भक्त चरितांक – Bhakt Charitank Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
उन्होंने कहा-हम तुम्हारी सेवासे ही संतुष्ट हैं, मुझे और कुछ भी दक्षिणा नहीं चाहिये ।’ गुरुजीके यो कहनेपर भी मैं बार-बार उनसे गुरुदक्षिणाके लिये आग्रह करता ही रहा ।
तत्र अन्तमे उन्होने झल्लाकर कहा-अच्छा तो चौदह लाख सुवर्णमुद्रा लाकर हमे दो । ‘ मै इसीलिये आपके पास आया था । महाराज ने कहा-‘ब्रह्मन् ! मेरे हाथोमे धनुष बाणके रहते हुए
कोई विद्वान् ब्रह्मचारी ब्राह्मण मेरे यहाँसे विमुख जाय तो मेरे राज-पाट, धन-वैभवको धिक्कार है । आप बैठिये, मैं कुबेर-लोकपर चढ़ाई करके उनके यहाँसे धन लाकर आपको दूँगा ।
महाराजने सेनाको सुसजित होनेकी आशा दी। बात-की- बातमें सेना सज गयी। निश्चय हुआ कि कल प्रस्थान होगा। प्रातःकाल कोषाध्यक्षने आकर महाराजसे निवेदन किया
महाराज ! रात्रिमे सुवर्णकी वृष्टि हुई और समस्त कोष सुवर्ण मुद्राओंसे भर गया है। महाराजने जाकर देखा कि सर्वत्र सुवर्णमुद्राएँ भरी हैं। वहाँ जितनी सुवर्णमुद्राएँ थीं,
उन भेजना चाहा । ऋषिकुमारने देखा, ये मुद्राएँ तो नियत संख्यासे बहुत अधिक है, तत्र उन्होंने राजासे कहा महाराज !
मुझे तो केवल चौदह लाख ही चाहिये इतनी मुद्राओंका मैं क्या करूँगा, मुझे तो केवल कामभरके लिये चाहिये । इस त्यागक्रो धन्य है ।
महाराजने कहा-ब्रह्मन् ! ये सब आपके ही निमित्त आयी हैं, आप ही इन सबके अधिकारी हैं, आपको ये सब मुद्राएँ लेनी ही होगी।
आपके निमित्त आये हुए द्रव्यको भला, मै कैसे रख सकता हूँ ऋषिकुमारने बहुत मना किया, किंतु महाराज मानते ही नहीं थे, अन्तमें ऋषिको जितनी आवश्यकता थी,
वे उतना ही द्रव्य लेकर अपने गुरुके यहाँ चले गये । शेष जो धन बचा) वह सब व्रादाणोको छुटा दिया गया । ऐसा दाता पृथ्वीपर कौन होगा, जो इस प्रकार याचिका के मनोरथ पूर्ण करे ।
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad Gita Press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 920 |
Pdf साइज़ | 74.4 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
भक्त चरितांक – Bhakt Charitank Book/Pustak Pdf Free Download