ब्रह्मवैवर्त पुराण | Brahma Vaivart Puran PDF In Hindi

ब्रह्म वैवर्त पुराण – Brahma Vaivart Purana Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

मङ्गलाचरण, नैमिषारण्यमें आये हुए सौतिसे शौनकके प्रश्न तथा सौतिद्वारा ब्रह्मवैवर्तपुराणका परिचय देते हुए इसके महत्त्वका निरूपण

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः

सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः ।

सरस्वती श्रीगिरिजादिकाश्च

नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥ १ ॥ गणेश, ब्रह्मा, महादेवजी, देवराज इन्द्र, शेषनाग आदि सब देवता, मनु, मुनीन्द्र, सरस्वती, लक्ष्मी तथा पार्वती आदि देवियाँ भी जिन्हें मस्तक झुकाती हैं, उन सर्वव्यापी परमात्माको मैं प्रणाम करता हूँ।

स्थूलास्तनूर्विदधतं त्रिगुणं विराजं विश्वानि लोमविवरेषु महान्तमाद्यम् । सृष्ट्युन्मुखः स्वकलयापि ससर्ज सूक्ष्मं

नित्यं समेत्य हृदि यस्तमजं भजामि॥ २ ॥ जो सृष्टिके लिये उन्मुख हो तीन गुणोंको स्वीकार करके ब्रह्मा, विष्णु और शिव नामवाले तीन दिव्य स्थूल शरीरोंको ग्रहण करते तथा विराट् पुरुषरूप हो अपने रोमकूपोंमें सम्पूर्ण विश्वको धारण करते हैं, जिन्होंने अपनी कलाद्वारा भी

पुरुषरूप हो अपने रोमकूपोंमें सम्पूर्ण विश्वको धारण करते हैं, जिन्होंने अपनी कलाद्वारा भी सृष्टि रचना की है तथा जो सूक्ष्म (अन्तर्यामी, आत्मा)-रूपसे सदा सबके हृदयमें विराजमान हैं, उन महान् आदिपुरुष अजन्मा परमेश्वरका मैं है। तु भजन करता हूँ।

ध्यायन्ते ध्याननिष्ठाः सुरनरमनवो योगिनो योगरूढाः

सन्तः स्वप्रेऽपि सन्तं कतिकतिजनिभिर्यं न पश्यन्ति तप्त्वा ।

ध्याये स्वेच्छामयं तं त्रिगुणपरमहो निर्विकारं निरीहं

भक्तध्यानैकहेतोर्निरुपमरुचिरश्यामरूपं दधानम् ॥ ३ ॥

ध्यानपरायण देवता, मनुष्य और स्वायम्भुव आदि मनु जिनका ध्यान करते हैं, योगारूढ योगिजन जिनका चिन्तन करते हैं, जाग्रत, स्वप्र और सुषुप्ति सभी अवस्थाओंमें विद्यमान होनेपर भी जिन्हें बहुत-से साधक संत कितने ही जन्मोंतक तपस्या करके भी देख नहीं पाते हैं। तथा जो केवल भक्त पुरुषोंके ध्यान करनेके लिये स्वेच्छामय अनुपम एवं परम मनोहर श्यामरूप धारण करते हैं, उन त्रिगुणातीत निरीह एवं निर्विकार परमात्मा श्रीकृष्णका में ध्यान करता हूँ। वन्दे कृष्णं गुणातीतं परं ब्रह्माच्युतं यतः ।

आविर्बभूवुः प्रकृतिब्रह्मविष्णुशिवादयः ॥ ४ ॥ जिनसे प्रकृति, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव आदिका आविर्भाव हुआ है, उन त्रिगुणातीत परब्रह्म परमात्मा अच्युत श्रीकृष्णकी मैं वन्दना करता है।

हे भोले-भाले मनुष्यो ! व्यासदेवने श्रुतिगणोंको बछड़ा बनाकर भारतीरूपिणी कामधेनुसे जो अपूर्व, अमृतसे भी उत्तम, अक्षय, प्रिय एवं मधुर दूध दुहा था, वही यह अत्यन्त सुन्दर ब्रह्मवैवर्तपुराण है। तुम अपने श्रवणपुटोंद्वारा इसका पान करो, पान करो।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

ॐ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।

देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥

लीलाओंको प्रकट करनेवाली देवी सरस्वती तथा उन लीलाओंका गान करनेवाले वेदव्यासको नमस्कार करके फिर जयका उच्चारण (इतिहास पुराणका पाठ करना चाहिये भारतवर्षके नैमिषारण्य तीर्थमें शौनक आदि ऋषि प्रातःकाल नित्य और नैमित्तिक क्रियाओंका अनुष्ठान करके कुशासनपर बैठे हुए थे।

इसी समय सूतपुत्र उग्रश्रवा अकस्मात् वहाँ आ पहुँचे। आकर उन्होंने विनीत भावसे मुनियोंके चरणोंमें प्रणाम किया। उन्हें आया देख ऋषियोंने बैठनेके लिये आसन दिया।

मुनिवर शौनकने भक्तिभावसे उन नवागत अतिथिका भलीभाँति पूजन करके प्रसन्नतापूर्वक उनका कुशल-समाचार पूछा। शौनकजी शम आदि गुणोंसे सम्पन्न थे, पौराणिक सूतजी भी शान्त चित्तवाले महात्मा थे।

अब वे रास्तेकी थकावटसे छूटकर सुस्थिर आसनपर आरामसे बैठे थे। उनके मुखपर मन्द मुस्कानकी छटा छा रही थी। उन्हें पुराणोंके सम्पूर्ण तत्त्वका ज्ञान था।

शौनकजी भी पुराण-विद्याके ज्ञाता थे। वे मुनियोंकी उस सभामें विनीत भावसे बैठे थे और आकाशमें ताराओंके बीच चन्द्रमाकी भाँति शोभा पा रहे थे।

उन्होंने परम विनीत सूतजीसे एक ऐसे पुराणके विषयमें प्रश्न किया, जो परम उत्तम, श्रीकृष्णकी कथासे युक्त, सुननेमें सुन्दर एवं सुखद, मङ्गलमय, मङ्गलयोग्य तथा सर्वदा मङ्गलधाम हो,

जिसमें सम्पूर्ण मङ्गलोंका बीज निहित हो; जो सदा मङ्गलदायक, सम्पूर्ण अमङ्गलोंका विनाशक, समस्त सम्पत्तियोंकी प्राप्ति करानेवाला और श्रेष्ठ हो; जो हरिभक्ति प्रदान करनेवाला, नित्य परमानन्ददायक, मोक्षदाता, तत्त्वज्ञानकी प्राप्ति करानेवाला तथा स्त्री-पुत्र एवं |

लीलाओंको प्रकट करनेवाली देवी सरस्वती तथा उन लीलाओंका गान करनेवाले वेदव्यासको नमस्कार करके फिर जयका उच्चारण (इतिहास- पुराणका पाठ) करना चाहिये।भारतवर्षके नैमिषारण्य तीर्थमें

शौनक आदि ऋषि प्रात:काल नित्य और नैमित्तिक क्रियाओंका अनुष्ठान करके कुशासनपर बैठे हुए थे। इसी समय सूतपुत्र उग्रश्रवा अकस्मात् वहाँ आ पहुंचे। आकर उन्होंने विनीत भावसे मुनियोंके चरणों में प्रणाम किया।

उन्हें आया देख ऋषियोंने बैठने के लिये आसन दिया। मुनिवर शौनकने भक्तिभावसे उन नवागत अतिथिका भलीभाँति पूजन करके प्रसन्नतापूर्वक उनका कुशल-समाचार पूछा। शौनकजी शम आदि गुणोंसे सम्पन्न थे,

पौराणिक सूतजी भी शान्त चित्तवाले महात्मा थे। अब वे रास्तेकी थकावटसे छूटकर सुस्थिर आसनपर आरामसे बैठे थे। उनके मुखपर मन्द मुस्कानकी छटा छा रही थी। उन्हें पुराणोंके सम्पूर्ण तत्त्वका ज्ञान था।

शौनकजी भी पुराण विद्या के ज्ञाता थे। वे मुनियोंकी उस सभामें विनीत भावसे बैठे थे और आकाशमें ताराओंके बीच चन्द्रमाकी भाँति शोभा पा रहे थे। उन्होंने परम विनीत सूतजीसे एक ऐसे पुराणके विषयमें प्रश्न किया,

जो परम उत्तम, श्रीकृष्णको कथासे युक्त, सुननेमें सुन्दर एवं सुखद, मङ्गलमय, मङ्गलयोग्य तथा सर्वदा मङ्गलधाम हो, जिसमें सम्पूर्ण मङ्गलोका बीज निहित हो; जो सदा मङ्गलदायक, सम्पूर्ण अमङ्गलोंका विनाशक,

समस्त सम्पत्तियोंकी प्राप्ति करानेवाला और श्रेष्ठ हो; जो हरिभक्ति प्रदान करनेवाला, नित्य परमानन्ददायक, मोक्षदाता, तत्वज्ञानकी प्राप्ति करानेवाला तथा स्त्री पुत्र एवं पौत्रोंकी वृद्धि करनेवाला हो।

शौनकजीने पूछा- सूतजी ! आपने कहाँके लिये प्रस्थान किया है और कहाँसे आप आ रहे है? आपका कल्याण हो। आज आपके दर्शनसे हमारा दिन कैसा पुण्यमय हो गया। हम सभी लोग कलियुगमें श्रेष्ठ ज्ञानसे वञ्चित होनेके कारण भयभीत हैं।

संसार- सागर में डूबे हुए हैं और इस कष्टसे मुक्त होना चाहते हैं। हमारा उद्धार करनेके लिये ही आप यहाँ पधारे हैं। आप बड़े भाग्यशाली साधु पुरुष हैं। पुराणोंके ज्ञाता हैं। सम्पूर्ण पुराणोंमें निष्णात हैं और अत्यन्त कृपानिधान हैं।

लेखक महर्षि वेदव्यास-Maharshi Vedvyas
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 796
Pdf साइज़46.3 MB
Category Religious

ब्रह्मवैवर्त पुराण गीता प्रेस गोरखपुर – Brahma Vaivart Puran Book Pdf Free Download

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