आत्म विद्या | Atma Vidya PDF In Hindi

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आत्म विद्या – Atma Vidya PDF Free Download

वर्णाश्रम-प्रतिपालन

एक साधुका वचन है कि “सांसारिक कार्य साघ कर जो परमार्थ ग्लाम करता है वह मनुष्य सचमुच ही प्रशंसनीय है।” यह के हमारे परम पूज्य वैदिक धर्म-शत्त्वोंके अनुसार ही है ।

वैदिक ने जो वर्णाश्रम व्यवस्था बतलाई है उसके अनुसार चलते हुए अनेक शुरूप सब सांसारिक कार्य करके अन्तमें जीवन्मुक्त हो चुके हैं, आ कालमें भी मुक्त होते हैं और भविष्यमें भी होंगे।

हाँ, इतना अवश्य के वैदिक धर्म पर असाधारण श्रद्धा रख कर उसके अनुसार शुद्ध चरण रहना चाहिए। विधर्मी लोग सिर्फ ऊपर ऊपर विचार करके कहते रहते हैं कि वैदिक धर्म में एक रूपता (System ) नहीं उसमें अनेक धर्म, नाना पंथ, नाना मत, सबकी खिचड़ी हुई है।

रसे कितने ही अज्ञानी लोग भी अपने धर्मके विषय में कुछ खोज . विना इन विवर्मियोंका अनुसरण किया करते हैं; परंतु इसे सिवा चारके और क्या कह सकते हैं ?

वैदिक धर्म पर यह आरोप कदापि ‘ लगाया जा सकता; क्योंकि यह धर्म पूर्णताको पहुँच चुका है और [निक संसारके सारे विचारोंका लय अन्तमें इसी धर्ममें होगा ।

जन प्रवासी हिमालयके समान अति उच्च और प्रचण्ड पूर्वत प. अथवः किसी विस्तृत वनमें संचार करता है तब वह क्या देखता है कि वहाँकी सारी वस्तुएँ अनियमित और अव्यवस्थित रीतिसे फैली हुई हैं; और इसी कारण कदाचित् उस प्रवासीका मन वहाँ नहीं रमता है;

परन्तु जब. कोई सुन्दर उपवन – जहाँके पेड़-पौधे और लता-पत्र आदि सुन्दर रीतिसे रक्खे जाते हैं और वनैली घास आदि निकाल कर स्वच्छता रक्खी जाती है—

उसे देख पड़ता है तब वहाँ उसका चित्त स्वस्थ हो जाता है और कुछ विभान्ति लेनेकी उसकी इच्छा होती है। परन्तु केवल इतने हीसे कि उस मानवी प्राणीकी ऐसी दशा होती है,

यह नहीं कहा जा सकता कि उस विस्तृत वन अथवा घने वृक्षोंसे युक्त हिमाच लकी अपेक्षा उस कृत्रिम उपवनकी योग्यता अधिक है ।

क्योंकि उस वन अथवा पर्वत पर जो वनस्पतियों और वृक्ष होते हैं उनमें कितनी ही दिव्य औषधियों और अनेक महान उपयोगी वृक्ष होते हैं;

और उनकी उपयोगिता केवल बाहरसे क्षणिक दृष्टि-सुख देनेवाले उस कृत्रिम उपवनके सुन्दर वृक्षोंकी अपेक्षा सौगुनी अधिक होती है।

बात सिर्फ ही है कि उनकी उपयोगिता और योग्यता जाननेवाला मर्मज़ मिलना चाहिए । यही उदाहरण वैदिक धर्म और अन्य धर्माकी तुलनामें भी लग सकता है;

और उस तुलनामें बहुत बड़ा अन्तर देख पड़ने के चाद वैदिक धर्मका महत्त्व स्थापित हो जाता । हमारा यह भारतवर्ष हजारों वर्ष पहलेसे बैमव-सम्पन्न हो चुका है।

आठ आने प्रवेश फी देकर स्थायी पादक बननेवालों को इसकी सब पुस्तकें ‘पोनी कीमत दी जाती है। नीचे लिखी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। १ सफल गृहस्थ अंगरेजी के प्रसिद्ध लेखक सर आर्थर स

अनुवाद। इसमें मानसिक शान्तिके उपाय, कार्यकुशलता, म्यानहटनी

गंभीरता, संयम, आदि महत्त्वपूर्ण विषयों का महा सुंदर विवेचन है। कीमत ||

२ आरोग्य-दिग्दर्शन । मूल लेखक महात्मा गाँधी पुस्तक प्रत्येक गृहस्य के लिए बड़ी उपयोगी है। पुस्तकमें हवा, पानी, खुराक, जल-चिकित्सा, मि उपचार के रोग, मचोंकी संभाल, सर्व-विच्छु आदिका काटना, छूनना या जलजाना आदि अनेक विषयों पर विवेचन है। तीसरा संस्करण ० ॥ –

३ कांग्रेसके पिता मि० धूम कसिके जन्मदाता, भारतमें राष्ट्रीय भावक उत्पादक, मनुष्य जातिके परम हितैषी, स्वार्थ-स्यागी महाला मि. धूमका यह जीवन-चरित्र प्रत्येक देशभके पढ़ने योग्य है। मूल्म बारह जाने ।

४ महत्त्व – पूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश । महात्मा जेम्स एकनकी पुस्तकका सरल-सुन्दर अनुवाद चरित्र-संगठनमें बड़ी उपयोगी पुस्तक है। • ॥

५ विवेकानन्द (नाटक) स्वामी विवेकानन्दने अमेरिका जाकर को हिन्दु-धर्मका प्रचार किया, उसकी महताका यहाँ के लोगों पर प्रकाश डाला, इस विषय-का इसमें सुन्दर चित्र खींचा गया है। देश-भक्तिकी पवित्र भावनामेति यह नाटक भरा हुआ है। पाँच चित्र दिये हैं। सू० १) रु०

६ स्वदेशाभिमान । इसमें कितने ही ऐसे विदेशी रत्न रत्नोंकी खास खास घटनाओंका शोख है, जिन्होने अपनी मातृभूमिकी स्वाधीनताको रक्षाके लिए अपना सर्वस्त्र पलिदान कर संसारके सामने एक उम्र आदर्श सड़ा कर दिया है।

मूल्य 1 ७ स्वराज्यकी योग्यता स्वराज्यके विरुद्ध जो आपत्तियाँ उठाई जाती है।

उनका इसमें बढ़ी उत्तमता के साथ खण्डन कर इस मासको अच्छी तरह सिद्ध कर दिया है कि भारतको स्वराज्य मिलना ही चाहिए। सू० १) रु०

८ एकाग्रता और दिव्यशक्ति। इसमें दिव्यशक्ति आरोग्य, भानन्द, और सफलता प्राप्तिके सरल उपाय बतलाये गये है। पुस्तकको सिफासिती है कि ” इसके अध्ययनसे तुम्हें दिम्यशक्ति भर्यादाकर्ष

लेखक हरी गणेश गोडबोले
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 361
PDF साइज़10.7 MB
CategoryEducation

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