मानव तंत्रिका तंत्र | Nervous System PDF In Hindi

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मानव का तंत्रिका तंत्र – Human Nervous System PDF Free Download

तंत्रिका तंत्र

जैसा कि तुम जानते हो मानव शरीर में बहुत • एवं अंग तंत्र पाए जाते हैं जो कि स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थ होते हैं। जैव स्थिरता (समअवस्था) बनने हेतु इन अंगों के कार्यों में समन्वय अत्यधिक आवश्यक है। समन्वयता एक ऐसी क्रियाविधि है.

जिसके द्वारा दो या अधिक अंगों में क्रियाशीलता बढ़ती है व एक-दूसरे अंगों के कार्यों में मदद मिलती है।

उदाहरणार्थ, जब हम शारीरिक व्यायाम करते हैं तो पेशियों के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता भी बढ़ जाती है।

ऑक्सीजन की आवश्यकता में भी वृद्धि हो जाती है। ऑक्सीजन की अधिक आपूर्ति के लिए श्वसन दर, हृदय स्पंदन, दर एवं वृक्क वाहिनियों में रक्त प्रवाह की दर बढ़ना स्वाभाविक हो जाता है जब शारीरिक व्यायाम बंद कर देते हैं तो तंत्रिकीय क्रियाएं, फुप्फुस, हृदय रुधिर वाहिनियों, वृक्क व अन्य अंगों के कार्यों में समन्वय स्थापित हो जाता है।

हमारे शरीर में तंत्रिका तंत्र एवं अंतःस्रावी तंत्र सम्मिलित रूप से अन्य अंगों की क्रियाओं में समन्वय करते हैं तथा उन्हें एकीकृत करते है, जिससे सभी क्रियाएं एक साथ संचालित होती रहती हैं।

तंत्रिकीय तंत्र ऐसे व्यवस्थित जाल तंत्र गठित करता है, जो त्वरित समन्वय हेतु बिंदु दर बिंदु जुड़ा रहता है। अंतःस्रावी तंत्र हार्मोन द्वारा रासायनिक समन्वय बनाता है। इस अध्याय में आप मनुष्य के तंत्रिकीय तंत्र एवं तत्रिकीय समन्वय की क्रियाविधि जैसे तंत्रिकीय आवेग का संचरण, आवेगों का सिनेप्स से संचरण तथा प्रतिवर्ती क्रियाओं की कार्यिकी का अध्ययन करेंगे।

तंत्रिकीय तंत्र

सभी प्राणियों का तंत्रिका तंत्र अति विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं से बनता है, जिन्हें तंत्रिकोशिनिम्न अकशेरुकी प्राणियों में तंत्रिकीय संगठन बहुत ही सरल प्रकार का होता है।

उदाहरणार्थ हाइड्रा में यह तंत्रिकीय जाल के रूप में होता है। कीटों का तंत्रिका तंत्र अधिक व्यवस्थित होता है। यह मस्तिष्क अनेक गुच्छिकाओं एवं तंत्रिकीय ऊतकों का बना होता है। कशेरुकी प्राणियों में अधिक विकसित तंत्रिका तंत्र पाया जाता है।

मानव का तंत्रिकीय तंत्र

मानव का तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है (क) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तथा (ख) परिधीय तंत्रिका तंत्र केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क तथा मे सम्मिलित है, जहाँ सूचनाओं का संसाधन एवं नियंत्रण होता है।

मस्तिष्क एवं परिधीय तंत्रिका तंत्र सभी तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है, जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क व मेरूरज्जू) से जुड़ी होती हैं।

परिधीय तंत्रिका तंत्र में दो प्रकार की तंत्रिकाएं होती हैं (अ) संवेदी या अभिवाही एवं (ब) चालक / प्रेरक या अपवाही संवेदी या अभिवाही तंत्रिकाएं उद्दीपनों को ऊतकों/ अंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक तथा चालक / अभिवाही तंत्रिकाएं नियामक उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंधित परिधीय ऊतक/अंगों तक पहुँचाती हैं।

परिधीय तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है कायिक तंत्रिका तंत्र तथा स्वायत्त तंत्रिका तंत्र कायिक तंत्रिका तंत्र उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के अनैच्छिक अंगों व चिकनी पेशियों में पहुँचाता है।

स्वायत्त तंत्रिका तंत्र पुनः दो भागों (अ) अनुकंपी तंत्रिका तंत्र व (ब) परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में वर्गीकृत किया गया है। अंतरंग तंत्रिका तंत्र परिधीय तंत्रिका तंत्र का एक भाग है। इसके |

तंत्रिका आवेगों की उत्पत्ति व संचरण

तंत्रिकोशिकाएं (न्यूरॉस) उद्दीपनशील कोशिकाएं हैं; क्योंकि उनकी झिल्ली ध्रुवीय अवस्था में रहती है। क्या आप जानते हैं, यह झिल्ली ध्रुवीय अवस्था में क्यों रहती है? विभिन्न प्रकार के आयन पथ (चैनल) तंत्रिका झिल्ली पर पाए जाते हैं।

ये आयन पथ विभिन्न आयनों के लिए चयनात्मक पारगम्य हैं।

जब कोई ICE न्यूरॉन आवेगों का संचरण नहीं करते हैं जैसे कि विराम अवस्था में उत्रिकाक्ष झिल्ली सोडियम आयंस की तुलना में पोटैसियम आपस तथा क्लोराइड आपस के लिए अधिक पारगम्य होती है।

इसी प्रकार से झिल्ली, तत्रिकाक्ष द्रव्य में उपस्थित ऋण आवेषित प्रोटिकाल में भी अपारगम्य होती है।

धीरे-धीरे तंत्रिकाक्ष के तंत्रिका द्रव्य में K तथा ऋणात्मक -आवेषित प्रोटीन की उच्च सांद्रता तथा Nat की निम्न सांद्रता होती है।

इस भिन्नता के कारण सान्द्रता प्रवणता बनती है। झिल्ली पर पाई जाने वाली इस आयनिक प्रवणता को सोडियम पोटैसियम पंप द्वारा नियमित किया जाता है।

इस पंप द्वारा प्रतिचक्र 3Na बाहर की ओर व 2K कोशिका में प्रवेश करते हैं। परिणामस्वरूप तंत्रिकाक्ष झिल्ली की बाहरी सतह धन आवेशित; जबकि आंतरिक सतह ऋण आवेशित हो जाती है; इसलिए यह ध्रुवित हो जाती है। विराम स्थिति में प्लाज्मा झिल्ली पर इस विभवांतर को विरामकला विभव कहते हैं।

(उदाहरण) तब A स्थल की ओर स्थित झिल्ली Na’ के लिए मुक्त पारगमी हो जाती है। जिसके फलस्वरूप Na’ तीव्र गति से अंदर.

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भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 16
PDF साइज़5 MB
CategoryBiology
Source/Creditsncert.nic.in

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