अच्छी हिंदी | Acchi Hindi Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
समाचार-पत्र, मासिक पत्र, पुस्तकें सभी कुछ देख जाइए। सब में भाषा की समान रूप से दुर्दशा दिखाई देगी। छोटे और बड़े सभी तरह के लेखक मूलें करते हैं, और प्रायः बहुत बड़ी-बड़ी मूर्ले करते हैं।
हिन्दी में बहुत बड़े और प्रतिष्ठित माने जानेवाले ऐसे अनेक लेखक और पत्र हैं, जिनकी एक ही पुस्तक अथवा एक ही अंक में से भाषा सम्बन्धी सैकड़ों तरह की भूलों के उदाहरव एकत्र किये जा सकते हैं।
पर आश्चर्य है कि बहुत ही कम लोगों का ध्यान उन मूल की ओर जाता है। भाषा सम्बन्धी भूलें बिलकुल आम बात हो गई हैं। विद्यार्थियों के लिए लिखी जानेवाली पाठ्य पुस्तकों तक की माषा बहुत लचर होती है।
यहाँ तक की व्याकरण भी, जो शुद्ध भाषा सिखाने के लिए लिखे जाते हैं, भाषा सम्बन्धी दोषों से रहित नहीं होते। जिन क्षेत्रों में हमें सबसे अधिक शुद्ध और परिमार्जित भाषा मिलनी चाहिए,
जब उन्हीं क्षेत्रों में हमें मद्दी और गलत भाषा मिलती है, तब बहुत अधिक दुःखं और निराशा होती है। मेरे परम प्रिय और मान्य मित्र स्व० पं० राम चन्द्र शुक भी भाषा की यह दुर्दशा देखकर बहुत दुःशी होते थे।
हिन्दी शब्द-सागर का सम्पादन करते समय हम लोगों को हिन्दी साहित्य के सभी मुख्य अंगों का सिंहावलोकन करना पड़ा था। उस समय भाषा सम्बन्धी अनेक मू और विपणताएँ हम लोगों के सामने भती थीं।
एक बार हम लोगों का कुछ दिन पहले एक साहित्यिक झगड़े के प्रसंग में स्थानीय दैनिक ‘आज’ में श्री ‘बृहस्पति’ का एक लेख निकजा था। इसमें एक स्थल पर लिखा था इस समय हिन्दी बहुत उन्नत हो चुकने पर भी वैसी ही है,
जैसे बिना एक मार्गदर्शक के सिर पर बोझ लादे’ कोई पथिक बियाबान में निरुद्देश्य चल्ला जा रहा हो ।’ उन्होंने यह भी लिखा था- ‘छोटा हो, बड़ा हो, हिन्दी में सभी तीसमार खाँ हैं।”
मैं समझता हूँ, ये दोनों बातें अक्षरशः सत्य हैं। मैं मार्ग दर्शक बनने का तो दावा नहीं करता। पर हाँ यह जरूर बतला देना चाहता हूँ कि भाषा के क्षेत्र में लोग क्यों, कहाँ और कैसे भटक रहे हैं ।
लेखक | रामचंद्र वर्मा-Ramchandra Verma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 409 |
Pdf साइज़ | 32.1 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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