नाथ संप्रदाय | Nath Panth PDF In Hindi

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नाथ संप्रदाय – Nath Panth PDF Free Download

नाथ संप्रदाय

हिन्दुओं के मुख्‍यत: चार संप्रदाय है:- वैदिक, वैष्णव, शैव और स्मार्त। शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही शाक्त, नाथ और संत संप्रदाय आते हैं। उन्हीं में दसनामी और 12 गोरखपंथी संप्रदाय शामिल है। जिस तरह शैव के कई उप संप्रदाय है उसी तरह वैष्णव और अन्य के भी। आओ जानते हैं कि किस तरह नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति हुई। 

1. ‘नाथ’ शब्द का प्रचलन हिन्दू, बौद्ध और जैन संतों के बीच विद्यमान है। ‘नाथ’ शब्द का अर्थ होता है स्वामी। वैष्णवों में स्वामी और शैवों में ‘नाथ’ शब्द का महत्व है। आपने अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि कई तीर्थस्थलों के नाम सुने होंगे।

2. आदि का अर्थ प्रारंभ। भगवान शंकर को ‘भोलेनाथ’ और ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। इस आदिश शब्द से ही आदेश शब्द बना है। ‘नाथ’ साधु जब एक-दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं- आदेश।

3. भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया।

4. भगवान शंकर के बाद इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम भगवान दत्तात्रेय का आता है। उन्होंने वैष्णव और शैव परंपरा में समन्वय स्थापित करने का कार्य किया। दत्तात्रेय को महाराष्ट्र में नाथ परंपरा का विकास करने का श्रेय जाता है। दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है।

लोकभाषाओं के कवि रहे सभी सिद्ध, संस्कृत के नहीं

सिद्धों की दो विशेषताएं थीं। एक, वे सभी कवि थे, या यह भी कह सकते हैं कि कवि होना सिद्ध होने की अनिवार्य शर्त थी; और दो, उनमें जातिभेद नहीं था। उनका संघ वर्ग और जातिविहीन था।

84 सिद्धों में 28 सिद्ध शूद्र जातियों के हैं और 4 स्त्रियां हैं; शेष में ब्राह्मण, क्षत्रिय, कायस्थ आदि अन्य जातियों के सिद्ध हैं। भारतीय चिंतन में यह पहली धारा थी, जिसमें जातिभेद नहीं था।

दूसरे शब्दों में यह वह धारा थी, जिसमें जातीय वर्चस्व नहीं था। इसमें जाति नहीं, गुण महत्वपूर्ण था।

उनमें गुंडरिपा जैसे चिड़ीमार, चमारिपा जैसे चमार और अचिंतिपा जैसे लकड़हारा ही नहीं, मणिभद्रा जैसी दासी भी सिद्धों में शामिल थी। यह भी उल्लेखनीय है कि सभी सिद्ध कवि लोकभाषाओं के कवि थे, संस्कृत के नहीं।

नाथ पंथ सिद्ध परंपरा से कितना अलग था, यह देखने से पहले यह जान लें कि नाथ कौन थे? जैसा कि कहा गया, नाथ पंथ के आदि प्रवर्तक आदिनाथ माने जाते हैं।

सिद्धों की सूची में इनका नाम जालन्धरपाद है, जो ब्राह्मण बताए जाते हैं। इनके शिष्य मछेन्द्रनाथ थे, जो मछुवे या मछुआरे थे। इनके पिता मीनपा भी सिद्ध थे, जो नाथ पंथ में आकर मीननाथ हुए।

इन्हीं मछेन्द्रनाथ के शिष्य गोरखनाथ थे, जिन्होंने नाथ-सम्प्रदाय को एक क्रान्तिकारी आन्दोलन का रूप दिया। नाथ पंथ में गोरखनाथ का वही स्थान है, जो वेदान्त में शंकर का है।

आदि शंकराचार्य यदि भारत के कोने-कोने में विख्यात हैं, तो गोरखनाथ की ख्याति भी भारत की सीमाओं के बाहर तक है।

दोनों में अन्तर यह है कि यदि शंकर हिन्दुओं के गुरु हैं, तो गोरखनाथ भारत की विशाल आम जनता के पूज्य देव हैं। यदि गोरखनाथ न होते, तो नाथ पंथ आगे नहीं बढ़ता।

गोरखनाथ के गुरु थे मछेन्दनाथ 

लेकिन जिस मछेन्द्रनाथ के गोरखनाथ शिष्य थे, उनका नाम हमें 84 सिद्धों में नहीं मिलता, जबकि उनके पिता मीननाथ आठवें सिद्ध हैं। मीननाथ या मीनपा राजा देवपाल के समकालीन थे, जिनका समय 809 ई. से 849 ई. है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मीनपा और मछेन्द्रनाथ नौवीं शाताब्दी के सिद्ध कवियों में थे। सिद्ध-सूची में मीनपा के ठीक बाद गोरक्षपा अर्थात गोरखनाथ का नाम आता है। इसके बाद चोरंगिपा का नाम है, जो गोरखनाथ के गुरु भाई थे।

अतः सवाल यह है कि सूची में गुरु भाई का नाम है, गुरु के पिता का नाम है, पर गुरु का ही नाम नहीं है। क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मीननाथ और मछेन्द्रनाथ दोनों एक ही हों, मछेन्द्रनाथ ही मीननाथ हो सकते हैं, क्योंकि दोनों नामों का शाब्दिक अर्थ मछली या मछुवारा ही होता है।

मछेन्द्रनाथ नाथ-परंपरा के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। वे गोरखनाथ के लिए ईश्वर तुल्य थे। गोरख उन्हें अपनी वाणी में बहुत आदर से स्मरण करते हैं। यथा–

  1. भणत गोरषनाथ मछीन्द्र ना दासा (मछेन्द्र का दास गोरख कहता है)
  2. कथंत गोरषनाथ मछीन्द्र ना पूता (मछेन्द्र का पुत्र गोरखनाथ का कथन है)
  3. मछीन्द्र प्रसादै जती गोरष बोल्या (मछेन्द्र के प्रसाद से यती गोरख बोलता है)
  4. गोरष रहीला मछीन्दर्र ठांई (गोरख मछेन्द्र की शरण में आया)
  5. मछन्दर तुम्हें ईश्वर के पूता (मछन्दर तुम तो ईश्वर के पुत्र हो)

ऐसे महान मछेन्द्रनाथ को सिद्धों की सूची में शामिल न करना गले नहीं उतरता। इसलिए बहुत सम्भव है कि मीनपा ही मछेन्द्रनाथ हों।

Language Hindi
No. of Pages6
PDF Size7.5 MB
CategoryReligion
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