कुमारतन्त्र | Kumar Tantra PDF In Hindi

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कुमारतन्त्र – Kumar Tantra PDF Free Download

कुमारतन्त्र

प्रथमे दिवसे मासे वर्षे वा गृह्णाति नन्दना नाममा- तृका, तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः ।

अशुभं शब्दं मुञ्चति, आत्कारं च करोति, स्तन्यं न गृहाति । बलिं तस्य प्रवक्ष्यामि येन सम्पद्यते शुभम् । नद्युभयतमृत्तिकां गृहीत्वा पुत्तलिकां कृत्वा शुक्लौ- दनं शुकपुष्पं शुक्काः सप्त ध्वजाः सप्त प्रदीपाः सप्त स्वस्तिकाः सप्त वटकाः सप्त शष्कुलिकाः सप्तजंबूफलानि सप्त मुष्टिकाः गन्धाः पुष्पं ताम्बूलं मत्स्यमासं सुरा अध्यभक्तश्च पूर्वस्यां दिशि चतु- पथे मध्याह्ने बलिर्देयः ।

ततोऽश्वत्थपत्रं कुम्भे प्रक्षिप्य शान्त्युदकेन स्रापयेत् ।

रसोनसिद्धार्थकमे- शृंगनिव पत्र शिवनिर्माल्यैर्वालकं धूपयेत् ।

ॐ नमो नारायणाय अमुकस्य व्याधिं हन हन मुञ्च मुञ्च हीं फट् स्वाहा ॥

एवं दिनत्रयं बलि दत्त्वा चतुर्थदिवसे ब्राह्मणं भोजयेत् । ततः संपद्यते शुभम् ॥ १ ॥

श्रीगणेशपदद्वन्द्वं प्रत्यूहव्यूहनाशनम् । नन्नमीमि नतिर्यस्य वितरत्युत्तमां मतिम् ॥ १ ॥

श्रीमद्गुरून्नमस्कृत्य रावणेन कृतस्य च । अस्य कुमारतंत्रस्य भाषाटीका विरच्यते ॥ २ ॥

अर्थ- प्रथम इस रावणकृत कुमारतंत्र अर्थात् बालकचिकित्सा- प्रकाशनामक ग्रंथका टीकाकार रविदत्तशास्त्री राजवैद्य, अनेक तरहके विघ्नोंके नाशपूर्वक शिष्यशिक्षा के लिये नमस्कारात्मक मङ्गल करते हैं; मैं अल्पमति टीकाकार विघ्नोंके समूहको नाशनेवाले श्रीयुत गणेशजीके दोनों चरणारविन्दोंको वारंवार प्रणाम कारता हूं जिन्होंके चरणारविन्दों- को किया प्रणाम उत्तम बुद्धिको विस्तृत करता है ॥ १ ॥

और श्रीयुत गुरुजीको प्रणाम कर इर रावणकृत कुमारतंत्र की भाषाटीका रचताहूं ॥ २॥ यह मूल ग्रंथ रावणः चालकोंको सुख पहुँचाने के लिये संपूर्ण आयुर्वेदको विचार कर संस्कृतमें रचाथा वही है, इसको संपूर्ण मनुष्य अच्छीतरह जान बालकों की रक्षाके लिये चिकित्सा करें इस वास्ते इस ग्रंथ की भाषाटीका बनाने को रविदत्तशास्त्री उद्यत हुआ है॥ २ ॥

अर्थ- प्रथम दिनमें प्रथम महीने में अथवा प्रथम वर्षमें नन्दना नाम मातृका करके गृहीत हुए बालकको प्रथम ज्वर हो; वह बालक अशुभ शब्दको कहे, आत्कारको करें और चूंचीके दूधको ग्रहण नहीं क उसकी बलि कहेंगे जिस करके शुभ प्राप्त हो ।

नदी के दोनों किना रोकी मिट्टी लेके पुत्तली बना, सफेद चावल, सफेद पुष्प सफेद सात- ध्वजा, सात दीपक, सात स्वस्तिक, सात बडे, सात पूरी, सात जामुन, सात मुष्टि अर्थात् मुठिये, चंदन, फूल, नागरपान, मछलीका मांस, मदिरा, सुन्दर चावल इन्हें ले पूर्वदिशामें चौराहा विषे मध्याह में वाले देना, पीछे पीपल के पत्तोंको कलशमें डाल शान्तिजलसे स्नान करावे, पीछे लहसन, सरसों, बकरेका शींग, नींबके पत्ते, गंगाजल इन्होंसे बालकको धू

द्वितीये दिवसे मासे वर्षे वा गृहातिः सुनन्दा नाम मातृका । तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः । चक्षुरुन्मीलयति गात्रमुद्देजयति न शेते क्रन्दति स्तन्यं न गृह्णाति आत्कारश्च भवति । बलिं तस्य, प्रवक्ष्यामि येन सम्पद्यते शुभम् ॥ तन्दुलं हलपृष्ठैकं दधिगुडघृतैश्व मिश्रितं शरावेकं गन्धताम्बूलं पीत- पुष्पं सप्तपीतध्वजाः सप्त प्रदीपाः दश स्वस्तिका मत्स्यमांस सुरातिलचूर्णानि पश्चिमायां दिशि चतु- ष्पथे बलिर्देयः दिनानि त्रीणि संध्यायाम् । ततः शान्त्युदकेन स्त्रापयेत् । शिवनिर्माल्यसिद्धार्थमार्जा- रलोमउशीरबालघृतैर्धूपं दद्यात् ॐ नमो नारायणाय अमुकस्य व्याधिं हन हन मुञ्च मुञ्च ह्रीं फट् स्वाहा ॥ चतुर्थ दिवसे ब्राह्मणं भोजयेत् । ततः सम्पद्यते शुभम् २ ॥

अर्थ- दूसरे दिन में दूसरे महीने में अथवा दूसरे वर्षमें सुनन्दा नाम मातृकासे गृहीत हुये बालकको प्रथम ज्वर होता है वह बालक नेत्रों- को खोलता है शरीरको कपाता है शयन नहीं करता है पुकारता है सूची दूधको नहीं ग्रहण करता है आत्कार होता है, उसकी बाले कहते हैं जिस करके शुभ प्राप्त हो ।

चावल, एक हलका पृष्ठभाग, दही, गुड, घृत इन्होंसे युत किया एक सहनक, गंध, नागरपान, पीला फूल, पीठी सातध्वजा, खात दीपक, दश स्वस्तिक, मछलीका मांस, मदिरा, तिलोंका चून इन्दोसे पश्चिम दिशामें चौराहा विषे तीन दिन सायंकाल देना, पीछे शांति जलसे स्नान करावे गंगाजल, सरसों, बिलाव के रोम, खस, नेत्रवाला, घृत इन्हों करके धूप देवे “ॐ नमो नारायणाय अमुकस्य व्याधिदन हुन मुख मुख हैं। फटू वादा “

Language Hindi
No. of Pages57
PDF Size1 MB
CategoryReligion
Source/Credits

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