मेलुहा के मृत्युंजय | The Immortals of Meluha PDF In Hindi

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मेलुहा – Meluha Ke Mritunjay By Amish PDF Free Download

शिव रचना त्रय

शिव! महादेव। देवों के देव बुराई के विनाशक। भावुक प्रेमी। भीषण योद्धा । सम्पूर्ण नर्तक । चमत्कारी मार्ग दर्शक। सर्व-शक्तिमान, फिर भी सच्चरित्र । हाजिरजवाबी के साथ-साथ उतनी ही शीघ्रता से और भयंकर रूप से क्रुद्ध होने वाले।

कई शताब्दियों से, विजेता, व्यापारी, विद्वान, शासक, पर्यटक, जो भी हमारी भूमि पर आए, उनमें से किसी ने भी यह विश्वास नहीं किया था कि ऐसे महान व्यक्ति सचमुच में ही अस्तित्व में थे।

उन्होंने कल्पित किया कि वे कोई पौराणिक गाथाओं के ईश्वर होंगे, जिनका अस्तित्व मात्र मानवीय कल्पनाओं के क्षेत्राधिकार में ही संभव हो सकता था। दुर्भाग्यवश यह विश्वास ही हमारा प्रचलित ज्ञान बन गया।

लेकिन अगर हम गलत हैं? अगर भगवान शिव एक अच्छी कल्पना से कपोल कल्पित नहीं थे, वल्कि रक्त एवं मांस के बने एक व्यक्ति थे। आपके और मेरे समान ही।

ऐसे व्यक्ति जो अपने कर्म के कारण ईश्वर के समान हो गए हों। यही इस शिव रचना त्रय का आधार वाक्य है जो ऐतिहासिक तथ्यों के साथ काल्पनिक कथा का मिश्रण कर प्राचीन भारत के पौराणिक धरोहर की व्याख्या करता है।

यह पुस्तक भगवान शिव को एवं उनके जीवन को एक श्रद्धांजलि है, जो हमें ढेर सारी शिक्षाएं देता है। वो शिक्षाएं जो समय एवं अज्ञानता की गहराई में खो गए थे।

वह शिक्षा जिससे हम सभी लोग एक बेहतर मनुष्य बन सकते हैं। वह शिक्षा कि प्रत्येक जीवित व्यक्ति में एक संभावित ईश्वर का वास होता है। हमें मात्र इतना करना है कि स्वयं को सुनना है।

मेलूहा के मृत्युंजय रचना त्रय की प्रथम पुस्तक है जो एक असाधारण नायक की जीवन यात्रा का वृत्तांत है। दो और पुस्तकें इसके बाद आनी हैं, नागाओं का रहस्य और वायुपुत्रों की शपथ ।

वे आ गए हैं!

1900 ई.पू., मान सरोवर झील (तिब्बत के कैलाश पर्वत की तलहटी में)

व ने नारंगी छटा बिखेरते आकाश को शिख देखा। मानसरोवर के ऊपर मचलते बादलों के छंटते ही सूर्यास्त का संकेत हो चुका था। एक बार फिर उस तेजस्वी जीवन दाता ने दिन समाप्ति की घोषणा कर दी थी।

शिव ने अपने इक्कीस सालों में कुछ ही सूर्योदय देखे थे। किंतु सूर्यास्त! उसने प्रयास किया था कि वह सूर्यास्त देखना कभी न भूले। कोई और दिन होता तो हिमालय की पृष्ठभूमि में जहां तक दृष्टि जाती वहां तक सूर्य एवं उस विस्तृत झील के इस दृश्य-विस्तार को शिव ने अवश्य देखा होता।

किंतु आज नहीं। वह झील के अंदर तक जाती कगार पर पालथी मारकर बैठ गया और अपने सुडौल मांसल शरीर को वहीं टिका लिया।

झील के निर्मल जल से परावर्तित होते चमकीले प्रकाश में उसे लगे युग-युगांतर के अनेक घावों के दाग चमक उठे। यह देख शिव को अपने उन्मुक्त बालपन की याद हो आई।

वह तो तभी से कई कलाओं में दक्ष हो गया था। उसने झील में पत्थर के टुकड़े फेंकने की कला में भी महारथ हासिल कर ली थी। अपने कबीले में सबसे अधिक बार पत्थर उछालने का कीर्तिमान उसी के नाम था: सत्रह बार।

कोई सामान्य दिन होता तो अपने उल्लासपूर्ण अतीत पर, जो अब वर्तमान की चिंता के वशीभूत था, शिव अवश्य मुस्कुरा उठता। किंतु, आज उसके मुख पर उल्लास का कोई भाव नहीं था।

वह उस क्षण का आनंद लिए बिना ही अपने गांव की ओर लौट पड़ा था। गांव के मुख्य प्रवेश द्वार के पहरे पर भद्र चौकन्ना खड़ा था, किंतु उसके सहायक चौकन्ने नहीं थे। शिव ने अपनी आंखों के इशारे से भद्र को यह बताया।

भद्र पीछे मुड़ा तो उसने घेरे के बाड़े पर अपनी सहायता के लिए लगाए गए दो सैनिकों को ऊंघते पाया। उसने पहले तो उन दोनों को बुरा-भला कहा और फिर उन्हें जगाने के उद्देश्य से जोर से ठोकर मारी। वे दोनों हड़बड़ाकर उठ बैठे।

शिव निश्चिंत होकर झील की ओर पुनः मुड़ गया। उसने मन ही मन कहा।

लेखक अमीश-Amish
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 309
PDF साइज़8.4 MB
CategoryReligious
Source/Creditsarchive.org

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