ‘मै लेया ह यह स्मरण रखता है। उसे देह की समस्त क्रियाओं का शान होता है । इस तरह वह अपनी देह का यथार्थ रीति से अवलोकन करता है। ५. वह अपनी देह का नख से शिखा तक अवलोकन करता है ।

केश, रोम, नख, दात, त्वचा, मास, स्नायु, अस्थि, मज्जा, मूत्राशय कलेजा, यकृत, तिल्ली, फेफड़े, श्रात, अतडिया, विष्ठा, पित्त, कफ, पीब, रक्त, पसीना, मेद, आसू, चरबी, थूक, लार चीजे इस देह में भरी हुई हैं !

कायानुपश्यी योगी अपनी देह मे भरे हुए इन तमाम अपवित्र पदार्थी का उसी प्रकार एक-एक करके अवलोकन करता है जिस प्रकार कि हम विविध अनाजों की पोटली को खोलकर देख सकते हैं कि इसमें यह चावल है,

यह मंग है, यह उड़द है, यह तिल है और यह धान है । वह कायानुपश्यी भिक्षु मरघट में जाकर अनेक तरह के मुद्दों को देखता है। कोई मुर्दा सूजकर मोटा हो गया है,

किसी मुर्दे को कौशं, कुत्त और सियारो ने खाकर और नोच नोचकर छिन्न-भिन्न कर डाला है, तो किसीकी केवल शंख-सी सफेद हड्डिया ही पड़ी हुई हैं। ऐसे भयावने मुर्दो की तरफ देखकर वह यह विचार करता है

‘मेरी देह की भी एक दिन मज्जा, मूत्राशय कलेजा, यकृत, तिल्ली, फेफड़े, श्रात, अतडिया, विष्ठा, पित्त, कफ, पीब, रक्त, पसीना, मेद, आसू, चरबी, थूक, लार और मूत्र ऐसी-ऐसी अपवित्र चीजे इस देह में भरी हुई हैं !

लेखकवियोगी हरि-Viyogi Hari
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ126
Pdf साइज़5.5 MB
Categoryप्रेरक(Inspirational)

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