सावन सोमवार की व्रत कथा | Sawan Somvar Vrat Katha PDF

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श्रावण सोमवार व्रत कथा पूजा विधि – Shravan Somvar PDF Free Download

२०२३ में श्रावण मास के सोमवार की तिथि

सावन का पहला सोमवार: 10 जुलाई 2023
सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई 2023
सावन का तीसरा सोमवार: 24 जुलाई 2023 (अधिक)
सावन का चौथा सोमवार: 31 जुलाई 2023 (अधिक)
सावन का पांचवा सोमवार: 07 अगस्त 2023 (अधिक)
सावन का छठा सोमवार:14 अगस्त 2023 (अधिक)
सावन का सातवां सोमवार: 21 अगस्त 2023
सावन का आठवां सोमवार: 28 अगस्त 2023

सावन सोमवार की व्रत कथा और पूजा विधि

भगवान शिव अभी भी पृथ्वी पर है, इस वजह से शिव की आराधना का बड़ा महत्व है, हिन्दू कैलेंडर में सावन महीने को महादेव शिव के भक्ति के रूप में मनाया जाता है।

सावन ने चारों सोमवार को महिलाएं व्रत रखती है, उसी व्रत की कथा यहाँ पर प्रस्तुत की गई है।

एक बार की बात है किसी नगर में एक साहूकार (moneylender) रहता था। जिसके घर में धन की तो कभी कमी नहीं हुई। लेकिन संतान सुख से वह वंचित था। और इसके कारण वह निरंतर परेशान भी रहता था।

संतान प्राप्ति का फल प्राप्त करने के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत धारण करता था। पूरी भक्ति के साथ इस दिन शिव मंदिर(shiva temple) जाया करता था। एवं भोलेनाथ और माता पार्वती की पूरी श्रद्धा (shraddha) से पूजा करता था। इसकी भक्ति से माता गौरी प्रसन्न होकर साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने के लिए शिव जी के पास अर्जी लगाई।

पार्वती जी की आग्रह से भोलेनाथ ने कहा कि -” हे पार्वती इस जगत में हर व्यक्ति को उसके कर्म के आधार पर फल की प्राप्ति होती है। तथा जिसकी किस्मत में जो लिखा है उसे सहना पड़ता है।”

इसके बाद भी माता पार्वती ने साहूकार की भक्ति को स्वीकारते हुए उसकी इच्छा पूर्ण करने के लिए फिर से उनसे कहा। ऐसा करने से शिव जी साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दे दिए। परंतु साथ में यह भी कहा कि उस बालक की आयु सिर्फ 12 साल तक हीं होगी। भगवान शिव और माता गौरी के संपूर्ण वार्तालाप साहूकार सुन रहा था। जिसे सुनने के बाद ना तो वह खुश हुआ और ना हीं दुखी। अतः वह जैसे शिव की आराधना करता था, उसी प्रकार बस करता रहा। 

कुछ दिनों बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। और जब उस बालक का उम्र 11 साल हुआ, तो उसे अध्ययन के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने अपने पुत्र के मामा को बुलाया और उसे ढेर सारा धन देकर कहा – तुम इसे शिक्षा (shiksha) प्राप्ति  के लिए काशी विद्या पीठ (kashi vidya pith)  ले जाओ और रास्ते में यज्ञ कराते हुए जाना।

इसके साथ हीं यह भी ध्यान रखना कि जहां भी यज्ञ कराओगे वहां ब्राह्मण भोज कराकर दक्षिणा जरूर देना। इसी शर्तों के साथ दोनों मामा-भांजे काशी की तरफ निकल पड़े। उसी मार्ग में एक नगर पड़ा जहां किसी राजकुमारी का विवाह था। परंतु जिस राजकुमार से उसका विवाह होने जा रहा था, वह एक आंख से अंधा था। जिसके बारे में  राजकुमारी और उसके परिवार वाले नहीं जान रहे थे।

क्योंकि राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाए रखा था। और बात छिपाने के लिए कोई चाल सोच रहा था। साहूकार के पुत्र पर जब राजा की नजर पड़ी तो उसके मन में ख्याल आया कि क्यों ना इसे ही राजकुमार बनाकर यानी दूल्हा (groom) बना कर राजकुमारी से विवाह करा दिया जाए। उसके बाद इसे खूब सारा धन देकर भेज दूंगा। और राजकुमारी को अपने घर रख लूंगा। इस प्रकार उसने अपनी चाल के अनुसार उस बालक को दूल्हे की तरह सजा कर राजकुमारी के साथ विवाह करा दिया।

आपको बता दें कि साहूकार का बेटा अत्यंत ईमानदार (honest) था। मौका हाथ लगते हीं इसने राजकुमारी के चुन्नी पर लिख दिया- “तुम्हारा विवाह जिस राजकुमार से होने जा रहा था वह एक आंख से काना था। और मैं तो काशी पढ़ने के लिए जा रहा था। बीच रास्ते में जबरदस्ती मुझे विवाह (vivah) में बिठा दिया गया।” इस तरह राजकुमारी (rajkumari) ने चुन्नी पर लिखी पूरी बात को अपने माता-पिता के सामने रखा। तो राजा ने अपनी पुत्री को विदा ना करने का फैसला लिया।  

एक ओर साहूकार का पुत्र और उसका मामा काशी पहुंचकर यज्ञ का आयोजन किया। जिस दिन साहूकार के बालक की आयु 12 वर्ष की हुई। यज्ञ उसी दिन आयोजित किया गया था। हालांकि लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही। मामा ने तुरंत उसे कहा तुम अंदर जाओ और सो जाओ। शिव जी की वरदान और शर्त के अनुसार कुछ ही देर के बाद उस बालक ने अपनी प्राण त्याग दी।

भांजे को मृत देखकर मामा की विलाप शुरू हो गई। संयोग ऐसा था कि उसी क्षण माता पार्वती और भगवान शिव उधर से गुजर रहे थे। माता पार्वती ने भगवान से आग्रह किया- ” हे स्वामी! मुझे इस प्राणी के रोने की स्वर सहन नहीं हो पा रहा। कृपया आप इसके कष्टों का निवारण करें। माता पार्वती के आग्रह (request) के बाद जब शिवजी( shiv ji) उस मृत बालक के निकट गए और देखकर बोले यह तो उसी साहूकार का पुत्र (son) है। 

जिसे मैंने कुछ समय पहले 12 साल की आयु का वरदान दिया था। अब तो इसने 12 वर्ष की जिंदगी जी ली है।वरदान के अनुसार आयु पूरी हो चुकी है। परंतु मातृ भाव से युक्त मां गौरी ने कहा- “हे महादेव! कृपा कर आप इस बच्चे को की आयु (age) और बढ़ा दे अन्यथा इसे खो देने की दुख में इसके माता-पिता (parents) भी तड़प कर मर जाएंगे।

पार्वती के इस अर्जी पर महादेव ने उस बालक को पुनः जीवित होने का वरदान दे दिया। और फिर अपनी शिक्षा (education) पूरी करके बालक अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर निकल पड़ा।  वापस लौटते समय मामा-भांजे उस नगर में पहुंचे जहां उस बालक का किसी राजकुमारी से विवाह हुआ था। और इस दौरान राजकुमारी के पिता ने उसे देखकर पहचान लिया और उस बालक की महल में खूब खातिरदारी और स्वागत किया और राजकुमारी को उसके साथ विदा कर दिया। 

इधर साहूकार और उसकी पत्नी कब से भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे की राह देख रहे थे। दोनों ने प्रण (oath) लिया था कि अगर वह अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनेंगे तो अपने शरीर का त्याग देंगे।

लेकिन बेटे को जीवित रहने की समाचार सुनते हीं वह बेहद खुश हो गए। और उसी रात्रि को भोलेनाथ ने साहूकार के सपने में आकर कहा था कि- ” मैं तुम्हारे द्वारा सोमवार व्रत की पूजन और व्रत कथा सुनने से प्रफुल्लित होकर तुम्हारे बेटे को लंबी उम्र का वरदान दे रहा हूं। 

इसी प्रकार सोमवार का व्रत (Somwar vrat) जो कोई भी धारण करता है। या इसकी कथा सुनता है, तो व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। साथ हीं उसके कष्टों का निवारण भी हो जाता है। 

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 10
PDF साइज़2 MB
CategoryBook
Source/Creditsdrive.google.com

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