हिमाचल प्रदेश का इतिहास – Himachal Pradesh History Book PDF Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
भंखलाएं लगभग छह से नौ माह तक बर्फ से ढकी रहती हैं। स्पीति के काजा खण्ड के अधिकतर भूमि रेतीली और निर्जन है।
काजा को शीत मरुस्थल (Cold Desert) अर्थात बर्फानी रेगिस्तान भी कहा जाता है। इस पर्वत श्रेणी की भूमि कृषि योग्य नहीं है।
फिर भी यहाँ सूखे मेवे-बादाम, अखरोट, नेवजा (चिलगोजा), चूली के साथ-साथ अंगूर, कुठ, हफ्स, काला जीरा, केसर आदि की पैदावार होती है।
कुछ-कुछ क्षेत्रों में तो आलू और सेब की फसलें भी होती हैं। इन क्षेत्रों में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के अपार भण्डार हैं। यहां वर्षा ऋतु में भी वर्षा नहीं के बराबर होती है।
कबायली क्षेत्रों का मुख्य पशु सुरा गाय, कियांग और याक है। इन क्षेत्रों में भेड़-बकरियां, घोड़ा-खच्चर आदि पशु भी पाले जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश में जंस्कर पर्वत श्रृंखला जनजातीय जिलों लाहौल-स्पीति व कित्रौर के अतिरिक्त चम्बा, कुल्लू और शिमला जिला को भी छूती है।
(2) मध्य हिमालय (Central Himalayas)-इस पर्वत श्रृंखला को पांगी पर्वत श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है।
भूवैज्ञानिक इसे पीर पंजाल के नाम से भी पुकारते हैं। इस पर्वत श्रेणी की चोटियां समुद्रतल से लगभग 5100 मी. से 5700 मी. की ऊंचाई तक हैं।
यह पर्वत श्रेणी कुल्लू को लाहौल-स्पीति से अलग करने के बाद चम्बा जिला में बड़ा भंगाल को पश्चिमी सीमा पर प्रवेश करती है।
यह पर्वत श्रेणी चम्बा ज़िला को दो असमान भागों में बांटती है, जिसमें इसका छोटा भाग पांगी उपमण्डल है। यह सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण देश के अन्य भागों से कट जाता है।
इस भू. क्षेत्र में चम्बा, कांगड़ा, मण्डी, हमीरपुर, बिलासपुर, शिमला, सोलन, सिरमौर आदि जिले शामिल हैं।
लेखक | D.N. Kundra, A.S. Prashar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 354 |
Pdf साइज़ | 50.1 MB |
Category | इतिहास(History) |
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