हिमालय के सिद्ध योगियों की गुप्त सिद्धियां PDF Free Download
हिमालय के संतो के संग निवास
इस किताब में ब्रह्मनिष्ठ योगीप्रवर श्री १०८ ब्रह्मपि स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वतीजी महाराज (भूतपूर्व राजयोगाचार्य बालब्रह्मचारी व्यासदेवजी महाराज) के जीवन की विशेष घटनाश्री और अनुभूतियो का वर्णन है और जो ‘प्रात्म-विज्ञान’, ‘ब्रह्म-विज्ञान’ तथा ‘बहिरङ्ग-योग’ के रचियता हैं
गहापु्प गभ्यना, ममनि भर घर्म बे खोन होते है। बास्तव में ये किसी भी देग यथवा राष्ट्र को अनौफिक निधि है।
इसके द्वारा ही मानव यादमा का रक्षण सौर रोपण होना है यिम्च- कल्याण के लिए में सदैव चिन्तित रहते हैं।
प्रज्ञान के प्रश्न गर्न मे हवे जीयो फी दयनीय को देकर वे द्ववित होते है यौर प्रपनी पहनुनी पूषा की पर्या वे उन पयभ्रडो पौर किकतव्यविमूत प्राणियो पर शाश्वस पेण करते रहते है।
जप मानय धर्म के प्रति उदासीन हो जाता है, अधर्म की पभिपू्टि होने सगनी है, पापानरग का सम्थन होता है मगबद्भनतो का उपहास प्रोर शामान होगे मगना है
नव थानों की आनि हरन करते तथा दू सिरीके दखो को हराने पार पतिनो के १रिषाग धर्म गो उदार, सभ्यता नथा रस्कृति कै सुधार रायन
परम्पयो को पुन रवाना योर मोक कल्याण के लिए जगम्तियन्ता अपनी बिसी न किसी विभूति को मगार में प्रेरित किया गरते है ।
महानात्मा ग्रह्ाषि प्रादः मणीर पूग्यवाद नं्ठिक पनागी रमामी योगेशश रागन्द सरस्मती जी उन दिव्य विभूतियो में ने एक है।
योग का पुनरन्दार–प्रनेक दिमत धाराग्रो राहिन भक्ति की जान्हवी तो किसी न किमीप में हमारे देम मे गन पाई मताब्दिों से प्रवाहित होती रही ।
रमय- समय पर उनका विभिन्न महायक धारागो मे परिपोपण यौर परिवर्षन होता रहा । कबीर, रविदाग, नाना, नामदेव, एकनाग, गमदासादि इसी गक्त परम्परा के प्रतीक थे।
किन्तु योग-परम्परा गोहगारा गष्ट्र दिनुल भूल गया था भनित-मार्ग की गरनमा पार सुगमना में भाषण था ।
यह वटी मुबोध थी और आसानी से समझ में पा जानी थी। गहनगम्य होनेगे यह नौकप्रिय दी। भक्ति पापात्मायो को भी उनटा-गुटा भगवन्नाग गमणमा्र गे ही परिताण पी याणा दिलाती थी। प्रत यह मर्यापिया मोरप् |
लेखक | स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वतीजी महाराज |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 428 |
Pdf साइज़ | 25.8 MB |
Category | General |
हिमालय का योगी – Himalaya Ka Yogi Book/Pustak Pdf Free Download