कृषि विज्ञान | Krishi Vigyan Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
सकं पर मौसम की अनुकूलता और प्रतिकूलता का प्रभाव-मौसम का खेती-बारी से गहरा सम्बन्ध है। फसल की सफलता और असफलता इसी पर निर्भर करती है। अकस्मात् मौसम के परिवर्तन से खेती को कभी-कभी बहुत बड़ी हानि पहुँच जाती है।
जाड़े के दिनों में लगातार तीन-चार दिनों तक बदली लगी रहने से फसल पर रोगों के आक्रमण का भय रहता है अधिकतर गेरुई का रोग हो जाता है, जिसके फलस्वरूप पौधे का बढ़ाव रुक जाता है। पाला पड़ने या अचानक वर्षा होने से फसलें विनष्ट हो जाया करती हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि खेत की जुताई, गुड़ाई, बोआई, निकाई, सिंचाई, कटाई आदि से लेकर जब तक अन्न घर में न पहुँच जाय, उस पर मौसम का प्रभाव पड़ सकता है। अतः एक सफल किसान को मौसम की पहचान करके हो अपना काम करना आवश्यक होता है।
यदि आकाश में बादल नहीं घिरे हैं और सूप की किरणें सी रूप में भूमि पर पहुँचती हैं तो फसल पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। पौधे अपना भोजन प्रकाश में ही तैयार करते हैं, अतः बदली लगने से भोजन बनने में कमी आ जाती है। पौधे अपने अन्दर के अनावश्यक पानी को सूर्य को गर्मी लेकर निकाल देते हैं
परन्तु बादल के घिरे रहने पर उनकी यह क्रिया बन्द हो जाती है, जिससे अत्यधिक पानी का उड़ना बन्द हो जाता है। फसलों का बड़ाव वायु के निश्चित दबाव पर ही निर्भर रहता है । हवा एक पदार्थ है इसीलिये इसमें भार है। यह भार साधारणतया १५ पौ० प्रति वर्ग इंच होता है जिसे पौधे सहन कर सकते है।
अचानक वाय के दबाव के गिरने से आंधी आने का भय रहता है जो फसल को अधिक हानि पहुंचा देती है। खड़ी फसलें गिर जाती है. पकी बालें बिखर जाती है। इस दबाव के धोरे-धोरे गिरने पर पानी बरसता है और बढ़ने पर मौसम सूखा हो जाता है।
लेखक | जयराम सिंह-Jayram Singh |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 334 |
Pdf साइज़ | 27.9 MB |
Category | विषय(Subject) |
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