मानस का हंस उपन्यास | Manas Ka Hans In PDF

मानस का हंस – Manas Ka Hans Novel Book PDF Free Download

उपन्यास

भावण कृष्णपक्ष की रात। मूसलाधार बर्या बादलो की गडगडाहट और बिजली की कटकन से परती खरज-तरज उठती है एक देवालम के भीतर बौछारों से बचाव करते सिमटकर बैठे हुए तीन व्यक्ति विजली के उजाने मै पलभर के लिए तनिक से उजागर होकर फिर अमेरे में बिलीन हो जाते है।

स्वर ही उनके घर तक के परिचायक है। “बायस ऐसे गरज रहे है मानो सर्वश्रासिनी काम जुदा किसी सत के प्रतार श्लोक को निगल कर दम्भा-भरी उकारे ले रही हो ।

बौछारे पछताने के तारो दी सनसना रही है। बीच-बीच में बिजली भी वैसे ही चमक उठ्ती है जैसे कामी के मन में क्षण-भर के लिए भनित चमक उठती है।

“इस पतित की प्रार्थना स्वीकारे गुरू जी, अब अधिक कुछ न कहू । मेरे प्राण भीतर-बाहर कही भी ठहरने का ठौर नहीं पा रहे है । आपके सत्य वचनो से मेरी विवशता पछाड़े खा रही है । “”हा एक रूप में बिटिया इस समय हमे भी सता रही है।

जो ऐसे ही बरसता रहा तो हम सबेरे राजापुर कैसे पहुंच सकेंगे रामू ?” “राम जी पाटु हे प्रभु । राजापुर अब अधिक दूर भी नहीं है। हो सकता है. चलने के समय तक पानी रुक जाय । तीसरे स्तर की बात सच्ची सिद्ध हुई। बड़ी-भर में ही करखा बम गई| बपेरे मे तीन आकृति मंदिर से बाहर निकलकर वस पड़ो।

मेना बहारिन सवेरे जब टहस-सेवा के लिए माई तो पहले कुछ देर तक द्वारे की कण्डी खटखटाती रही, सोचा नित्व की तरह भीतर से ग्रगंल तभी होगी. फिर पीचक में हाथ का तनिक-सा दवाव पड़ा तो देखा कि कियाईे उदके-भर थे। भीतर गई, दापो-दादी’ पुकारा, रसोई वाले दालान में झाका, रहने वाले मोठे में देखा पर मैया कही भी न थी।

लेखकअमृतलाल नागर-Amrutlal Nagar
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ382
Pdf साइज़19.4 MB
CategoryNovel

मानस का हंस – Manas Ka Hans Book/Pustak Pdf Free Download

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