गुप्त नवरात्रि कथा | Gupt Navratri Puja Vidhi PDF In Hindi

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गुप्त नवरात्रि पूजा विधि – Gupt Navratri Katha PDF Free Download

गुप्त नवरात्रि(माँ कामख्या) की सम्पूर्ण कथा

गुप्त नवरात्री में माँ दुर्गा के स्वरूप कामख्या देवी की पूजा की जाती है

भगवती कामाख्या चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने वाली तथा शीघ्र सिद्धिप्रदा है।

आसाम के गोहाटी से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर भगवती कामरू-कामाख्या का विशाल मन्दिर स्थित है, जंहा साधना करके सिद्धि प्राप्त करने की अभिलाषा मन में लिये दूर-दूर से साधक और तांत्रिक लोग आते रहते है।

प्रतिवर्ष माह जून में लगने वाले अम्बूवाची मेले के समय तो लाखों की संख्या में साधक लोग यंहा उपस्थित होते हैं।

उस समय भगवती कामाख्या को तीन दिन तक मासिक धर्म होता है जिस कारण यहा का सम्पूर्ण परिवेश ही लालिमा ले लेता है।

इस समय चूंकि भगवती रजस्वला होती हैं इसलिए तांत्रिक वर्ग के लिये यह अत्यन्त ही महत्वपूर्ण समय होता है।

यहा रहकर वे जप-तप करके सिद्धियां प्राप्त करते हैं।

वर प्रदान करने में भगवती का एकाधिकार :– हम सब यह जानते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव क्रमशः सृष्टि के रचियता, पालनहार तथा संहार का कार्य |

सम्पादित करते हैं। लेकिन वे ये सब कार्य केवल और केवल भगवती की शक्ति से, उनकी प्रेरणा से ही सम्पन्न करते हैं।

बिना शक्ति की सहायता के वे स्वयं में इन सब कार्यों के लिए सर्वथा असमर्थ हैं।

जब-जब भी ये तीनों देव अथवा अन्य देवतागण किसी कार्य को करने में असमर्थ होते हैं या फिर वे किसी विपत्ति में पड़े हुए हों तब तब ये उसी शक्ति की ही प्रार्थना करते हैं और देवी भी इन्हें तथा अपने भक्तों को दर्शन देकर इनके दुख और कष्टों को दूर करती हैं, क्योंकि ऐसा करने के लिए वे वचनबद्ध हैं।

स्त्री वामांगी कही गयी है। ब्रह्म के भी स्त्री पुरुष भेद से दो अंग हैं। उनका दाहिना अंग पुरुष का तथा बांया अंग स्त्री का है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। इन दोनों अंगों में वाम अंग ही प्रधान माना जाता है।

जब भी हम किसी देवी-देवता का नाम लेते हैं तो उनमे प्रथम नाम शक्ति का ही होता है, तब बाद में देवता का नाम आता है। यथा- सीता-राम, राधा-कृष्ण, प्रकृति-पुरूष, लक्ष्मी नारायण आदि । इससे भी यह स्पष्ट होता है कि शक्ति ही महत्वपूर्ण है।

बिना शक्ति किसी भी देवता का कोई आस्तित्व नहीं है।

दक्ष प्रजापति ने भगवती पार्वती की कठोर आराधना की थी और वरदान में देवी को ही अपनी कन्या रूप में जन्म लेने का निवेदन किया था, जिसके परिणामस्वरूप भगवती ने उमा के रूप में दक्ष के यंहा जन्म लिया।

निश्चित समय पर भगवान शंकर के साथ उनका विवाह हुआ, लेकिन शंकर भगवान को वह नसेड़ी,

श्मशानवासी, औघड़ आदि समझता था और इसलिए भगवती उमा का विवाह उनसे हो जाने के कारण वह अप्रसन्न रहता था और शिवजी का अपमान करने का कोई भी अवसर वह चूकता नहीं था।

इसी कारण उसने विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने उमा महेश्वर का अपमान किया और सती अपने पति के अपमान से आहत होकर यज्ञ में कूद गयी ।

शक्ति न होने के कारण मोह वश भगवान शिव उमा के निर्जीव शरीर को कंधे पर लेकर दौड़ने लगे।

वे अत्यधिक भाव-विह्वल और क्रोधित हो गये थे। इससे सम्पूर्ण सृष्टि कार्य ठप्प हो गया।

सृष्टिकार्य में उत्पन्न हुए इसी व्यवधान को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से देवी के निर्जीव शरीर को टुकड़ों में विभक्त कर दिया। इस प्रकार जंहा जंहा देवी के शरीर के अंग

गिरे वहीं-वहीं उस स्थान के नाम से भगवती की उपासना होने लगी। इसके साथ ही भगवान शंकर ने भी कहा कि इन स्थानों पर देवी सशरीर रहकर भक्तों के अभीष्ट को पूरा करेंगीं।

मैं भी भैरव रूप में उन स्थानों पर सदैव देवी के साथ विद्यमान रहूंगा। कामरूप में भगवती का योनि वाला भाग गिरा जो कामाख्या के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार शताक्षी, मीनाक्षी, कामाख्या आदि सभी शक्तियां एक ही है।

इसके उपरान्त देवी ने भगवती पार्वती का रूप धारण किया।

उसी शरीर-कोश से श्री अम्बिका जी का प्राकट्य शुम्भ-निशुम्भ के वध करने के लिये हुआ और देवताओं को इन राक्षसों के त्राण से मुक्त कराया।

महिषासुर के वध के लिए अपराजिता देवी सकल देवताओं के शरीर से प्रकट हुई। भगवान शिव के वरदान देने के कारण भस्मासुर अत्यधिक बलशाली हो गया था। तब देवी की प्रेरणा से भगवान

गुप्त नवरात्रि पूजा विधि के फायदे

  1. धर्म, अर्थ अर्थात् धन-सम्पत्ति, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए।
  2. आध्यात्मिक उन्नति के लिए।
  3. आत्म-साक्षात्कार के लिए।
  4. जीवन में सम्पूर्ण उन्नति के लिए।
  5. कुण्डलिनी जागरण के लिए तथा षट्चक-भेदन के लिए।
  6. पशु भाव से वीर भाव तथा वीर भाव से दिव्य भाव की शीघ्र प्राप्ति क
  7. प्रसन्न मन एवं स्वस्थ जीवन के लिए।
  8. जीवन में सभी बाधाओं से मुक्ति के लिए।
  9. वशीकरण शक्ति जागरण के लिए।
  10. जादू-टोने एवं अभिचार कर्मों से मुक्ति के लिए।
  11. सम्पूर्ण वैभव एवं ऐश्वयं-प्राप्ति के लिए।
  12. काम-तत्व के विकास के लिए।
  13. कलातत्व के विकास एवं सफलता प्राप्ति के लिए।
  14. ज्ञानतत्व के विकास एवं ऊर्जा की सबलता के लिए।
  15. सम्पूर्ण चेतना-प्राप्ति एवं शिवत्व-प्राप्ति के लिए।
  16. ऋणमुक्ति, बीमारी तथा मुकदमे आदि से मुक्ति तथा उनमें विजय-प्राप्ति के लिए।
लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 21
PDF साइज़0.4 MB
CategoryVrat Katha

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