नैवेध को कैसे अर्पित करे – Naivedhya Book Pdf Free Download
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पुस्तक का एक मशीनी अंश
देते नहीं सकुचाते, तथा यहाँ प्रतीत होता है कि उनका ईश्वरको सर्पन्यापी और सर्वान्तर्यामी भी कहना विडम्बनामात्र है ऐसी स्थितिमें ईश्वर और ईश्वर-भक्तिके लिये कुछ अधिक कहना-सुनना अरण्य-रोदनके सगान ही होता है,
परन्तु इस त्रिताप-तप्त संसारके लिये ईअवर-भक्तिकरी सुधा-धाराके सिवा अन्य कोई साधन भी नहीं है, जो हमें प्रतिदिन बढते हुए दुःख दावानलसे बचाकर शीतल कर सके ।
इसलिये जगत्के मनोनुकूल न रहनेपर भी समय-समयपर सन्तोंने इस ओर लोगोका ध्यान खींचनेकी चेष्टा की है ।ईश्वर खयसिद्ध है और प्रत्यक्ष है । उसे किसीके द्वारा अपनी सिद्धि करानेकी अपेक्षा नहीं है।
जीप जबतक मायामुग्य रहता है तबतक उसे नहीं देखता, जिस दिन उसका भाग्योदय होता है उस दिन सन्त-महात्माओकी कृपासे उसकी आँखें खुलती है तब वह अपने सामने ही उस विश्व-विमोहन मोहनको देखकर मुम्ब हो जाता है ।
उस समय उसका जो मायाका आवरण हटता है यह फिर कभी सामने नहीं आ सकता, यह कृतकृत्य हो जाता है परन्तु मायामुग्ध प्रार्णके लिये ऐसा अवसर कठिनतासे आता है,
जब भगवान् कृपाकर उसे सासारिक विपत्तियोंमे डालते हैं,भीवन-सखाकी भी व उपेक्षा करता है। अरे, उसे पद से चाहने 1. और एक बार पुकारनेमें भी तुझे संकोच मालूम होता है ।
हम धमके लिये खून-पानी एक कर देते है, सी-पुत्ादिके लिये धर्म-कर्म तकको तिलामलि दे डालते हैं, मान-बढ़ाईके लिये मोंति-भाँतिके दोंग रचते हैं, उनकी प्राप्तिके लिये चित्त सन्तत व्याकुल रहता है,
प्याना-पीना भूल जाते हैं, मान-अपमान सहते हैं, रातों रोते हैं, खुशामदें और मिन्नतें करते हैं, निष्कपट चित्तसे उन्हें पानेका प्रयत्न करते हैं , परन्तु उस परमात्माके लिये क्या करते हैं
जो हमारा परम धन है, परम आरमीय है, मेरा हृदय उसके लिये तलमला उठा, परन्तु उसने मुझे दर्शन नहीं दिये ! सची बात तो यह है
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 362 |
Pdf साइज़ | 9.8 MB |
Category | विषय(Subject) |
नैवेध – Naivedh Book/Pustak Pdf Free Download