गोदान प्रेमचंद उपन्यास | Premchand Novel Godan PDF In Hindi

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गोदान प्रेमचंद उपन्यास – Godan PDF Free Download

गोदान

होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा – गोवर को ऊन्त्र गोड़ने भेज देना। मं न जाने कब लीदूं।

जरा मेरी लाठी दे दे। घनिया के दोनों हाथ गोवर से भरे थे। उपले पाथकर ग्रायी थी। बोली अरे, कुछ रम-पानी तो कर लो। ऐमी जल्दी क्या हूँ।

होरी ने अपने भूरियों से भरे हुए माथे को सिकोड़कर कहा- तुझे रस यानी की पड़ी है, मुझे यह चिन्ता है कि अवेर हो गयी तो मालिक से भेंट न होगी।

असनान पूजा करने लगेंगे, तो घंटों बैठे बीत जायगा।

‘इसी से तो कहती हूँ, कुछ जलपान कर लो। और आज न जाश्रोगे तो कौन हज़ होगा। अभी तो परमों गये थे।’

‘तू जो वात नहीं समझती, उसमें टाँग क्यों अड़ाती है भाई ! मेरी लाठी दे दे और अपना काम देख।

यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अव तक जान वत्री हुई है।

नहीं कहीं पता न लगता कि किधर गये। गाँव में इतने आदमी तो है, किम पर वेदखली नहीं आयी, किस पर कुड़की नहीं प्रायी। जब दूसरे के पाँवों-तले अपनी

गर्दन दवी हुई है, तो उन पाँवों को सहलाने में ही कुशल है।’ घनिया इतनी व्यवहार-कुगल न थी। उसका विचार था कि हमने जमींदार के खेत जोते हैं, तो वह अपना लगान ही तो लेगा।

उसकी खुशामद क्यों करें, उसके तलवे क्यो सहलाये ।

यद्यपि अपने विवाहित जीवन के इन वीस वरमों में उसे अच्छी तरह अनुभव हो गया था कि चाहे कितनी ही कतर-व्योंत करो, कितना ही पेट-तन काटो, चाहे एक-एक कौड़ी को दाँत से पकड़ो; मगर लगान वेवाक़ होना मुश्किल है।

फिर भी वह हार न मानती थी, और इस विषय पर स्त्री-पुरुष में आये दिन संग्राम छिड़ा रहता था ।

उसकी छः सन्तानों में अब केवल तीन जिन्दा है, एक लड़का गोबर कोई सोलह साल का, और दो लड़कियाँ सोना और रूपा, बारह और आठ साल की।

तीन लड़के बचपन ही में मर गये। उसका मन आज भी कहता था, अगर उनकी दवादारू होती तो वे बच जाते; पर वह एक धेले की दवा भी न मॅगवा सकी थी।

उसकी ही उम्र अभी क्या थी।

छत्तीसवाँ ही साल तो था; पर सारे बाल पक गये थे, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गयी थीं। सारी देह ढल गयी थी, वह सुन्दर गेहुआ रंग सॅवला गया था और आँखों से

होरी ने उसकी ओोर आँखें तरेर कर कहा-क्या ससुराल जाना है जो पाँचों पोसाक लायी है ? ससुराल में भी तो कोई जवान साली-सलहज नहीं बैठी है, जिसे जाकर दिखाऊँ ।

होरी के गहरे साँवले, पिचके हुए चेहरे पर मुस्कराहट की मृदुता झलक पड़ी। धनिया ने लजाते हुए कहा- ऐसे ही तो बड़े सजीले जवान हो कि साली-सलहजे तुम्हें देख कर रीझ जायँगी !

होरी ने फटी हुई मिरजई को बड़ी सावधानी से तह करके खाट पर रखते हुए कहा- तो क्या तू समझती है, मे बूढ़ा हो गया ? अभी तो चालीस भी नहीं हुए। मर्द साठे पर पाठे होते हैं।

‘जाकर सीसे में मुँह देखो। तुम जैसे मर्द साठे पर पाठे नहीं होते। दूध-घी अंजन लगाने तक को तो मिलता नहीं, पाठे होंगे ! तुम्हारी दशा देख-देखकर तो में और भो मूखी जाती हूँ कि भगवान यह बुढ़ापा कैसे कटेगा ? किसके द्वार पर भीख माँगेंगे ?’

होरी की वह क्षणिक मृदुता यथार्थ की इस आँाँच में जैसे झुलस गयी। लकड़ी संभा लता हुआ बोला– साठे तक पहुँचने की नीवत न आने पायेगी धनिया ! ही चल देंगे ।

जो बात नहीं सभभती, उपमें टॉग क्यों बढ़ जाती माई! मेरी नाटी द अपना नाम देस। बह अभी मिलते-जुलते रने का परसाद है कि अवतक ने नी हुई हैं।

सही बीं पता न लगता कि किवर नये ग में इतने अश्यमी तो है, पर बंगाली नहीं आया, जिस पर कुकी नहीं पानी।

अब दूसरे के पाँवों-तले पानी गर्दन दबी हुई है, तो उन को सहलाने में ही कुगल है। धनिया इतनी बहार-कुतव नबी।

उसका विचार था कि [हर्न उीदार के सेत होते हैं, तो वह अ्ना सगान ही तो दे।

जगकी गहामद क्यों करे, जसके नन 3. को नहलाया। गाय अपने विवाहित जीवन के इन बीस चरणों में उसे अच्छी तरह पराभव हो गया था कि

चाहे कितनी हो कतार-बयान करो, तना ही पेट-लन काटो, चाहे एक-एक कोटी को डॉल सा पकडी; मगर न चकाचक होना मकिन है।

फिर भी गह हार न मानती थी, पोर इस किपय गर स्वी- धाये दिन वा।

ताकी छ: सन्तानों में इन केव तीन जिंदा है, एक का गावर कोई मोनह साल का, पीर यो जदपि का सोना धीर रूगा, बारह घौर बउ साल की ।

लेखक प्रेमचंद – Premchand
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 370
Pdf साइज़26.9 MB
Categoryउपन्यास(Novel)
Sourcesarchive.org

गोदान प्रेमचंद उपन्यास – Godan PDF Free Download

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