भूदान गंगा | Bhoodan Ganga PDF In Hindi

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भूदान गंगा – Bhoodan Ganga PDF Free Download

भूदान गंगा

बरते मे को पर दणके थे को हटी है जो दुडडे है डरहै। तो मे इरन्य और करना ये दोनों बारते करनी चाहिए । देश को नही शिकन देना चाहिए। इसका मंत्र या ‘भावलिया मते हैं बही इम्परा मार इन है। हम अपने को शरीर मही समझते ।

एव पचानों पर हमने किये और केसे पचारख एटीर छो भर छोड़ेंगे हर कीये कोइ कीम महीं है । ठसे हम एक कप नंबर एम । पाणे फकरु और चाय पान हिमा। परेरिनरों कपड़ा पान मा भौर गर्मी के दिन ये इम दिन के समक्ष चाहते है की विनिमय बन ।

म ठो फिरोको म्म विस्पर और म किध से भगत । ब अहिया का विचार है चन्य देशों में पर विचार नहीं है यहों तो प्म हैं ‘बेट’ (पुम-पोठ ) बच्मवे हैं ।

किन्तु मम निर्मक बनये, हभी ठपनेगे कि हमारी होयी भौर तमी हम जुर हगे। मैं ब मवयुवी सपा भार हम भारत की प्रति माना ते है तो निर्माता के भाभर पर है अड़ा थकटे ।

पाप मा सोगी के दर्शन से मुझे अपर भोजन हो या है। हिन्दुस्तान की मनवा में मात इध मार्क मारना है तो कुछ ऐसो भी हैं, निमा प्यार मोदी से नहीं ले सकता, भिन्हे इम ‘मूट् म्परमा क सक्ते हं।

एसी मु भाभी में पक म्याना है दर्शन-तथा । रिनुलान की बनवा दरान मे गून द १। मुझे मित्रों के इरान पाठ मानन्द होता है।

पास पर किलो सामान परान वे मन में अत्यन्त तृप्ति महसूस होती है। पोहुत दिनों का प्यासा हो पनी मिय লা उठे ३से तृमि क आनन्द देता दै बसे ही मुझे शी से तुसि का आनन्द दाना।

मैं झाये हैं. फिर मी इमें बह मंत्र गांब-गोंव सुनने को मिलता है। बह मन्त्र है, “बल्पे मातरस” । इम बह कश्ते हैं कि बन्दे मातरम का अर्थ समझ छीजिये | मादा भूमि है और इम छमी उसके पुत्र *ैं—गह तो वेदों ने कह्ा था कौर मही बात ऋषि अंकिस के भेंह से मी निकश्मी |

माठा का उसके संतान के साथ संयोग न रइकर बियोग रहे, पों वश कितनी दु’रल्री होगी यह सोचने की बात है। एम कहते ये “माता सूमि? पर आ्याल बात करते हैं मूमिपति क्री |

यह दितनी जेटृरा और मेड बात है कि जिसे हम माता कहें, ठछीऊ स्वामी बन बैठे हैं ।

इस सो कहते हैं झि “मूल्यामी’ वा “भूपति’ बदतर गारी है। क्गर भूमि भांठा है, हो उसे बदन करना बाहिए |

इम “बम्दे माठरम/ कइते हैं दो उसकी सेवा करने का मौका इरएक को मिलना दी चाहिए। थ बेठे हुए कुछ बच्चो में भूमिदीन बच्चे शणण तो क्या उमहे माठा $ स्ठनपान का अ्घिकार महीं मिरना लाहिए ! एम गए बडा अपर्म और नास्तिकता छमझते हैं कि रोग भूमि क्री मारूढियत फडड औैठे हैं | इसलिए पौरन सबको भूमि बोट देनी चाशिए |

अस्दे आातरम्‌ मी भायशयक कोग पूछते हैं कि इमारे यहां लमीन की कमी है, हम दरिद्र हैं, शो गरीबी शोटने ले क्या ल्‍्यम होगा ! झगर रूएमी बहुत होठी हस रूपमौबान्‌ होठे, तो उसे बोंटने मे मजा मी भाता ।

कुछ शोग कश्त ई कि “दिंदुरणान में दोक्त बढ़ने रो, फिर शरने की बात निकाझो । छेकिन ऐसी बात इम परिषार में दो मई कहते ।

परिवार में झगर दूध कम हो, टो उठे में पी क्ले भर बच्चे ते कटे ‘बूप कम हे इसडिए हैने पी खिया छब् बऱेसा तो सभक्तो मिलेया’ तो आप उसे मा ब़ेंगे या राएसी ! निश्चय दी यह भासुरी बिचार है कि रस्सी बदने $ बाद बैंटदारा होमा |

एमरे प्रस थो है उसड़ा मैंट्बारा करो ठमी रुष्मो बढ़ंगी। अगर इम भीमान हो, हो रुप्ती बोरेंगे श्तिम्पन्‌ हीं णो शक्ति बोरेंगे भोर अयर दरिइ हों ता दाखिप मौ बोरेंग | बट करड हा मप्र रूंगे। यह घम है ढ़ एम पड़ांती छे प्पार करडे हो की लपते हैं।

शदीखनाथ टाबुर मे क्या था दि एम कम्दे म्यतरम हो ग्हठे हैं श्द्रिन अरुएठ है “ब्दे प्रातरम! बी ।

लेखक विनोबा भावे -Vinoba Bhave
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 341
Pdf साइज़4 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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