श्री हित चौरासी के पद | Shri Hita Chaurasi Ji PDF In Hindi

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श्री हित चौरासी के पद – Shri Hita Chaurasi Ji PDF Free Download

श्री हित चौरासी के पद

फाय यातु पर अमरहियोंमे पिचार परे । पिन्तु हमर छ कि दिल चीसो मतिरम से वित मुफ पहाँ फ्रा सफलन है। श्री दिइरिमजी ने इन पर्ने फी रचना काव्यशा की माटीमने रखकर नहीं की भी रितु इस का उपेक्षा न करके नाय-मति काव्य रचकर मति म यस का मागर तर गावित किया था। काव्य की भरमा रस है, हरिवशमी की पाणी का मृला घार रम ही है । पाम्परम सहदयों के सि को चमत्कृत परता का अरिफ भान की सृष्टि करता है यो हरिवंशजो की माया का रस मी रसिक मतों को प्रेम हि यस करके आदिमोर बना देता है।

फाम्पानन्द मानद महोदर दें, हरिपशमी की पाणी फा काम्या नन्द पारी रूप दे । काम्य के भासम्पन नायक-नायिका रति, हम, शोफ आदि स्थायी भार्थो से उ परने में सहायक होते है तो हरिवंशजी के साम्य के कालदन गमास रवि को जागृत पर दिन पो शायत श वि प्रदान परते हैं। भक्ति रम फोरमीक करने वाले मम मत के मह मँ भक्ति काव्य का परम उद्देश्य दिव्य प्रेम-मार्ग से रमिक मध्ये को मपपंधन मे मुबल पर मे नम सोफ में से जाना सांसारिक प्रपंच के धन हो जाते है ।

भय के मन मैं प्यास कम किस रामाकृष्ण रवि का कार पाराय र लहरान लगता है। उस कप कौर पार पार पार में बृद पड़ने के चार समार-मार कर किनार विलीन हो जाम है, शस्त्रीय जाती है और मरत का कम विशुद्ध चरम पवैन्य में मीन दोफर रचा प्रेस का अमन्द उपलब्ध करने लगता है। ‘रित चोरासी’ के पदों के अनुशीलन मे फोटि के भानन

की सृष्टि भक्त के मन में होती है और मैं समझता हूँ यह चौरासी की सबसे बड़ी सार्थकता है।

दिस चौरासी की अमिच्य जना शैली पर भी इस प्रम ग में दो शब्द कहना में आबश्यक समछा हूँ। आज से लगभग सीस वर्ष पूर्व जब मैंने पहली बार हित चौरासी पार-पाँच प पढ़े थे तभी से मरे मनम यह भाव जगा था कि इन पत्रों में भाषा की मालवा के साथ माइये, शापस्य और प्रयाह का जैसा स्वच्छ-सुधरा रूप हूं पैसा अभाषा के किसी म कवि की धारणी में नहीं है । मुझे यह कहते हुए तनिक भीम फोष नहीं है कि ऐसा परिमार्जित रूप सूरदास और की भाषा में भी उपलब्ध नहीं होता ।

फलत सभी से मैं शिवजी की भाषा का प्रशासक और समर्थक रहा हूँ। श्री हरिवशनी – मापी नहीं थे। उनकी मातृमापा ज न होने पर भी उन्होंने यम की प्रकृति को समझ पाया यह उनकी प्रतिमा का प्रमाण है।

हाँ, कृत मापा के ये पति ही नहीं निसर्ग सिद्ध कवि भी थे। फिस्तु उनकी कृषि-प्रतिमा का रूप हमें मत की रूपा में ही अधिक मिलता हूँ । दिस चौरासी के पकोड़ भाषा की प्रेपणीयता और माप माहिणी क्षमता के कारण धरय विपय का चित्र मूर्तिमन्त थे नेत्रों के सामने भा खड़ा होता है।

स की वामम पाली को प्रजभाषा के महज प्रवाह में डालने की क्रिया में हरिवंश जी को भद्भुत क्षमता प्राप्त है। शब्द मैथी, ग्रामरसा नाद सौन्दर्य, और संगीताता उनी पाणी न गुण हैं जो मत कपियों में गत नहीं होते ।

सवेदन के स्वरुप को मूर्त रूप देकर जो पानी अन्वनयों के सामने लाने में समर्थ हो यही भाषा परिपूराता दी फमोटी पर कारी मानी जाती है-रिपशजी की दिन मी

इसका निश्शन है। शिव चौरासी में तस्मम और समय दोनो प्रकार के शब्दों का प्रयोग हुआ और दोनों का प्रभाव भी लग-अलग देखा जा सकता है। शब्द मैत्री सो हरिवंशजी को पासी का प्राण दे ।

म रहत और जज के सम्मिलन से मोहक पावामरण खड़ा करने की पता तो आपको मद्दण सिद्ध थी। ‘फोमल किशलय शयन मुपशल’ और ‘पित्र म पटिक विविध निर्मित घर’ में तरमम की छटा तथा ‘निज भजन धन सन गोमन’ और ‘आलम व वरात रंग मगे गये निमि जागर मखिन मलिन री में पकी मनोदारी घटा किसे सुध नहीं करती।

हित चौरानी को संगीतात्मकता तो इसी मे मिद्ध ६ कि गोम्पामी जी ने इसे राग परूप में लिया है। पद किसी म किसी गए गुग का अनुमरण परता छ । संगीत और माहिय्य कामर फयाग इस पैशिष्य मममना चाहिए।

फाभ्याग कीपर यदिसि पीयमी का अनुशीलन किया जाय तो प्यनि, लक्षणा यंजना, अलंकार, ग्म, रीति, क्रोधि यात्रि श्री विपु माममी इमम उपलब्ध होगी । अभियंता कौशल पी दृष्टि से में इस फाय को प्रमापा का एक प्रांजल और परिष् निदान मानता हूँ। मेरी मान्यता छ कि यदि मापा और मत विमान की कमीटी पर हम फाक्य की परत की जाय तो प्रज भाषा का सुपुत्र मणि सिद्ध होगा। पशी के तार भी गोम्पामी सिमी ने मधमुच ही इस वाक्य में मंशी की मनमोहक मारयनि पो एक में समापित कर दिया छ । ग्यों ही इन पो पद है उनका मामम भापानु

कूल पन विन्यास म गूज | भी दिन हरिवंशजीन ‘तिमी’ कति गुट पर भी लिख दे दियाली’ नाम से संकलित कर

Language Hindi
No. of Pages220
PDF Size4 MB
CategoryReligion
Source/Creditsia904701.us.archive.org

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