हरित क्रांति | Green Revolution In India PDF In Hindi

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भारत में हरित क्रांति सकारात्मक – Green Revolution In India Book PDF Free Download

harit kranti pdf

हरित क्रांति PDF

स्वतंत्रता के बाद कृषि विकास और खाद्य सुरक्षा भारत की मुख्य समस्याएँ रही है। परंतु उन पर बल विविधतापूर्ण रहा है परिणाम यह हुआ कि कृषि सेक्टर के विकास ने सविरामी रूप से शिखर और गतं देखें पहली पंचवर्षीय योजना ने अपने मुख्य फोकस के रूप में कृषि के विकास को अपने मुख्य केंद्र पर रखा। इसके बावजूद दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत ने गंभीर खाद्य कमी का सामना किया है।

इस समस्या से निपटने के लिए 1958 में भारत में खाद्यान्न कमी के कारणों की जाँच करने और उपचारी उपाय सुझाने के लिए (संयुक्त राज्य के कृषि विभाग के डॉ. एस. एफ. जानसन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों का दल आमंत्रित किया। दल ने (“India”s Food Problem and Steps to meet ‘ (1959)” नाम से अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि भारत को उन क्षेत्रों पर अधिक फोकस करना चाहिए जहाँ कृषि उत्पादकता बढ़ाने की संभावना अधिक है।

इसके परिणामस्वरूप पहले से ही विकसित हुए क्षेत्रों को अधिक खाद्यान्न पैदा करने के सघन खेती के लिए चुना गया। बाद में 1980 के दशक में दो मुख्य कार्यक्रम अर्थात् सघन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (LAAP 1961) और सघन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP 1964) प्रारंभ किए गए। इन दोनों कार्यक्रमों ने सिंचाई, उर्वरक कृषि अनुसंधान और विकास, शिक्षा और विस्तार सेवाओं पर भारी निवेश किया, जिसने मिलकर परिणामतः भारतीय कृषि में उत्पादकता और उत्पादन में उच्च वृद्धि को संभव बनाया।

आमतौर पर इसका हरित क्रांति (GR) के रूप में उल्लेख किया गया। यद्यपि इसकी सफलता व्यापक रूप से स्वीकार की गई परंतु वास्तविकता यह है कि इसे केवल पहले से ही कृषि की दृष्टि से विकसित भौगोलिक क्षेत्रों में फोकस किया गया था और उन्हीं क्षेत्रों में सघन निवेश द्वारा बढ़ाया गया था।

इसकी सारी रचना उसके क्षेत्रीय विकास के पक्षधर दृष्टिकोण पर ही आधारित थी दूसरे शब्दों में उसके दृष्टिकोण और अभिकल्पना में सभी क्षेत्रों के संतुलित विकास पर आग्रह स्पष्ट नहीं था इसलिए यद्यपि हरित क्रांति ने समग्र कृषि उत्पादन उत्पादकता और आय पर्याप्त रूप से बढ़ाई खाद्य कमी अर्थव्यवस्था को खाद्य पर्याप्तता में रूपांतरित किया परंतु इसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कई नकारात्मक प्रभाव भी उत्पन्न किये विशेष रूप से निम्नलिखित के अनुसार उसके आर्थिक और पारितंत्र परिणामों से सफलता की कहानी के निराशाजनक पहलू प्रकट हुए

() भीमजल स्तर का अक्षय (मं) मृदा की गुणवत्ता मेंस (ii) वर्धित निवेश लागत (iv) वर्धित ऋण आवश्यकता आदि इस पृष्ठभूमि में हम भारतीय अर्थव्यवस्था पर हरित क्रांति के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर विस्तार से इसी इकाई में अध्ययन करेंगे हम अति आवश्यक द्वितीय हरित क्रांति के आयामों के बारे में भी अध्ययन करेंगे जो वर्तमान परिस्थितियों में अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और आयाम के कारण अति आवश्यक हो गया है परंतु हम अपनी चर्चा पहली हरित क्रांति के ऐतिहासिक पहलुओं के संक्षिप्त विवरण से प्रारंभ करेंगे।

11.2 हरित क्रांति की अवधारणा

शब्द “हरित क्रांति का उल्लेख कृषि विशेषज्ञों के दल द्वारा 1950 के और 1980 के दशकों के दौरान विकसित नई कृषि प्रौद्योगिकी के लिए किया गया है इस दल में मैक्सिको में अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूँ सुधार केंद्र और फिलिपीन्स में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IKARI) के कृषि विशेषज्ञ थे इन दो केंद्रों में विकसित प्रौद्योगिकी बाद में एशिया और लेटिन अमेरिका के अधिकांश विकासशील देशों द्वारा अपनाई गई ताकि इन देशों में खाद्यान्न आत्मनिर्भरता प्राप्त करने तथा कृषि उत्पादकता सुधार करने में योगदान हो सके प्रौद्योगिकी में अधिक पैदावार वाली किस्म (HYV) के बीजों का प्रयोग और आधुनिक कृषि निवेशों, औजारों और प्रणालियों (जैसे रासायनिक उर्वरकों कीटनाशक दवाओं, सुनिश्चित और नियंत्रित सिंचाई, ट्रैक्टरों, विद्युत और डीजल पम्पों आदि) का पैकेज अंतर्निहित है।

यद्यपि प्रारंभ में नई कृषि रणनीति मुख्यतया गेहूँ और चावल की फसलों तक सीमित थी, बाद में अन्य फसलों के लिए भी इसका विस्तार किया गया ये प्रणालियों उन परंपरागत कृषि प्रणालियों के स्थान पर प्रारंभ की गई जो अधिकांशतः किसानों के अपने स्वामित्व के आदानों और संसाधनों पर आधारित थे

जैसे देशी बीज, खेत में बनी खाद हाथ से सिंचाई रहट का प्रयोग) देशी बीजों की समस्या यह थी कि वे उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रयुक्त रासायनिक उर्वरक की अधिक मात्रा बर्दाश्त नहीं कर पाते थे जबकि रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई के संयोजन में HYV बीजों मे अधिक वांछित उच्चतर उत्पादकता दी हरित क्रांति शब्द की रचना डॉ. विलाविम माठे (USAID के तत्कालिक प्रशासक ) द्वारा की गई थी। उन्होंने 1968 में एशिया और लेटिन अमेरिका के विकासशील देशों में नई कृषि प्रौद्योगिकी द्वारा प्राप्त सफलता का वर्णन करने के लिए इस शब्द का प्रयोग किया।

11.2.1 ऐतिहासिक संदर्भ

“हरित क्रांति की प्रक्रिया डॉ. नार्मन बोरलॉग सहित रॉकफेलर फाउंडेशन के कृषि विशेषज्ञों की टीम द्वारा मेक्सिकों में 1950 के दशक के प्रारंभ में कृषि अनुसंधान कार्यक्रम के प्रवर्तन से आरंभ हुई डॉ. नार्मन बोरलॉग ने मेक्सिकन गेहूं पर गहन अनुसंधान किया और ये 1950 के दशक के मध्य में अधिक पैदावार देने वाली बीने गेहूँ की फिल्मों का आविष्कार करने में सफल हुए। गोहूँ के HYV बीजों के प्रयोग से मैक्सिको 1960 के दशक के प्रारंभ तक गेहूँ उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया. यहां तक कि उसने निर्यात करना भी आरंभ किया।

बाद में 1962 में चावल की फसल के नए HYV बीज विकसित करने के लिए फिलिपीन्स में (पुनः रॉकफेलर और फोर्ड फाउंडेशन की सहायता से) अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (RRI) स्थापित किया गया था। IRRI द्वारा विकसित चावल की नई किस्मों में फिलिपीन्स में मैक्सिको में गेहूँ के मामलों की अपेक्षा चावल की अधिक उत्पादकता बढ़ाई है मैक्सिकन गेहूँ की भांति चावल बीज भी रासायनिक उर्वरक और सिंचाई के प्रयोग के प्रति अधिक अनुक्रियाशील थे। इन दोनों प्रयासों ने भारत सहित अधिकांश विकासशील देशों में हरित क्रांति प्राप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। डॉ. बोरलॉग को कृषि विकास में उसके योगदान और उस समय की विश्व खाद्य समस्या हल करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था।

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है भारत को 1950 और 1960 के दशकों में गंभीर खाद्य कमी का सामना करना पड़ा और खाद्यान्न का आयात करना पड़ा भारत खाद्यान्न की कमी जल्दी से जल्दी पूरा करने के लिए बेचैन था। परिणामस्वरूप फोर्ड फाउंडेशन के कृषि विशेषज्ञों के दल की सिफारिशों पर भारत में कृषि की दृष्टि से विकसित चुनिन्दा क्षेत्रों में अधिक खाद्यान्न विशेषकर गेहूँ और चावल अधिक पैदा करने की नई कृषि रणनीति अपनाई 1960 के दशक में फोर्ड फाउंडेशन ने भारत सरकार की स्वीकृति से कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए बेहतर प्रौद्योगिकी आदानों से गहना कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP) प्रारंभ किया।

उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केन्द्रित करने पर बल दिया गया था जहाँ कृषि विकास की संभावना अधिक थी ताकि खाद्यान्न उत्पादन में त्वरित वृद्धि प्राप्त की जा सके इन चुनिन्दा क्षेत्रों में किसानों को आवश्यक निर्देश और सेवाएँ प्रदान की गई। कार्यक्रम चुनिन्दा क्षेत्रों में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में पर्याप्त प्रभावकारी सिद्ध हुआ IAAP के आशाप्रद परिणामों तथा अधिक खाद्यान्न के लिए बढ़ती हुई आवश्यकताओं को देखते हुए सरकार ने (1964-65 के दौरान) उन चुनिन्दा 114 जिलों में गहन कृषि जिला कार्यक्रम (JADP) प्रारंभ किया जहाँ कृषि विकास की संभावना बहुत अधिक थी IAAP और IADP दोनों आर्थिक विकास के “बड़े प्रयास” सिद्धांत पर आधारित थे।

ये दोनों कार्यक्रम भारत में हरित क्रांति प्राप्त करने की दिशा में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध हुए डॉ. नार्मन बोरलॉग और डा. एम.एस. स्वामीनाथन (कृषि वैज्ञानिक) तथा सी. सुब्रहमण्यम तत्कालीन कृषि मंत्री भारत में नई कृषि प्रौद्योगिकी लाने में महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं। नई रणनीति का मुख्य उद्देश्य किसानों को आवश्यक आदान और सेवाओं की सुलभता प्रदान कर खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था।

इसे निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रचुर सार्वजनिक निवेश के अधीन पर्याप्त कृषि अनुसंधान विस्तार और विपणन आधारभूत संरचना स्थापित कर किया गया था (2) पृष्ठीय और भीमजल सिंचाई (ii) कृषि उपकरणों और उर्वरकों का विनिर्माण (ii) कृषि मूल्य आयोग की स्थापना (iv) निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण और (४) किसानों को ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए सहकारी ऋण संस्थाओं की स्थापना इसके अतिरिक्त इस अवधि के दौरान नलकूप प्रौद्योगिकी का आविष्कार, कृषि उत्पादकता विशेषकर पंजाब हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वृद्धि करने में योगदान से और फसल स्वरूप में परिवर्तन करने में सहायक हुआ है बहुत कम समय में गेहूँ क्रांति संपूर्ण उत्तर भारत में फैल गई है और गेहूं के उत्पादन और उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई।

बाद में ऐसी ही क्रांति चावल की खेती में हुई। किंतु इसकी औचित्य पारितंत्र और पर्यावरण संबंधित मुद्दों पर गंभीर आलोचना भी हुई है। इसके बावजूद हरित क्रांति प्रौद्योगिकी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के रूपांतरण में असाधारण योगदान किया खाद्य कमी की असम्मानजनक स्थिति जलयान से मुँह तक में ऐसा परिवर्तन हुआ कि देश न केवल आत्मनिर्भर, बल्कि खाद्य अविशेष देश भी बन गया।

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Language Hindi
No. of Pages20
PDF Size0.3 MB
CategoryAgriculture
Source/Creditsegyankosh.ac.in

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