अज्ञातवास – Agyatvas Book/Pustak Pdf Free Download

जहाँ से रपपर करी निगा नी दिन भी कितने सरग मे। नमें मेरे लिए या नहीं पाए जाता था। नीला भासमान । चिड़ियों की पोत किखणा करर चाती पीं । गुचती चास के सुनाहने मेदान। हरे- हरे, चमकार बाढ़ बांधों का भाड ।
जिसके अंदर अंधेरा क । ऊपर चमकदार का ताजा-चाना। भनी अमराइयो । किनारे पर बबूल का पेड़ । उसपर फैली हुई अमरलेखि का गुम्बद । महुए के साथसास-हरे पत्ते | सारी रात पैत की चांदनी में उप-टप सुन पड़ती थी।
सबेरा होते-होते हया को इतना असंगत कोन बना देता था ? भासपास के मामों से सूखते हुए बोरों को उड़ाकर समीर नं जाने कितने पासवों को एक में मिला देता था। रूपा अब यह सब नहीं होता? क्या वह मेरे ही लिए था ?
तद उजाला था, मेरा बचपन था। जो कुछ पा निगाह के सामने था, नंगे पांवों के नीचे या वही मेरा संसार या । भाज सब कुछ धूसरित है। पर तब के रंग पटकीले होते थे । शाम होती । आसमान रंग-बिरंगा हो जाता था।
प्राण से ज्यादा गहरे रंग । या यहू भी अम है ? से तब भ्रम या कि सब भोर उजाला है, जिसमें हरियाली चमकती है ?पश्चिम में भाग-सी लग जाती थी। उसे धुएं के रंग के घने वादल वसमे को दौड़ते । पूरब में नीला पासमान ; जिसपर सफेद बादल होते।
वे धुंधले हो जाते । फिर पच्छिम से फूटती, क्रम से फैलती हुई, मिटने- बाली किरणों के सहारे लाल हो जाते । फिर लोहित हो जाते । फिर काले होते । उसमें बिजली लरजती। फिर छायाएं पौलसी। प्यारा बढ़ता।
हम भागकर घर पाते । अन्दर की दालानी में एक कोने में दिया टिमटिमाता । उसकी लो इधर-उधर हिलती। दीवारों पर घटती बढ़ती दैत्यों-सी छामाकृतियां । एक प्रौर तड़प एक और गरज।
लेखक | श्रीलाल शुक्ल-Shrilal Shukla |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 136 |
Pdf साइज़ | 3.8MB |
Category | Religious |
अज्ञातवास – Agyatvas Book/Pustak Pdf Free Download