सलीमा – Salima Book Pdf Free Download
अनवर सुहईल
आटा-चक्की के मोटर बहुत शोर करता है। लगता है उसकी बियरिंग खराब हो गई है। मोटर और चक्की के बीच तेजी से घूमते बेल्ट से उठता ‘खटपिट खटपिट’ का शोर इंसान के पास जब सुविधाओं की सम्भावनाएं खत्म हो जाती हैं,
जब बेहतर दिनों की आमद से वह नाउम्मीद हो जाता है तब उसे दुःख झेलते-झेलते दुःख सहने की आदत पड़ ही जाती है। सलीमा का कुछ नहीं बिगाड़ पाता। सलीमा को इस शोर की आदत पड़ चुकी है।
आदत ऐसे ही नहीं पड़ती। सलीमा ने अपने जीवन की राह में तमाम तकलीफ़ उठाए। और इस तरह उसे परेशानियों से दो-चार होने में बड़ा मज़ा आने लगा।
इसीलिए सलीमा ने आटा-चक्की के बेसुरे खटपिट खटपिट को एक ताल का रूप दिया और मन ही मन उस ताल पर एक गीत बना लिया है खटपिट खटपिट खटपिट खटपिट सलीमा खटती, दिन-भर खटती कभी न थकती,
कभी न थकती इसी लय में डूबती उतराती सलीमा अपने तन-मन की जरूरतों से बेखबर रहने लगी। आटा-चक्की के साथ कब वक्त गुजर जाता, सलीमा जान न पाती।
अल्लाह ने उसे इस काम में इतनी बरकत दी कि चक्की के लिए न कभी गेहूं खत्म होता और न कभी काम जिसे गेहूं महीन पिसवाना हो वह महीन पिसवाए और जिसे मोटा चाहिए वह मोटा
पिसवा ले सलीमा अपने ग्राहकों की फ़रमाईश दिल लगाकर पूरा करती ताकि मुहल्ले के लोग उसी की चक्की से गेहूं पिसवाने आएं। सलमा ने चक्की के बाई ओर रखी गेहूं की थैलियों पर निगाह डाली.
एक लाईन से रक्खी भिन्न-भिन्न आकार की सोलह-सत्रह थैलिया। कुछ प्लास्टिक की बोरियां, कुछ कनस्तर और कुछ गेहूं भरे बोरे आखिरी वाली थैली के पीछे एक मोटा सा चूहा झांक रहा था।
लेखक | अनवर सुहैल-Anwar Suhail |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 169 |
Pdf साइज़ | 1.1 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
सलीमा – Salima Book Pdf Free Download