साधन पथ | Sadhan Path PDF

साधन पथ – Sadhan Path Book/Pustak Pdf Free Download

जीवन का परम ध्येय

इससे यह सिद्ध होता है कि उसे अभावमय सुख सदाके लिये सन्माष्ट नहीं कर सकता। बदह पूर्ण सुख चाहता है ।

पूर्ण, नित्य, अभावरहित मुख उस सद्, त्रिकाल्व्यापी और वस्तुका खरूप है, यह वस्तु केवल परमात्मा है ।

इस न्यायसे विविध जीव-नदियों का प्रवाह मिन मिन परियों से अनेक सुखी होकर उस एक ही नित्य सुख-सागर ओर सतत बह रहा है।

जीवकी यह अनादिकालीन सुखस्पृहा उसकी परमात्म-मिलनाकांक्षा को प्रकट करती है। जहांतक उसे अपने चरमलक्ष्यकी प्राप्ति नहीं हो जायगी, वहांतक इस कभी विराम नहीं होगा।

परन्तु अज्ञान-तिमिराच्छन होनेके कारण सुखके यथार्थ स्वरूप- को जीव पहचान नहीं सकता ।

इसीसे उसके मार्गमें अनेक प्रकारके विघ्न उपस्थित होते हैं। कभी वह मार्ग भूल जाता है,

कभी रुक जाता है, कभी उल्टा चलनेकी चेष्टा करता है, कभी हताश होकर बैठ जाता है और कभी किसी पान्थशालाको ही घर मानकर, अल्प सुखको ही परम सुख समझकर उसीमें रम जाता है ।

इसीलिये ऐसे जीव पामर या विषयी कहलाते हैं। इसके विपरीत जो अपने ध्येयको समझकर उसीकी प्राप्तिके लिये बड़ी तत्परताके साथ यथाशक्ति नित्य निरन्तर प्रयत्न करते हैं, वे (मुमुक्षु) साधक कहलाते हैं।

इस प्रकार साधन-पथारूढ़ होनेके लिये सवसे पहल ध्येय निश्चित करने, लक्ष्य ठीक करनेकी आवश्यकता है।

मनुष्पको सबसे पहले इस निश्चय करना चाहिये मेरे जीवनका पर्म ध्येय क्या है ! किस लक्ष्यकी ओर जीवनको चलना है।

जबतक यह स्थिर नहीं कर लिया जाता कि मुझे कहां जाना है, तबतक मार्ग या मार्ग न्याय की चर्चा जैसे निरर्षक है, वैसे ही जबतक मनुष्य अपने जीवनका ध्येय निश्चित नहीं कर लेता कि मुझे इस जीवनमें क्या लाभ करना है, तबतक कौनसे योगके द्वारा क्या साधन करना , यह करना मी व्यर्थ है।

लेखकहनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad
Gita Press
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ86
Pdf साइज़1.6 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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