नरसिंह पुराण – Narsingh Puran Pdf Free Download
पहला अध्याय
प्रयागमें ऋषियोंका समागमः सूतजीके प्रति भरद्वाजजीका प्रश्न; सूतजीद्वारा कथारम्भ और सृष्टिक्रमका वर्णन
॥ श्रीलक्ष्मीनृसिंहाय नमः ॥ श्रीवेदव्यासाय नमः ॥
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । सरस्वती देवीको नमस्कार देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत् ॥ १
तप्तहाटककेशान्तज्वलत्पावकलोचन वज्राधिकनखस्पर्श दिव्यसिंह नमोऽस्तु ते ॥ २
पान्तु वो नरसिंहस्य नखलाङ्गूलकोटयः । हिरण्यकशिपोर्वक्षः क्षेत्रासृक्कर्दमारुणाः ॥ ३
हिमवद्वासिनः सर्वे मुनयो वेदपारगाः । त्रिकालज्ञा महात्मानो नैमिषारण्यवासिनः ॥ ४
येऽर्बुदारण्यनिरताः पुष्करारण्यवासिनः । महेन्द्राद्रिरता ये च ये च विन्ध्यनिवासिनः ।। ५
धर्मारण्यरता ये च दण्डकारण्यवासिनः । श्रीशैलनिरता ये च कुरुक्षेत्रनिवासिनः ॥ ६
कौमारपर्वते ये च ये च पम्पानिवासिनः । एते चान्ये च बहवः सशिष्या मुनयोऽमलाः । ७
माघमासे प्रयागं तु स्नातुं तीर्थ समागताः । तत्र स्नात्वा यथान्यायं कृत्वा कर्म जपादिकम् ॥ ८
अन्तयांमी भगवान् नारायण (श्रीकृष्ण) उनके सखा नरश्रेष्ठ नर (अर्जुन) तथा इनकी लीला प्रकट करनेवाली सरस्वती देवीको नमस्कार करनेके पश्चात् ‘जय’ (इतिहास पुराण) का पाठ करे ॥ १ ॥
दिव्य सिंह। तपाये हुए सुवर्णके समान पीले केशंकि भीतर प्रज्वलित अग्रिकी भाँति आपके नेत्र देदीप्यमान हो रहे हैं तथा आपके नखोंका स्पर्श वज्रसे भी अधिक कठोर है, इस प्रकार अमित प्रभावशाली आप परमेश्वरको मेरा नमस्कार है।
भगवान् नृसिंहके नखरूपी हलके अग्रभाग, जो हिरण्यकशिपु नामक दैत्यके वक्ष:स्थलरूपी खेतकी रक्तमयी कीचड़के लगनेसे लाल हो गये हैं, आप लोगोंकी रक्षा करें ॥ २-३ ।।
एक समय हिमालयकी घाटियोंमें रहनेवाले, वेदोंके पारगामी एवं त्रिकालवेत्ता समस्त महात्मा मुनिगण नैमिषारण्य, अर्बुदारण्य और पुष्करारण्यके निवासी मुनि, महेन्द्र पर्वत और विन्ध्यगिरिके निवासी ऋषि, धर्मारण्य,
६ दण्डकारण्य, श्रीशैल और कुरुक्षेत्रमें वास करनेवाले मुनि तथा कुमार पर्वत एवं पम्मासरके निवासी ऋषि-ये तथा अन्य भी बहुत-से शुद्ध हृदयवाले महर्षिगण अपने शिष्योंके साथ माघके महीनेमें स्नान करनेके लिये प्रयाग-तीर्थमें आये। ४-७ ॥
वहाँपर यथोचित रीतिसे स्नान और जप आदि करके सूतजी बोले-तपोधनो! मैं जिन गुरुदेव व्यासजीके | प्रसादसे पुराणोंका ज्ञान प्राप्त कर सका हूँ, उनकी भक्तिपूर्वक वन्दना करके आपलोगोंसे नरसिंहपुराणकी कथा कहना आरम्भ करता हूँ।
जो समस्त देवताओंके एकमात्र कारण और वेदों तथा उनके छहों अङ्गोंद्वारा जाननेयोग्य परम पुरुष विष्णुके स्वरूप हैं; जो विद्यावान्, विमल बुद्धिदाता, नित्य शान्त, विषयकामनाशून्य और पापरहित हैं,
उन विशुद्ध तेजोमय महात्मा पराशरनन्दन वेदव्यासजीको मैं सदा प्रणाम करता हूँ। उन अमित तेजस्वी भगवान् व्यासजी को नमस्कार है, जिनकी कृपासे मैं भगवान् वासुदेवकी इस कथाको कह सकूँगा।
मुनिगण! आपलोगोंने भलीभांति विचार करके मुझसे जो महान् प्रश्न पूछे हैं, उनका उत्तर भगवान् विष्णुको कृपा हुए बिना कौन बतला सकता है? तथापि भरद्वाजजी ! भगवान् नरसिंहकी कृपाके बलसे ही आपके
प्रश्नों के उत्तरमें अत्यन्त पवित्र नरसिंहपुराणकी कथा आरम्भ करता हूँ। आप ध्यानसे सुनें। अपने शिष्योंके साथ जो-जो मुनि यहाँ उपस्थित हैं, वे सब लोग भी सावधान होकर सुनें। मैं सभीको यथावत् रूपसे नरसिंह पुराणकी कथा सुनाता हूँ
यह समस्त चराचर जगत् भगवान् नारायणसे ही उत्पन्न हुआ और वे ही नरसिंहादि रूपोंसे सबका पालन करते हैं। इसी प्रकार अन्तमें यह जगत् उन्हीं ज्योतिःस्वरूप भगवान् विष्णुमें लीन हो जाता है।
भगवान् जिस प्रकार सृष्टि करते हैं, उसे मैं बतलाता हूँ, आप सुनें। सृष्टि को कथा पुराणों में ही विस्तारके साथ वर्णित है, अत: पुराणों का लक्षण वंतानेके लिये यह एक श्लोक साधारणतया सभी पुराणों में कहा गया है।
मुने! इस श्लोकको पहले सुनकर फिर सारी बातें सुनियेगा। यह श्लोक इस प्रकार है-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित इन्हीं पाँच लक्षणोंसे युक्त ‘पुराण’ होता है। आदिसर्ग, अनुसर्ग, वंश,
मन्वन्तर और वंशानुचरित-इन सबका मैं क्रमश: संक्षिप्त रूप से वर्णन करता हूँ। कथा आरम्भ करता हूँ। आप ध्यानसे सुनें। अपने शिष्योंके साथ जो-जो मुनि यहाँ उपस्थित हैं, वे सब लोग भी सावधान होकर सुनें।
सूतजी बोले- सपोधनो ! मैं जिन गुरुदेव व्यासजीके प्रसादसे पुराणोंका ज्ञान प्राप्त कर सका हूँ, उनकी भक्तिपूर्वक वन्दना करके आपलोगोंसे नरसिंहपुराणकी कथा कहना आरम्भ करता हूँ।
जो समस्त देवताओंके एकमात्र कारण और वेदों तथा उनके छहों अङ्गोंद्वारा जाननेयोग्य परम पुरुष विष्णुके स्वरूप हैं; जो विद्यावान्, विमल बुद्धिदाता, नित्य शान्त, विषयकामनाशून्य और पापरहित हैं, उन विशुद्ध तेजोमय महात्मा पराशरनन्दन वेदव्यासजीको मैं सदा प्रणाम करता हूँ।
उन अमित तेजस्वी भगवान् व्यासजी को नमस्कार है, जिनकी कृपासे मैं भगवान् वासुदेवकी इस कथाको कह सकूँगा।
मुनिगण! आपलोगोंने भलीभाँति विचार करके मुझसे जो महान् प्रश्न पूछे हैं, उनका उत्तर भगवान् विष्णुकी कृपा हुए बिना कौन बतला सकता है ?
तथापि भरद्वाजजी ! भगवान् नरसिंहकी कृपाके बलसे ही आपके प्रश्नोंक उत्तरमें अत्यन्त पवित्र नरसिंहपुराणकी कथा आरम्भ करता हूँ। आप ध्यानसे सुनें। अपने शिष्योंके साथ जो-जो मुनि यहाँ उपस्थित हैं, ये सब लोग भी |
नरसिंह
प्रहलाद एवं उसकी माता ”’नरसिंहावतार”’ को हिरण्यकश्यप के वध के समय नमन करते हुए नरसिंह नर + सिंह (“मानव-सिंह”) को पुराणों में भगवान विष्णु का अवतार माना गया है।
जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका सिर एवं धड तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे वे भारत में, खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं।
लेखक | महर्षि वेदव्यास-Maharshi Vedvyas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 298 |
Pdf साइज़ | 18.7 MB |
Category | Religious |
नरसिंह पुराण – Narsingh Puran Book/Pustak Pdf Free Download