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गुरु महिमा | Guru Mahima PDF Free download

श्री गुरु महिमा
श्री गुरु महिमा गुरु के श्रद्धेय कद और महत्व पर प्रकाश डालती है। यह आध्यात्मिक प्रवचन गुरु से जुड़े गहन और दिव्य गुणों पर जोर देता है, एक मार्गदर्शक शक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान के स्रोत के रूप में उनकी भूमिका को स्वीकार करता है।
गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥१॥
व्याख्या: शीश चढ़ाकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो। परन्तु इस शिक्षा को न मानकर शरीर और धन का अभिमान करने वाले कितने ही मूर्ख संसार से बह गये, गुरुपद पर नहीं लगे।
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥२॥
व्याख्या: व्यवहार में भी साधु को गुरु की आज्ञा के अनुसार आना-जाना चाहिए। सद्गुरु कहते हैं कि संत वही है जो जन्म और मृत्यु पर विजय पाने के लिए साधना करता है।
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥३॥
व्याख्या: सभी संत जानते हैं कि गुरु और पारस-पत्थर में अंतर होता है। पारस तो लोहे को ही सोना बनाता है, परंतु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है।
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।
जनम – जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥४॥
व्याख्या: शिष्य गलतफहमी रूपी कीचड़ से भरा है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। गुरुदेव जन्म-जन्मान्तर की बुराई को एक क्षण में नष्ट कर देते हैं।
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥५॥
व्याख्या: गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ के सहारे शिष्य की बुराई बाहर आती है, बाहर से मार-पीट कर गढ़ बनाती है।
Language | Hindi |
No. of Pages | 19 |
PDF Size | 1.2 MB |
Category | Religious |
Source/Credits | anandsandesh.in |