एक्यूप्रेशर चिकित्सा | Ayurvedic Acupressure PDF In Hindi

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एक्यूप्रेशर चिकित्सा – Acupressure Chikitsa Pdf Free Download

एक्यूप्रेशर चिकित्सा

सपाआपका प्रभावशाली पद्धति है। इतना अवश्य है कि प्राचीन समय से अब तक इसका कोई एक नाम नहीं रहा है। विभिन्न देशों में विभिन्न समय में इस पद्धति को कई नाम दिए गए ।

यह पद्धति इसलिए भी अधिक प्रभावी है क्योंकि इसका सिद्धांत पूर्णरूप से प्राकृतिक है।

इस पद्धति की एक अन्य खूबी यह है कि प्रेशर द्वारा इलाज विल्कुत सुरक्षित (nfe) होता है तथा इसमें किसी प्रकार के नुकसान (side effect) का बिल्कुल नहीं है

एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार समस्त रोगों को दूर करने की शक्ति शरीर में हमेशा मौजूद रहती है पर इस कुदरती शक्ति को रोग निवारण के लिए सक्रिय करने की आवश्यकता होती है।

एक्युप्रेशर पद्धति कितनी पुरानी है तथा इसका किस देश में आविष्कार हुआ. इस बारे में अलग-अलग मत है।

ऐसा विचार है कि एक्युप्रेशर जिसकी कार्य विधि एवं प्रभाव एक्युपंचर तुल्य है, का आविष्कार लगभग 6,000 वर्ष पूर्व भारतवर्ष में ही हुआ था ।

आयुर्वेद की पुरातन पुस्तकों में देश में प्रचलित एक्युपंचर पद्धति का वर्णन है । प्राचीन काल में चीन से जो यात्री भारतवर्ष आए, उन द्वारा इस पद्धति का ज्ञान चीन में पहुँचा जहाँ यह पद्धति काफी प्रचलित हुई।

चीन के चिकित्सकों ने इस पद्धति के आश्चर्यजनक प्रभाव को देखते हुए इसे व्यापक तौर पर अपनाया और इसको अधिक लोकप्रिय तथा समृद्ध बनाने के लिए काफी प्रयास किया।

यही कारण है कि आज सारे संसार में यह चीनी चिकित्सा पद्धति के नाम से मशहूर है।

डाक्टर आशिमा बैटर्जी, भूतपूर्व एम० पी०, ने 2 जुलाई, 1982 को राज्य सभा में यह रहस्योद्घाटन करते हुए कहा था कि एक्युपंचर का आविकार चीन में नहीं अपितु भारतवर्ष में हुआ था ।

इसी प्रकार 10 अगस्त, 1984 को चीन में एक्युपंचर सम्बन्धी हु|

चौड़ाई के रुख में शरीर के तीन भाग

एक्युप्रेशर द्वारा इलाज के लिए चिकित्सकों ने मानव शरीर को लम्बाई की भाँति चौड़ाई के में भी बाँटा है। लम्बाई के रुख में जबकि शरीर को 10 भागों में बाँटा गया है, चौड़ाई के रुख में इसको तीन भागों में बाँटा गया है जिसे दौरावर्स जोनस (transverse zones of the body) कहते हैं।

प्रतिबिम्ब केन्द्रों की पहचान करने के लिए शरीर के भागों के अनुरूप हाथों तथा पैरों को भी तीन भागों में बाँटा गया है जैसाकि आकृति नं० 2 में दिखाया गया है।

चौड़ाई के सिद्धांत के अनुसार पहले भाग में सिर तथा गर्दन में स्थित विभिन्न अंगों के प्रतिविन्ध केन्द्र होते हैं अर्थात हाथों तथा पैरों की अंगुलियों तथा हाथों तथा पैरों के बिल्कुल ऊपरी भाग में इन अंगों के केन्द्र है।

दूसरे भाग में उन अंगों के प्रतिबिम्ब केन्द्र हैं जोकि छाती के भाग में स्थित है अर्थात डायाफ्रान (diaphragm) से ऊपरी भाग में तीसरे भाग में ये केन्द्र जाते हैं। जोकि पेट, पेट से नीचे के भाग, टोगों तथा पैरों से सम्बन्धित हैं।

लम्बाई तथा चौड़ाई के सिद्धांत को सामने रखकर कोई भी व्यक्ति हाथों तथा पैरों में विभिन्न अंगों के प्रतिविन्ध केन्द्र बड़ी आसानी से ढूँढ सकता है। इसी सिद्धांत पैरों तथा हाथों के ऊपरी भाग को भी बाँटा गया है जैसाकि आकृति नं० 3 तथा 4 में दिखाया गया है।

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्

महान चिंतक एवं लेखक डाक्टर जॉनसन ने कहा है To preserve health isa moral and religious duty, for health is the basis of all social virtues-we can no longer be useful when not well” अर्थात स्वास्थ्य को बनाए रखना एक नैतिक एवं धार्मिक कर्तव्य है क्योंकि स्वास्थ्य ही सब सामाजिक सद्गुणों का आधार है।

रोग की अवस्था में हम उपयोगी नहीं रह पाते। इसी आशय की संस्कृत में भी एक प्रसिद्ध उदित है- “शरीरानाथ खलु धर्मसाधनम्। अतः स्वास्थ्य को बनाये रखना जहाँ व्यक्ति के निजी तथा पारिवारिक हित में है वही समाज तथा देश के लिए भी लाभकारी है।

कोई भी व्यक्ति अस्वस्थ नहीं रहना चाहता पर सोचने की बात यह है कि मनुष्य रोगी क्यों होता है? रोग होने के दो प्रमुख कारण है पहली अवस्था में मनुष्य अपनी लापरवाही, गलत रहन-सहन, अस्वच्छता, असंतुलित आहार हानिकारक पदार्थों का सेवन, चिंता, मानसिक तनाव तथा व्यायाम हीनता के कारण रोगी होता है।

दूसरी अवस्था में व्यक्ति अपनी लापरवा के कारण नहीं अपितु दूषित वातावरण, संक्रमण, चोट आदि लगने बुढ़ापा जाने तथा कुछ क त्रुटियों के कारण रोगी होता है जो मूलरूप से उसकी अपनी समर्थता से बाहर होते हैं।

शरीर को प्रत्येक आयु में और प्रत्येक परिस्थिति में पूर्णरूप से निरोग रखना कठिन कार्य है क्योंकि शरीर रोगों का घर है- ‘शरीर मंदिर रोग की अवस्था में किसी न किसी चिकित्सा पद्धति का सहारा लेना पड़ता है।

जब से मनुष्यता का सभ्य समाज के रूप में विकास हुआ है तब से ही चिकित्सक लगातार इस कोशिश में है कि अधिक से अधिक प्रभावशाली चिकित्सा पद्धतियों तथा औषधियों की सोच की जाए ताकि मनुष्य लम्बे समय तक निरोग रह सके और अगर रोगग्रस्त हो भी जाए तो स्वस्थ हो सके।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 132
Pdf साइज़350.8 MB
Categoryस्वास्थ्य(Health)
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