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कवितावली – Kavitavali Tulsidas PDF Free Download
कवितावली तुलसीदास
हय हिहिनात, मागे बात पहरात गज, भारी भीर ठेलि-पेलि रौंदि-खौंदि डारहीं। नाम लै चिलात, बिललात अकुलात अति,’तात तात ! तौंसिअत, झौंसिअत, झांरही’ I॥१५॥
आग लग गयी, आग लग गयी, ऐसा पुकारते हुए सब लोग जहाँ-तहाँ भाग चले । न माँ लड़कीको सँभालती है और न पिता पुत्रको सँभालता है ।
केश और यख खुल गये हैं, सत्र खोग नंगे हो गये हैं, और धुएँकी धुंधले अंधे होकर लड़के-बूढ़े सब बार-बार पानी-पानी’ पुकार रहे हैं ।
घोड़े हिनहिनाते हुए भागे जाते हैं, हाथी चिग्धार मारते हैं और जो बड़ी भारी भीड़ लगी हुई थी, उसे धक्कोंसे ढकेलकर पैरोंसे कुचले डालते हैं ।
सब लोग नाम ले लेकर पुकार रहे हैं, और अत्यन्त बिलबिलाते तथा अकुलाते हुए कहते हैं, ‘बाप रे बाप ! आगकी लपटोंसे तो झुलसे जाते हैं, तपे जाते हैं।
“लपट कराल ज्वालजालमाल दहूँ दिसि, धूम अकुलाने, पहिचानै कौन काहि रे । पानीको ललात, बिललात. जरे गात जात, परे पाइमाल जात ‘भ्रात ! तूं निवाहि रे
॥ प्रिया ! तूँ पराहि, नाथ ! नाथ! तूँ पराहि, बाप! बाप! तूं पराहि, पूत ! पूत ! तूं पराहि रे’ । ‘तुलसी’ बिलोकि लोग व्याकुल बेहाल कहै,लेहि दससीस ! अब बीस चरब चाहि रे ।।१६॥।
दसों दिशाओं में ज्वालमालाबोंकी मयंकर पटें फैल गयी हैं। सब लोग बुरसे व्याकुल हो रहे हैं। उस धूमें कौन किसे पहचान सकता था।
जोग पानीके लिये खालावित होकर बिलबिला रहे हैं, शरीर जला जाता है, सब लोग तबाह हुए जाते हैं और कहते है भैया ! बचाओ ! प्रिये ! तुम मागो हे नाथ ! हे नाथ ! भागे । पिताजी ! पिताजी ! दौड़ो ।
अरे बेटा ! ओ बेटा ! भाग तुलसीदासजी कहते हैं-सब लोग व्याकुल और परेशान होकर कह रहे है-अरे दशशीश रावण! अब बीसों आँखोंसे अपनी करतूत देख ले ।बीथिका-बजार प्रति, अटनि अगार प्रति, पवरि-पगार प्रति वानरु बिलोकिए ।अध-ऊर्च वानर, विविसि-दिसि वानर है,
लेखक | तुलसीदास-Tulsidas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 228 |
Pdf साइज़ | 33.6 MB |
Category | काव्य(Poetry) |
कवितावली तुलसीदास – Kavitavali Book/Pustak Pdf Free Download