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पुस्तक का एक मशीनी अंश
इस मंत्रमें ‘अश्व-पर्णैः’ यह पद अधिक विचार करने योग्य है । जबके स्थानपर’ पर्ण’ जिनपर रखा है ऐसा इसका अर्थ है । रथको खींचनेके लिये अश्व अर्थात् घोरे जोतते हैं । उस स्थानपर इनके रथको खींचने के लिये पर्ण ‘ जोडे होते हैं ।
‘ पर्ण ‘ वह होता है कि जो जहाज पर लगाया जाता है और जिसमें हवा भरकर जहाज चलता है। रथ भी ऐसे होते हैं कि जो बड़े विस्तीर्ण वालुकामय प्रदेशमें ऐसे कपडेके प्राणों से चलते हैं। जहाजके समान स्थोपर ये लगाये जाते हैं इनमें हवा भरती है और उसके बेगसे ये रथ चलते हैं ।
सहारा वालुपदेशमें, राजपुतानाके वालुके प्रदेशों में ऐसे रथ चला सकते हैं । अन्य भूमि पर नहीं चलते । क्योंकि विस्तीर्ण वालुपदेशामें इवा समुद्रपर चलती है वैसी चलती हैनौर कपडे में हवा भरनेसे रथको बेग भी मिलता है ।
मरुत् वीरों के अनेक प्रकार के रथ घे । इनमें पेसे भी रथ सकते है। इस विषयकी अधिक खोज होनी चाहिये।
चलाने के लिये चाबूककी जावश्यकता नहीं है। घोडे थवा हिरन जोते रहनेपर चाबूककी आवश्यकता रहती है। पर से पशु जहाँ रहेंगे नहीं, पर जो रथ कलायन्त्रसे चलाया जाता हो उसके लिये चाबूककी आवश्यकता नहीं रहेगी ।
(अन्-अवसः ) अवस् रक्षकका नाम है । यह रथ बेगम चलने के कारण स्वयं अपना रक्षण करता है । दूसरे रक्षककी आवश्यकता नहीं रहती ।
(रजस्-तूः) धूली उडाता हुआ, धूलीको पीछेसे उडाता हुआ ( पथ्या साधन् याति ) मागको साधता हुआ, अर्थात् इधर उधर न जाता हुआ, सीधा मार्ग का साधन करके यह रथ चलता है।
इतने विवरणसे (१) घोडोंके स्थ, (२) हिरनि यों का रथ, ( ३) घोडे जिसमें जोते नहीं ऐसे घोडोंके विना ही वेगसे धूलि उडाते हुए चलनेवाले रथ ऐसे स्थ इन वीरोंके पास थे ऐसा प्रतीत होता है । आकाशयान भी थे ऐसा दीखता है वे मन्त्र ये हैं
लेखक | दामोदर सातवलेकर-Damodar Satavalekar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 212 |
Pdf साइज़ | 16.4 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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