वैशेषिक दर्शन | Vaisheshik Darshan PDF In Hindi

वैशेषिक दर्शन – Vaisheshika Darshana Book PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

‘संयोग और विमान में अनपेस कारण वस्तु को पहले पान से बगळे स्थान में ले जाता है अर्थात पहले स्थान से उसका विभाग मौर दूसरे से संयोग उत्पन्न करता है। इस प्रकार कर्म सोंग बौर विभाग का कारण है ।

प्रश्न-पय हाय का सयोग पुस्तक के साथ हुआ, तो उस संयोग से शरीर और पुस्तक का संपोग होगया। बर्षात इस- पुस्तक का सयोग घारीरघुस्तक के सैथोग का कारण हुआ ।

इसी प्रकार इतपुस्तक के दिमाग से शरीरपुस्तक का विभाग हुआ अर्थात् हस्तपुस्तकषिभाग शरीरपुस्तक के विभाग का कारण हुआ ।

इस प्रकार संयोग और विभाग का कारण निरा कर्म ही नहीं, संयोग और विभाग भी हैं, तब यह कर्म का लक्षण कैसे हुआ ?

उत्तर-हाथ में कर्म होकर हाथ और पुस्तक का नो संयोग हुआ है, यह तो कर्म से बिना किसी की अपेक्षा के हुआ पर भागे हाय और पुस्तक के संपोग से जो शरीर पुस्तक का संयोग हुआ है,

बह अगागिभाव की अपेक्षा से हुआ है यदि हाथ रीर का अंग न होता, तो बिना कर्म के सनका संयोग न होवा । इस प्रकार कर्म तो स्वजन्य संयोग का अनपेठ कारण है, बन्तुषों से पख पना है कन्तुएं समवायिकारण हैं ।

सन्तुषों से बना कब है, जब ये थोत मोत हो गई हैं, इसलिए यह जोत मोत उप में सयोगविधेष वस्म् का यसमेवायिकारण है।

जुलाहे, कंघी और नालियों ने यह संयोग कराया है, इसलिए वे निमिच कारण हैं। इस प्रकार द्रष्य की उत्पति में सर्वत्र অवयव् समवायिकारण, अवयव संयोग असमवाषिकारण, और संयोग कराने वाले जुलाहे कंघी आदि निमित्त कारण होते हैं। शादी ।

संगति-प्रसंगागत कार्यकारणभाव का निरूपण कर कम- प्राप्त सामान्य विशेष का निरूपण करते है -मान्य और विशेष ये दोनों बुद्धि की अपेक्षा से हैं ।

म्या-द्रव्य गुण कर्ष ये तीन पदार्थ इस विश्व की सारी घटनाबों के कारण हैं, अतएव ये ही तीन अर्थ कहलाते हैं। अगले तीन सामान्य विशेष और समवाय पदार्य ही कहलाते हैं अर्थ नहीं ।

लेखक पंडित राजाराम-Pandit Rajaram
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 165
Pdf साइज़4.4 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

वैशेषिक दर्शन – Vaisheshik Darshan Book/Pustak Pdf Free Download

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